इतवारी: बिलई ताके मुसुवा !!

एक झिन महतारी अपन बेटी के दिमाक ल सर्विसिंग करत रिहिस हे – ‘जऊन ह खेत के मुँह, मेहनत के पसीना अउ किसान के पीरा ल नइ देखे हावय, वोह अन्न के इज्जत का जानही-करही। गलती तुंहार नइहे बेटा ! गलती तो हमार हे जऊन तुंहला ये संस्कार के साँचा म नइ ढाल पाएन, एला तुंहला नइ बता-सीखा पाएन।’ बात अन्न के बरबादी अउ बरबादी के अन्न बोले तो खाद्य सुरक्षा के होवत रिहिस हे। भारत के गाँव अउ नानमुन कस्बा मन म आज ले समाज ल बइठार के परसा…

इतवारी:- जोग भोग अउ रोग

अइसे तो मैं जनम के घुघुवा हरवँ। अंधियार म जोर -जार मुँह मारके अंजोर करईया सजोर जीव। कोलिहामन अंधियार म मुँहू ल करिया करथे। मैं अइसन नइयवँ। दिन -रात आठो काल बारा महीना मुँह भर करिया पोते रहिथवँ। मोर सिध्दांत हे करिया घलो हँ एक ठो रंग हरे। ओला काबर उदास करवँ। फेर जबले बकर्रा बिकलांग षिक्षा ल अपन लिज्झड़ खाँध के पलौंदी दे हववँ। बिद्वान- बुधमान के फर्जी पागा हँ मोर मुड़ म आके जबरदस्ती खपला गे हे। बिद्या के अरथी ल बोहे-बोहे आज ले भटकत, रेंगत, किंदरत हवँ।…

इतवारी: जभे जागे तभे बिहान ?

धरती गोल हे, जिहाँ ले रेंगे रहिबे आखिर म उहेंचे पहुँच जबे। ये गोठ आपसी म बरोबर वाले मन संग करे के हरे। बोमियावत हाँका पारे माने लइका मन तुरत गुगली प्रष्न मार देथे – धरती गोल हे त हमन उन्डन-गिरन काबर नहीं ? कहिबे – धरती के गुरूत्वाकर्षण शक्ति के सेति हमन नइ गिरन-उन्डन। धरती के गुरूत्वाकर्षण शक्ति के सेति हमन नइ गिरन, त चिरई मन कइसे उड़ा जथे, जिहाज मन भूइँया म काबर नइ गिरय, नान्हे-नान्हे चँदैनी मन ओतेक दुरिहा काबर हे, वोमन काबर नइ खींचावय ? –…