न्‍यूज पोर्टलों को विज्ञापन अब एनेलेटिक यूजर संख्‍या के आधार पर मिलेंगें

यह समाचार सुखद, उल्लास कारी और चमत्कारी है। वर्तमान राजनीतिक समय में इस समाचार के गहरे अर्थ हैं। कल तक होता यह था कि, वेब न्यूज पोर्टलों को जनसंपर्क / संवाद के उच्चाधिकारियों की अनुशंसा से विज्ञापन जारी होता था। यह देखा नहीं जाता था कि वेबसाइट के कितने वास्तविक पाठक हैं। कम पाठक वाले वेबन्यूज प्रबंधक / पत्रकार भी अपनी पहुंच की वजह से विज्ञापन पा रहे थे। बात प्रतीकों में कहें तो अच्छे पाठक वाले वेब प्रबंधकों / पत्रकारों को गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगना पड़ता था तब जाकर मुट्ठी दो मुट्ठी भीख मिलती थी। वहीं कईयों को कापी-पेस्‍ट के बाद भी, पूरा राशन का ट्रक उनके घर डिलीवरी कर दिया जाता था। खैर! जो भी होता था लकीर पीटने से सांप नहीं भाग जाता सो लीव इट।

वेब पोर्टलों को पिछले वर्ष मिले बेहिसाब सरकारी विज्ञापन की आस में बुलबुलों की तरह उग आए वेब न्यूज़ पोर्टलों की भीड़ को, यदि यह समाचार सत्‍य है तो वेब न्‍यूज एक्सप्रेस वे से छाँट देगी। ऐसे वेबपोर्टल जो व्हाट्सएप लिंक के सहारे अपने आप को सर्वश्रेष्ठ पोर्टल सिद्ध करते थे। उनके महान वेब पोर्टल इस सत्यान्वेषण से कल्लू कबाड़ी के गैरेज में खड़ी हो जाएगी। क्योंकि आप सभी जानते हैं कि डीपीआर विज्ञापन इन पोर्टलों का पोषण आहार है। अति उत्साह के साथ पांच-दस हजार लगा के वेब न्यूज़ के राजमार्ग में पोर्टल रेस में दौंड़ लगाने वाले आंगनबाड़ी से दलिया सेरेलेक नहीं मिलने से कुपोषित हो जाएंगे।

यह आवश्यक भी है, एक शोध के मुताबिक इंटरनेट की दुनिया में कॉपी पेस्ट या मिलते-जुलते समान डाटा के कचरे से इंटरनेट भर रहा है। इसकी गंभीरता को लोग समझ नहीं रहे हैं। ज्‍यादातर वेब पोर्टलों में होता यही है कि वे किसी बड़े वेबपोर्टल के समाचार को कापी कर दो चार शब्द उलटफेर करके प्रकाशित करते हैं। बिना संवाददाता नेटवर्क वाले ऐसे वेब पोर्टल अमेरिका और एशिया में स्थापित वेब सर्वरों में मिलते जुलते या समान अलग-अलग डाटा का कचरा भर रहे हैं। जिसे हमें क्या, हमें क्या, कहकर यदि आप अभी से ध्यान नहीं देंगें तो जैसे आज पर्यावरण की स्थिति है वैसी ही स्थिति भविष्‍य में इंटरनेट वेब की होगी।

लल्लू राम की खबर बताती है कि सरकारी विज्ञापन पाने के लिए कम से कम 50000 हिट प्रतिमाह होनी चाहिए। कुछ और सोर्स बताते हैं कि गूगल एनेलेटिक्‍स में न्‍यूनतम 5000 यूनीक यूजर प्रतिमाह होने पर ही सरकारी विज्ञापन मिल पायेंगें। हालांकि दोनों बातों में विरोधाभाष है। ज्‍यादातर वेबपोर्टल क्लिक को ही सबकुछ समझते हैं जबकि ऐसा कतई नहीं है, संचार तकनीकि की दुनिया में क्लिक किसी भी वेबपोर्टल की शान नहीं है, शान है यूजर। क्लिक यूजर तब बनता है जब क्लिकर्ता आपके समाचारों को पढ़ने के लिए आपके साईट में रूकता भी है। कोई भी विज्ञापन दाता यह स्‍वीकार नहीं करेगा कि भुगतान के बावजूद उसका विज्ञापन अदृश्‍य रहे, उससे संबंधित समाचारों को पाठक ना मिले।

तो उत्साही इंटरनेटी पत्रकार बंधुओं, अच्छे दिन के लिए युद्ध रत टाइपिस्टों, कंप्यूटर डाटा ऑपरेटरों और वेबसाईट व्यवसाय से जुड़े मित्रों, सरकार के द्वारा बनाये गए विज्ञापन वेब पोर्टल नियम की प्रतिलिपि प्राप्‍त करें और उसके शर्तो पर बहस करते हुए, आईये उसे पूरा करने का प्रयास करें। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो मेरे जैसे कई वेब पोर्टल नवीसों की दाल नहीं गलेगी, हमारे सपने टूट जाएंगे। हालांकि इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री/मंत्री की अनुशंसा प्राप्‍त करने वाले इस सभी नियम-शर्तों को ठेंगा बताते हुए मानक क्लिक/यूजर से कम होते हुए भी मजे से दाल-बाटी-चूरमा जीमते रहेंगे। बासी खाने वाले फरियादी नियम-शर्तों का ताला लगा सुनकर ‘झझकते’ रहेंगें।
सियाबर रामचंद्र की जय।

संजीव तिवारी

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