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छत्तीसगढ़ के लोक तिहार: दान के महान संस्कृति के परिचायक ‘छेरछेरा’ (मां शाकंभरी जयंती )

छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ म बड़ा ही धूमधाम, हर्ष अउ उल्लास के साथ मनाये जाथे। ऐला छेरछेरा पुन्नी अउ छेरछेरा तिहार घलो कथे। ऐला दान लेन-देन पर्व माने जाथे। एईसन मान्यता हावय कि ये दिन दान करे ले घर म धन धान्य के कोई कमी नहीं होवय। ये दिन छत्तीसगढ़ म लईका अउ बड़े, सबो घर-घर जाके अन्न के दान ग्रहण करथे। युवा डंडा नृत्य करथे।

छेरछेरा पर्व
छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल घलो परम्परा के निर्वाह करत हुए छेरछेरा मांगते हैं।

माई कोठी के धान ला हेर हेरा

छेरछेरा म लईका मन गली-मोहल्ला, घर मन म जाके छेरछेरा (दान) मांगथे। दान लेत समय लईका ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहिथे अउ जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देवय, तब तक वो मन कहिथे रथे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जभ्भे देबे तभ्भे टरन’। ऐंखर मतलब ये होथे कि लईका मन कथे कि, मां दान दो, जब तक दान नहीं देबे तब तक हमन नहीं जावन।
छेरछेरा पर्व म अमीर गरीब के बीच दूरी कम करे अउ आर्थिक विषमता ला दूर करे के संदेश छिपे हवय। ये म अहंकार के त्याग के भावना हवय, जेन हमर परम्परा ले जुड़े हवय। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करे म घलो ये लोक पर्व के छत्तीसगढ़ के गांव अउ शहर म लोगन मन उत्साह ले मनाथे।

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