इतवारी: हरेक रन में अघुवा, छत्तीसगढि़या बघवा !!

कोन मनखे किहिस होही कि मरद ल दरद नई होवय। ओकर चोखू बानी ल सहिराववँ, चरन ल चुरूवा-चुरूवा गंगाजल म पखारके चरनामृत लेववँ। कतको अप्पत, घेक्खर अउ बैसुरहा पूत होवय, पाँव म एक ठो सरहा काँटा गड़े ले दाई-ददा के सुरता बजुर करथे। दुख म सुमिरन सब करै सुख म करै न कोय। मनखे गुनहगरा होथे, कतको कर ले गुन के न जस के। इतिहास पोठ, जबर अउ चाकर छाती वाले के पाँव पखार पागा पहिरा अपन छाती ठोकथे। गुन गाथे, गरब करथे। आँखी म टोपा बाँध छू-टमर के नियाव…