इतवारी: छेरी के छेरा छेर बरकनिन

जन मानस के उछाह अउ प्रसन्नता समाज म परब बनके सिरजथे-पनपथे। इही परब पानी कस धार एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी बोहावत -सरकत परम्परा बन जथे। परम्परा अउ संस्कृति कोन्हो भी समाज, देश, काल अउ राज के आरूग चिन्हा होथे। देश, काल अउ वातावरण के सपेटा म परके परब, परम्परा, रीत-रिवाज, संस्कृति के चोला, रंग- रूप अउ सँवागा भले बदल जथे फेर आत्मा नई बदलय। आत्मा ठाहिल रहिथे। गीता म तको आत्मा ल अजर, अमर अउ अजन्मा बताए हवय। सीधवा गँवई शहर संग संघरके लाज म अपन संस्कार ल चपके-धरे-लुकाए भले बइठे…