एक झिन महतारी अपन बेटी के दिमाक ल सर्विसिंग करत रिहिस हे – ‘जऊन ह खेत के मुँह, मेहनत के पसीना अउ किसान के पीरा ल नइ देखे हावय, वोह अन्न के इज्जत का जानही-करही। गलती तुंहार नइहे बेटा ! गलती तो हमार हे जऊन तुंहला ये संस्कार के साँचा म नइ ढाल पाएन, एला तुंहला नइ बता-सीखा पाएन।’ बात अन्न के बरबादी अउ बरबादी के अन्न बोले तो खाद्य सुरक्षा के होवत रिहिस हे। भारत के गाँव अउ नानमुन कस्बा मन म आज ले समाज ल बइठार के परसा…