आया के धरहा अउ चोक्खा कैंची-चाकू ले काट-बोंगके जनमे चीरहा जींसधारी लइका मन के धियान कोन कोति गिस होही तेला नइ बता सकवँ। फेर गँवइहा दाई के मीठ मया भरे गारी, अथक मेहनत अउ सार्थक साधक हाथ ले अवतरे धोती युगीन मनखे मन के मइन्ता म इहीच आइस होही। ये पार नदी वो पार नदी, बीच म ठुड़गा रूख रे !! सोन चिरइया गार देहे, हेरे के बेरा दुख रे !! हहो जी ! आप बिल्कुल सही पकड़े हैं। हम तभो धोती युगीन रहे हवन अउ आजो धोती युगीन हवन।…