इतवारी: जेला रेंगाएन अंगरी धराके टेटुवा उही दबाए !!

बजार अउ माॅल म अबड़े अंतर होथे। छुट्टा बजार म पताल लेबे या कोनो छोटे -मोटे दुकान म कांही जिनिस बिसाबे त उन झिल्ली नइतो झेंझरा कपड़ा के झोला देथे। उही भोरहा म माॅल चले गएन। उहाँ जाके का देखथन जम्मो झोला झर गे हवय। झोला खातिर मालिक के मुँह ताके लगेन। मालिक कहे – साहब। हमर इहाँ समान भर बेंचथन, झोला नइ देवन। झोला बर तुँही मन ल उपराहा पइसा देहे बर परही। हम कहेन त समान कइसे ले जइन ?
वो ह तोर समस्या हरे।
मालिक कथे- पहिली आवव पहिली पावव के योजना बनाके हम पहिली अवइया ले झोला के चार आना माँगेन। बीच म अवइया ले आठ आना माँगेन।
अब ?
अब तो सरबस झोला के कीमत तुँही मन ल देहे बर परही।
अइसे काबर ? त कथे -साहेब ये ह गिराहिक फँसाए के गरी हरे।
हम कहेन – पीछू पइत तको तो समान बिसाए रहेन, तभो अइसेनेहे कहे रहेव, वो हिसाब म हमार झोला के पइसा के बाँचे हे। या तो हमला झोला देवव या तो ओकर पइसा दे देवव, जेकर हम झोला के बिसाके ला सकन। मालिक कहे- तइहा के बात ल बइहा लेगे साहेब। बजार म झोला नइहे अउ झोला बिसाए बर हमर खीसा ल खसू होए लागथे। तुँहार ले जमथे ते तुमन जमावव।
कोनो कहीन – बजार म जउन दुहरा-तीहरा कीमत म झोला मिलत हे वो कहाँ ले आथे ? त वो मुक्का हो जथे।
हम बड़ा सोच म परगेन। एति ले धर चाहे ओति ले धर, जब धराही ते कान। मालिक के बाते अलग बूता अलग। माल म तो घुसरि गे हवन, अब जाइन त जाइन कहाँ ?
जम्मो सगा म चींव-चाँव होए लगिन। कोनो फुस्स ले कहे -हमला तो पीछू पइत के झोला के आधा पइसा मिल गे हे। कोनो काँव -काँव करिन त पता चलिस के ओला बाँड़ी बछिया के पूछी नइ पाए हे। कोनो कोकड़ा कस गर ल ओरमाए कलेचुप खड़े रहय। हम जान गएन उन्कर पेट गोंह-गो ले भरे हावय। ये तो जऊँहर भइगे मालिक ! जेला अंगरी धराके रेंगे बर सीखाएन, उही हमर टेटुवा दबाए लगीन। भूँइया के रेंगइया ल चैपाया चढ़इया मन कइसनो रेंगा सकत हे। छूरी उन्करे हाथ म हावय, हम तो कलिन्दर भएन। अब छूरी गिरय के कलिन्दर, कटाना तो कलिन्दरे ल हे।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..