इतवारी: तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती !

एक झिन महान आत्मा ल 1 जनवरी के संदेष पठोएवँ- बंगला के रहइया ल कंगला कोति ले आंग्ल नववर्ष के गाड़़ा-गाड़ा बधई। तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती कस संदेषा लउहे लहुट तको आइस- आंग्ल के बोरा ल जींस काहत पहिरके टेस मारे के बेरा तो आंग्ल अउ भारतीय के निरवार नइ करस।
जऊँहर होगे गा। हूम देवत हाथ जरगे, बीड़ी पीयत मेंछा। फेर दिल तो बच्चा हे जी। बच्चा खाँध म चढ़गे। बेताल कस ताल ठोंकत सवाल पेल दिस- ये आंग्ल नववर्ष अउ नववर्ष प्रतिपदा होथे का ?
बसन्त के वैभव, केंवची-कोंवर पाना मन के आँखी उघरई, नवा चेतना, नवा उत्थान, नवा जिनगानी के आरंभ चैत्र प्रतिपदा ले होथे। इही दिन मधुमास के रूप म प्रकृति नवा सिंगार करथे। वर्ष प्रतिपदा ले वासन्तिक नवरात्र तको प्रारंभ होथे। जेला जम्मो भारतीय समाज नौ दिवसीय शक्ति परब के रूप म मनावत शक्ति के भक्ति म बुड़ जथे। वर्ष प्रतिपदा चैत शुक्ल प्रतिपदा के मनाए जाथे। सृष्टि के रचयिता ब्रम्हाजी इही दिन संसार के रचना करे रिहिसे। त्रेतायुग म प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक इही दिन होए रिहिसे। इही दिन द्वापर युग के महाभारत के धर्मयुद्ध म धर्म विजय होए रिहिसे अउ राजसूय यज्ञ के संगे -संग युधिष्ठिर संवत प्रारंभ होए रिहिसे। तेकर पीछू कलियुग म विक्रम संवत शुरू होइस जेन ह सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्न सभा ले होइस।
1 जनवरी ले शुरू होवइया कैलेंडर तो ग्रिगोरियन कैलेंडर हरे। एकर शुरूआत 15 अक्टूबर 1582 के इसाई समुदाय ह क्रिसमस के तारीख निश्चित करे खातिर करे रिहिन। काबर के एकर पहिली 10 महीना वाले रूस के जूलियन कैलेंडर म अबड़ अकन कमी होए के सेति हरेक बछर क्रिसमस के तारीख निश्चित नइ होए पावत रिहिसे। ये उलझन ल सुलझाए खातिर 1 जनवरी के वोमन नवा बछर मनाए लगिन।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार नवाबछर 1 जनवरी ले नहीं, भलकुन चैत महीना के अंजोरी पाख म ‘शुक्ल प्रतिपदा’ ले ‘नवसंवत्सर’ के नाम ले आरंभ होथे।
भारतीय हिंदू कैलेंडर म काल गणना सूर्य अउ चंद्रमा के गति के अनुसार होथे। जऊन पूरी तरह वैज्ञानिक, तर्कसंगत अउ पौराणिक हवय। विष्व म सबले विस्तृत, व्यापक अउ विष्वसनीय हवय। हिन्दू महीना मन के नामकरण नक्षत्र मन के नाम ऊपर ले होए हवय। जेन महीना के जेन नक्षत्र म चंद्रमा पूर्ण होथे ओकर नाम ओकरे अनुसार हो जथे, जबकि विदेषी महीना मन के नामकरण कोनो राजा, देवी-देवता, तिहार या कोनो भी नाम से रख लेथे। हमार बारो महीना मन के नामकरण नक्षत्र मन के अनुसार अइसन हे –
चैत्र -चित्रा नक्षत्र, बैसाख-विषाखा नक्षत्र, जेठ (ज्येष्ठ)- ज्येष्ठा नक्षत्र, असाड़-असाड़ा नक्षत्र, सावन (श्रावण) -श्रवण नक्षत्र, भादो (भाद्रपद) – भाद्रपद नक्षत्र, कुँवार (आष्विन)-अष्विनी नक्षत्र, कातिक-कृतिका नक्षत्र, अगहन (मार्गषीर्ष) -मृगषिरा नक्षत्र, पूस-पुष्य नक्षत्र, माघ-मघा नक्षत्र, फागुन-फाल्गुनी नक्षत्र।
दुनिया के जम्मो कैलेंडर कोनो न कोनो रूप म भारतीय हिंदू कैलेंडर के ही अनुसरण करथे। भारतीय पंचांग अउ काल निर्धारण के आधार विक्रम संवत हरे, जेकर जनमन मध्य प्रदेश के उज्जैन नगरी ले होए हे। ये हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल म जारी होए रिहिसे तब ले येला विक्रम संवत के नाम ले तको जाने जाथे। विक्रमादित्य के जीत के पीछू जब उन्कर राज्याभिषेक होइस तब उन मन अपन प्रजा के जम्मो ऋण ल माफ करे के घोषणा करे के संगे-संग इही भारतीय कैलेंडर ल जारी करे रिहिन। जेला विक्रम संवत के नाम दिए गइस।
भले आज दुनिया भर म अंग्रेजी कैलेंडर के प्रचलन बाढ़ गेहे तभो ले भारतीय कलैंडर के महत्त्व कम नइ होए हे। जम्मो शुभ काम मन के मुहुरत अउ भूत-भविष्य के गरभ म लुकाए -छुपे रहस्य के जानकारी सब भारतीय कलैंडर के अनुसार ही पाए जाथे।
आजो हमन अपन तीज-तिहार, महापुरुष मन के जयंती-पुण्यतिथि, बर-बिहाव अउ आने सबो बूता के निर्धारण चंदा-सुरूज के गति- गणना के अनुसार होथे, जइसे कि राखी अउ होली पुन्नी (पूर्णिमा) के दिन ही आथे। कृष्ण जनम अष्टमी के दिन होथे, राम जनम नवमी के मनाए जाथे, देवारी ल अमावस के मनाथन।
उही किसम ले सुरूज मेष राषि अउ गुरू कुंभ राषि म होए म हरिद्वार कुंभ होथे। मकर राषि म सुरूज अउ वृषभ म गुरू होए ले माघ महीना के अंधियारी पाख म प्रयाग कुंभ होथे।
कर्क राषि के गुरू अउ सुरूज होवय त अंधियारी पाख म गोदावरी तट म नासिक कुंभ होथे।
मेष म सुरूज अउ कुंभ म गुरू होए ले अवन्तिका उज्जैन म कुंभ होथे।
इहीच गणित के हिसाब से दसहरा, देवारी, होली, राखी अउ इहाँ तक के महावीर जयन्ती, गुरूनानक जयन्ती अउ बुद्धपूर्णिमा तको मनाथे।
हमार पंचाग ल येहू पता रहिथे कि कोन दिन सुरूज कतका बेरा उही अउ कतका बेर चंदा। विदेषी पंचाग मन म अइसन नइ होवय, काबर के उन्कर पंचाग अवैज्ञानिक, असंगत, असंतुलित, विवादित अउ काल्पनिक हावय।
काल गणना के इही वैज्ञानिक अउ खगोलीय गणित के माध्यम ले हमार पूर्वज मन पहिलीच ले जानत रिहिसे कि पृथ्वी गोल हे अउ अपन धुरी म घूमत रहिथे। पृथ्वी म गुरूत्वाकर्षण शक्ति हावय। इहाँ तक कि उन प्रकाष के गति ल तको ल जानत रिहिसे। हमार पूर्वज अउ महान खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के सम्मान करे बर हमला नइ भुलाना चाही। सबले पहिली भास्कराचार्य ह अपन बेटी लीलावती ल श्लोक के माध्यम ले बतादे रिहिसे कि पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण भारी ले भारी वस्तु तको धरती म गिर जथे।
संत झूलेलाल, गुरू अंगददेव, आर्य समाज के संस्थापक दयानन्द सरस्वती अउ संध के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के जनमदिन तको इही प्रतिपदा हरे।
जय जोहार !
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..