अइसे तो मैं जनम के घुघुवा हरवँ। अंधियार म जोर -जार मुँह मारके अंजोर करईया सजोर जीव। कोलिहामन अंधियार म मुँहू ल करिया करथे। मैं अइसन नइयवँ। दिन -रात आठो काल बारा महीना मुँह भर करिया पोते रहिथवँ।
मोर सिध्दांत हे करिया घलो हँ एक ठो रंग हरे। ओला काबर उदास करवँ। फेर जबले बकर्रा बिकलांग षिक्षा ल अपन लिज्झड़ खाँध के पलौंदी दे हववँ। बिद्वान- बुधमान के फर्जी पागा हँ मोर मुड़ म आके जबरदस्ती खपला गे हे। बिद्या के अरथी ल बोहे-बोहे आज ले भटकत, रेंगत, किंदरत हवँ। कोई ठिकाना मिलबे नइ करय।
बिद्या अपन मरे के पहिली मोला एक ठो बात सिखाए रिहिसे:-
कुत्त सुत्त बक्क धियानम।
जेकर सोझ, सहज, सरल अउ सुग्घर अनुवाद हे – स्वान निद्रा बको ध्यानम्। उही दिन ले मैं घुघुवा से कुकुर लहुट गए हववँ।
ए जिनगी बढ़िया मजेदार हे। पर भरोसा तीन परोसा दूध -बिस्कुट खा। ससन भर अँटिया। जब मन करिस दउँड़के चूम-चाँट ,चुमवा-चँटवा। सोफा -गद्दा के कमी नइ राहय। अपन पाहरो म फसर-फसर सुत। पर के पाहरो आ गे त रकमकाके उठ। आगू वाला सरजी राहय के फरजी राहय मुँह फार के भूँक -अरे ! स्साले मनखे, कुकुर के जुठा ल खावत हस।
जे दिन ले कुकुर भए हौं। नींद सहवास होबे नइ करय। भइगे निंदा सहवास म जिनगी पहावत हे।
पता नहीं कइसे-कइसे ? काली मोर मुठभेड़ एक ठो बड़े जिन अलकरहा जिनावर ले हो गिस। ओ हँ ककरो खावत ल मुँह लमाके झटक लेवय। ओकर खाए के दाँत अलग देखाए के दाँत अलग। मुँह म अलग दाँत पेट म अलग।
सब के बात ल धियान से सडयंत्रपूर्वक सुने बर कान ल मार मरे -जीओ बढ़ो डारे रहय। पेट अइसे के दुनिया भर के झूठ -फरेब, घूस -फूस ,लूट- खसोट, भस्टाचार -अनाचार सब्बो घुसरे-पचे के लाइक टोम- टोम ले। डाँका डार बिन डकारे ढोंके जा।
चारो पाँव सत्ता के चारपाई कस पाया जब्बर अउ चेम्मर। जम गे ते जम गे। निच्चट छोटे आँखी के। छोटे आँखी माने एकदम नियतखोर। पूछी निचट नानकुन। माने ओ हँ जेन करे सकय डंका के चोट म करे सकय। पिछौत म पूछी छपटाके छटपटावत भागे के बाते मत आवय।
मैं सोंचे लगेवँ स्सारा। सबो तन -मन बिलकुल बिरबिट करिया हे। आखिर है कोन ? कहाँ ले आए हे ?
सूचना के अधिकार म आवेदन लगा देवँ। काँहीं जुवाब नइ मिलिस। सूचना के अधिकार बइमान होके सोचना के अधिकार लहुटगे। ए परजातंत्र ए। आप ला हम ला सबला अबला- सबला सब उप्पर हमला करे के बरोबर अधिकार हे। हमला के प्रकार मनसा -बाचा- करमना कुछु भी हो सकथे।
कोनो तरक -कुतरक काँही करय ? अपन ल पर के गर-पर कुतरे -कतरे से मतलब। कोनो ल फरक परय के झन परय। अपन रूतबा म चमचमावत चमाचम बरक (वर्क) बज्जुर चघना -जमना चाही। कर हमला निज भला। मैं खुरच -खुरचके बेद्दम भूँकेवँ। जइसने पाएवँ ओइसने बकेवँ। डरथन का कोनो ल ?
ओ रहय के त्रेता के अंगद अऊ कलजुग के सत्ताधारी कस अपन चाल म अडिग। चुपचाप रेंगते राहय।
मैं पाछू सुनेवँ। लोगन मन काहत रहय – हाथी चले बजार कुत्ता भूँके हजार ! हाथी चले बजार कुत्ता भूँके हजार !! मोर भेजा फ्राई हो गे। भेजा फ्राई होए ले दिमाक के बत्ती बरिस। भेजा फ्राई के संगे-संग मुँह फराई तको होगे। तब मैं जानेवँ। अरे ! ए हँ तो हाथी ए ।
ओ हँ बजार जात रिहिसे। लोगन के इज्जत -आबरू, जान-माल, धान-पान, जमीन-जायदाद सबके सउदा करे बर। सिरिफ अउ सिरिफ अपन भोभस ल भरे खातिर।
मैं भूंकते रहि गेवँ।
ओ भूँकई के रोस म मोला रसरसी बुखार हो गे। रतिहा बने घस-घस ले नींद सहवास हो गे। जेन घोड़ी ल दूल्हा चढ़े बर किराया म देके मैं बिंदास सुते रहवँ। उही म असवार होके जोग मोर आगू म आके ठढ़िया गे।
मैं बने छू – टमर , दाब – चपकके देखेवँ। सपना ए के सउँहत ?
मैं चकरित खा गेवँ। एकदम ठाँय -ठाँय सउँहत हे।
योग कहिथे – सउँहत हौं ! अउ काला टमरथस ?
मैं चेचकारत कहेवँ – का तमासा ए यार ? भाग ए मेर ले।
सब मोर ले सपनो म मिले बर तरसथे। तैं भगवारथस। तोर ले अभागा अउ चंडाल कोन होही रे रोगहा ?
मैं कहेवँ – सपना म मिल चाहे सउँहत मिल। ए आजकाल के मिलन संजोग हर कभू भी मुद्दा बनके हुद्दा लगाए लगथे।
ओ कहिथे – मोर बात ल तो सुन।
कहेवँ – बकर।
ओ अकर -जकर ल बकर -बकर हँफरे कस देखिस। अपन मरावय त काला बतावय कहिथे यार। कहिस -एमन मोर हतिया- बधिया करइया हे। मैं बकबकहा बकबकाए ओकर मुँहु ल देखते रहि गेवँ।
ओ समझ गे। मोर तो अत्ता माझी सटक लिस। आगू कहिस -मोला गोद ले डारे हावय। अंतर रास्ट्रीय स्तर म मोर नाँव के उत्सो -उछाह – दिवस मनइया हे।
मोला बिस्वास नह होवत राहय। बिस्वास होवय चाहे झन होवय। आजकाल बजार म बन -बुनके ठन -ठसन से रहिना हे त अबिस्वास परगट करना जरूरी हे। अविष्वास प्रस्ताव के आगू म बड़े-बड़े बंचक अउ सुरबइहा तको काबू म आ जथे। काबर के शक से आगू वाले के जी धक -धक हो जथे। धक -धक से धाक जमथे। जेकर ले मनखे म चक निखार आथे। लॅक (भाग) सँवरथे। ए परकार ले शक इस लक होथे।
ओकर बाढ़त पद -कद ल गुन -देखके मैं बद बिचार लिए भद ले अपन हद म गिर गेवँ। मोर मन म पवित्र इरखा (ईर्ष्या) के बिरवा फूट गे। एकर पहिली के ओ हँ बिरवा ले पेंड़ौरा बन जाय अउ आँधी तूफान ला -मता देवय। मैं अपन धीरज के धसकनहा पुलिया म ओ बिरवा ल चपक -दाबके राखेवँ।
तेकर पीछू ओला समझाएवँ- बने तो हे। तोर भाग सँवर गे बाबू। तोला सब के सहजोग मिलही। जेकर राजयोग होथे न उही ल अइसन संजोग -सहजोग -उपभोग सब जोग- भोग संघरा मिलथे। गरीब -गुरबा के भाग म अइसन कहाँ ?
नंगरा सपनावय सूट -बूट। चोरो -बोरो हे चारो खूँट।
ओकर थोथना ओरम गे। ओ हँ ओरमाए -ओरमाए कहिस-हाँकी तो हमर रास्ट्रीय खेल हरे। कतिहाँ तक ओकर हाँका परे हे ? महिला दिवस तो घलो मनाथन। महिला मन के हाल -बेहाल के का हाल -चाल हे ? जानत तो हस। सरम (श्रम) कानून बने हे। फेर कोन बेसरम मनखे मन देस ल खावत -चबुलावत -चुचरत -पगुरावत-पचावत हे ?
साक्षरता अभियान चलिस। कतेक झन अइसे साक्षर हे जेन सहींच के डिगरी धरे हे ? सहींच म डिगरी धरे हे तिन्कर सहींच म का हाल हे ?
जम्मो धान परिया म बिन मचान बाँधे छटके -बगरे परे हे। किसान बपुरा उघरा-नंगरा मुड़ धरे मेंड़ म खड़े हे। खाद्य सुरक्षा कानून के आड़ म कोन हँ फोकट म झोंका -झोंकाके उँंसर- पुँसर के खावत हे ? गरीबी रेखा के डाँड़ ल कोन हँ अपन हिसाब से मेटत -बनावत खेल- खेलत हे ? पिछड़ा वर्ग म के ठन जात हावै ? आरक्षण के नाम म ओकर जगहा कतका कन हावय ? हे एकर जुवाब ककरो करा ?
सहीं बात तो ए हे के राजा हँ जेकर पीठ म हाथ ल फेरे हे तेकर दिन कभू नइ फिरे हे। अउ उल्टा भूलीन काँदा खुँदे कस जागे भाग हँ भाग गे हे। राजा के पीठ म हाथ फेरे अउ छेरी के चरे न कभू उल्हिस न कभू उल्हय। इही बात हँ सोला आना सच ए।
ओकर गोठ ल सुनके मोर मुँहु सुरसा कस फराए के फराए रहि गे। ओ बजरंगी सूट -बूट पहिनके जझरंग ले लंका लांघ गै।
जय जोहार !
धर्मेन्द्र निर्मल
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