पोला तिहार : गांव के जनजीवन म खुशहाली के चिन्‍हारी

मनोज सिंह, सहायक संचालक

रायपुर, भारतीय संस्कृति म पशु पूजा के परम्परा रहे हे, एखर प्रमाण सिन्धु सभ्यता म घलोक मिलथे। खेती किसानी म पशुधन के महत्व ल बताने वाला पोला परब छत्तीसगढ़ के सबो कोति परम्परागत रूप ले अछाह के संग मनाए जाथे। खेती किसानी म पशुधन के उपयोग के प्रमाण प्राचीन समय ले मिलथे। पोला मुख्य रूप ले खेती-किसानी ले जुड़े तिार ये। भादो महिना म खेती किसानी के काम खतम हो जाय के बाद अमावस के ये तिहार मनाए जाथे। काबर कि इही दिन अन्न माता गरभ धारण करथे मने धान म इही दिन दूध भरथे। एखर सेती ये तिहार मनाए जाथे। पोला परब महिला, पुरूष अऊ लइका मन बर घलोक विशेष महत्व रखथे।

पोला परब के पीछू मान्यता हे कि विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप म धरती म आये रहिन, जेन ल कृष्ण जन्माष्टमी आठे कन्‍हैया के रूप म मनाए जाथे, तब जन्म ले ही ऊंखर कंस मामा उंखर जान के दुश्मन बने रहिस, कान्हा जब छोटे रहिस अऊ वासुदेव-यशोदा के इहां रहत रहिस, तब कंस ह कई पईत कई असुर मन ल ओ ल मारे भेजे रहिस। एक पईत कंस ह पोलापुर नाम के असुर ल भेजे रहिस, एला घलोक बाल कृष्ण ह अपन लीला के चलते खेलते-खेलत मार देहे रहिस अऊ सबला अचंभित कर दे रहिस। वो दिन भादों महिना के अमावस के दिन रहिस। ये दिन ले एला पोला कहे जाए लगिस, ये दिन लइका मन के दिन कहे जाथे।

पोला परब के पहिली छत्तीसगढ़ म बिहाये बेटी मन ल ससुरार ले माईके लाय के परंपरा हे। पोला के बाद बेटी मन तीजा के तिहार मनाथें। तीजा के परब के सामाजिक अऊ सांस्कृतिक महत्व ल देखत मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ह ये दिन सामान्य अवकाश के घोषणा करे हें। पोला तिहार किसान मन बर विशेष महत्व रखथे। किसान ये दिन धान के फसल धान लक्ष्मी के चिनहा मानके, बने अऊ भरपूर फसल के कामना करथें। ये दिन भिनसरहा ले किसान मन बईला मन ल नउहा के पूजा अर्चना करके किसानी बर दुगना उछाह ले जुटे के परन लेथें। बईला मन के पूजा के बाद किसान मन अऊ ग्वाला मन गांव म बईला दउड़ के आयोजन करथें। छोटे लइका मन घलोक माटी के बईला मन के पूजा करथें। जिहां ओ मन ल दक्षिणा मिलथे। गांव मन म कबड्डी, फुगड़ी, खो-खो, पिट्टुल जइसे खेलकूद के आयोजन होथे। माटी के बईला मन ल लेके लइका मन घर-घर जाथें। ये तिहार पशुधन संवर्धन अऊ संरक्षण के आज घलोक प्रेरणा देथे।

छत्तीसगढ़ म धान के खेती सबले जादा होथे मे पाए के इहां चावल अऊ एखर से बनइया छत्तीसगढ़ी पकवान विशेष रूप ले बनाए जाथे। ये दिन चीला, अइरसा, सोंहारी, फरा, मुरखू, देहरौरी संग कई आन पकवान जइसे ठेठरी, खुर्मी, बरा, बनाए जाथे। ए पकवान मन ल माटी के बर्तन, खिलौना म भरके पूजा करे जाथे, एखर पीछू मान्यता हे कि घर धनधान्य ले परिपूर्ण रहय। नोनी मन ये दिन घर म माटी के बर्तनों ले सगा-पहुना के खेल घलोक खेलथें। एखर से सामाजिक रीति रिवाज अऊ आपसी रिश्ता अऊ संस्कृति ल समझे के घलोक अवसर मिलथे। ये दिन छत्तीसगढ़ म गेड़ी के जुलूस निकाले जाथे। गेड़ी, बांस ले बनाए जाथे जेमां एक लम्बा बांस म नीचे 1-2 फीट ऊपर आड़ा करके छोटे बांस लगाए जाथे। फेर ये मा बैलेंस करके, खड़े होके रेंगें जाथे।

पोला परब म माटी के खेलौना मन के अड़बड़ बिक्री होथे। गांव म परंपरागत रूप ले काम करइया हस्तशिल्पी, बढ़ई अऊ कुम्हार समाज के मनखे एखर तैयारी अड़बड़ दिन पहिली ले करना शुरू कर देथें। ये तिहार ले ओ मन ल रोजगार घलोक मिलथे, मनखे माटी के बर्तन मन के उपयोग करत एक दूसर के घर म कलेवा पहुंचाथें। ये दिन गांव मन म मितान बदे के घलोक परम्परा हे। ए दिन एक दूसर के घर म मेल मिलाप बर जाए जाथे। ये परब सामाजिक अऊ सांस्कृतिक रूप ले घलोक हमला मजूबत करथे।

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