घुघुवा के खोंधरा म पारस पथरा होथे। पारस पथरा लोहा ल सोना म बदल देथे। भारत सोन- चिरई हरे। ये सोन चिरईया के खोंधरा म पथरा नई होवय। येकर खोंधरा के तिनका -तिनका संस्कृति ले बने हावय। संस्कृति ह पारस पथरा कस लोहा ल सोन नई कर सकय, फेर धूल ल फूल अउ कोइला ल हीरा बनाए के बेद्दम दम रखथे। सोन चिरइया ह धान के कटोरा म दाना चुगथे। धान कटोरा छत्तीसगढ़ ह संस्कृति अउ संस्कार के बटकी हरे। हर छत्तिसगढि़या बटकी म बासी, चुटकी म नून खाके हर दिन ल तिहार बना-मना लेथे। अभाव के अमाउस ल उछाह के निर्मल पुन्नी उजास म बदलइया संत साधुवाद के हकदार होथे। नागपंचमी के बिहान भर कुँवारी कन्या अउ सुहागन मन भोजली बोथे। पीछुवाए मन अष्टमी तक तको बो लेथे। बाँस के टुकनी म अखाड़ा के माटी लाके गहूँ या जौ ल बोए जाथे। अखाड़ा के नंदाए ले नवा माटी म काम चल जथे। रोज हरदी पानी छींचके दीया बारे जाथे। सावन-पुन्नी के राखी के दिन राखी चढा़के बिहान भर विसर्जित करे जाथे। विसर्जन के बेरा जम्मो एके संघरा गाँव म घुमावत ले जाथे जँवारा बरोबर। भोजली छत्तीसगढ़ के छोटे जँवारा हरे। देव-धामी अउ बड़े मन के चरण म भोजली रख के सम्मान देहे जाथे। बूढ़ी दाई अउ भौजाई के कान म खोंच के ‘भोजली’ बदथे। ‘भोजली पर्व’ ल ‘‘मित्रता दिवस’’ कहे म कउनो किसम के संकोच अउ शरम मोला नई लागत हे। अवइया ओन्हारी के फसल ह भोजली के बिरवा म अपन झलक देखा जथे। बहू-बेटी मन के ये तिहार ‘भोजली’ कहूँ ‘भोजलिया’ त कहूँ ‘कजरी’ के नाम से जाने जाथे। अब कोनो अँड़हा अउ उठमिलवा ही कहि सकत हे कि छत्तीसगढ़ म नारी के सम्मान नई होवय। नारी सम्मान अउ स्वतंत्रता के सिरिफ भासन भरोसा रासन झोंकइया मन ल कभू ‘संस्कृति -झाँकन’ कार्यक्रम म तको झपाए के उदीम करना चाही।
सावन पूर्णिमा के मनइया रक्षाबंधन भाई -बहिनी के अल्लार मया के प्रतीक हरे। राखी के दिन बहिनी अपन भाई के कलाई म राखी बाँधके बिनती बिनोथे – हे भगवान ! मोर भाई के जिनगी म सरीदिन उछाह अउ मंगल भरे रहय। महराज मन के बाद कोनो रक्षासूत्र बाँधे के साहस, अधिकार अउ क्षमता रखथे त वो सिरिफ अउ सिरिफ बहिनी होथे। दाई-ददा ल जीयत जागत भगवान के संज्ञा देहे जाथे, त बहिनी बर संज्ञा शोध के विषय हरे। वो बहिनी जउन अपन बचपन के घर, अंगना- दुवार, संग- सहेली इहां तक के अपन ददा-भाई के संग छोड़ आँसू ल धरे अनचीन्हे-अनजान खूँटा म बँधना स्वीकार कर लेथे। बहिनी ले बढ़के अइसन तियाग के जीयत मूर्ति संसार म दूसर कोनो अउ हवय, त कोनो बता देवय ?
‘भक्ति ले भगवान भकुवाए’ राजा बलि सब जानते हुए कि ये बठवा अबड़ नटवा अउ उठुवा हे। तभो तीन पग म सर्वस्व दान कर दीस। बलि के भक्ति ले प्रसन्न बठवा (वामन देवता) भगवान विष्णु बैकुण्ठ ल तियागके बलि के राज्य के रक्षा खातिर उहेंचे रेहे लगिस। माता लक्ष्मी परेशान होगे। वोह बम्हनीन के रूप धरके राजमहल गइस। राजा बलि ल राखी बाँधिस। राजा बलि राखी बाँधे के बल्दा बम्हनीन भेषधारी माता लक्ष्मी ल कुछु माँगे बर कहिस। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु ल बैकुण्ठ लहुटाए के बिनती करिस। कहे जाथे कि ये राखी के परम्परा उही पइत ले चले आवत हे।
अतके भर नहीं, राखी के डोर म एक ताग महाभारत काल के तको हे। जनकल्याण खातिर श्रीकृष्ण ल शिशुपाल के बध करे बर परिस। युद्ध करत श्रीकृष्ण के अँगरी म चोट लगगे। सोला हजार एक सौ आठ पटरानी म सब बोकबाय देख भरके रहिगे। द्रोपती ह अपन नवा लुगरा के पल्लू ल चीरके ओकर बोहावत लहू ल थाम्हिस। ‘मया के मोहाए मोहना’ उही दिन अपन बहिनी द्रोपती ल बचन दीस कि समे परे म तोर बज्जुर मदद करहूं। कुरू सभा म जुआ म हारे द्रोपती के जब दुसाशन चीरहरन करे लगथे, तब मोहन ओकर लाज बचाइस।
अइसेनेहेच मऊत के देवता भाई यम अउ बहिनी यमुना के कहानी तको हवय, जेकर ले ये राखी तिहार के जनमन होए हावय।
त संगवारी हो चलय ‘भोजली बद’ ‘मितानी’ के रसम निभाबोन अउ राखी बँधवाके ‘दीदी बहिनीमन’ के मया-दुलार पाबोन।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल
इतवारी – भोजली के मितानी, बहिनी के मया !!
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