एक झिन महतारी अपन बेटी के दिमाक ल सर्विसिंग करत रिहिस हे – ‘जऊन ह खेत के मुँह, मेहनत के पसीना अउ किसान के पीरा ल नइ देखे हावय, वोह अन्न के इज्जत का जानही-करही। गलती तुंहार नइहे बेटा ! गलती तो हमार हे जऊन तुंहला ये संस्कार के साँचा म नइ ढाल पाएन, एला तुंहला नइ बता-सीखा पाएन।’
बात अन्न के बरबादी अउ बरबादी के अन्न बोले तो खाद्य सुरक्षा के होवत रिहिस हे। भारत के गाँव अउ नानमुन कस्बा मन म आज ले समाज ल बइठार के परसा पान के पतरी म पंगत खवाए जाथे। पंगत के नीति, नियम अउ रंगत नंगत बेवस्था संगत होथे जेकर ले अन्न के बरबादी ल थाम्हे के चिंता-झंझट रहिबे नइ करय, काबर के पंगत के पगरइत मन समाज के संगे-संग अन्न के मान-महात्तम ल ध्यान धरके बूता-बेवस्था के बीड़ा उठाए रइथे।
पंगत म बइठके खाए के कई फायदा होथे – एक पालथी मारके बइठे म योग परिवार के सदस्य पद्मासन संग संजोग हो जथे। दूसर परसा पान या केरा के पाना म खाना स्वास्थ्य बर साबूत हितुवा साबित होथे। तीसर बर्तन धोए बर जउन पानी के प्रयोग होतिस ओकर बचत हो जथे। चौथा म पतरी चाँटत रम जथे त कुकुर मन के गंगा जवई के खरचा म बचत हो जथे, माने उन्कर बर विकास के गंगा बोहाके ‘तुंहर विकास तुंहर दुवार’ के नारा लगावत गाँव म धमक के धमकाए लगथे। बाँचे पाना-पतरी ल भूइयाँ या घुरूवा म दबाके के ऊँच किसम के जैविक खातू बनाए जा सकथे। पंगत के अउ कुछ-कुछ फायदा मन ल इही मेरन छोड़े म शोधकर्ता मन के मेहनत-इमान अउ हमर मान -सम्मान बर ठँऊका भल, उचित अउ अनुकूल समझदारी होही।
विकास के मुखौटा पहिरे शहर रूपिया पैसा धन के रूवाब अउ ऊँचहा बड़का मान बड़ई के खुवाब ल पोटारे बफर सिस्टम ले खाना खवाथे। बफर सिस्टम ल परसाई के परसाद चीखइया मन पंचामृम मिलाके बम्फर सिस्टम अउ बफेलो माने भैंसा सिस्टम तको कहिथे। बम्फर वास्तव म बम्पर हरे, येला आगू चलके चलागन के हिसाब से बम्फर ही कहिहौं। चोर -चोर मौसेरा भाई कस बफर अउ बम्फर दूनो सौतेला भाई हरे। सौतेला ये सेति काबर कि बफर ह सही म बफे हरे जेकर मायने अइसे जगा जिंहा खाए पिए के जिनिस लेके खाए जा सकय अउ बफे/बफर खाना माने अपन खाना खुदे परोस के खड़े-खड़े खाना। बम्फर ह अपन मायने अब्बड़, बिक्कट अउ नंगत ल बताथे। अइसे एक बम्फर के मायने गाड़ी के अगुवा हिस्सा, जेकर ले दुर्घटना से रक्षा होथे अउ एक बम्फर के मायने टोटा के आवत ले शराब भरे गिलास तको होथे। ये मोहना मायने मन के मयाफाँस म नइ फँसके हाँसत आगू बढ़िन त पाथन, बफर सिस्टम म सौ आदमी ल नेवता देथन-बलाथन त तीन सौ मनखे के खाना तियार करथन। माने बफर सिस्टम शेखी मारे के एक ठो ऊँचहा ठिहा हरे, जिंहा नाक ल ऊँच करके टेंड़े, अंकड़े अउ अंड़ियाए के सुग्घर सुअवसर मिलथे। शेखी के ये खजरी ह समाज म अन्न संकट के चर्मरोग ल नेवता देथे। चर्मरोग अउ गुप्तरोग दूनो एके थारी के चट्टा -बट्टा कहाथे। ये दूनो मनखे ल निखट्टु, नीरस अउ निजोर बना देथे तइसे बफर अउ बम्फर सिस्टम के चंगू-मंगू मन समाज, देष अउ संसार ल पंगु करे म कोनो किसम के कमी नइ करय।
बफर के एक सहोदर बफर स्टॉक होथे। जऊन ह केन्द्र सरकार के एक योजना हरे जेला बाढ़त मँहगाई म अंकुश लगाए खातिर जारी करे जाथे। ये योजना के तहत मूल्य के एक निर्धारित सीमा ले खाल्हे उतरई ल थाम्हे बर बने फसल के बेरा म स्टॉक खरीद के राखे जाथे अउ उही ल फसल नुकसानी के बेरा जारी करे जाथे। ये किसम ले बफर स्टॉक अर्थव्यवस्था म मूल्य स्थिरता खातिर वस्तु भंडारण के सुग्घर, सुगम अउ सुव्यवस्थित उदीम हरे। माने सुरसा मँहगाई के मुँह ल मारे बर एक ठो ठोस ठोसरा हरे -बफर स्टॉक। बफर स्टॉक ल केन्द्रीय पूल तको कहे जाथे।
उही किसम बम्फर के घलो एक झिन संगवारी हे -जेला बम्फरे कहिथन। जिंहा संगवारी संगवारी के जम्पर जुड़थे उहाँ बम्फर अउ बफर दूनो मजा के जबर विद्युत धारा बोहाए लगथे। ये किसम ले बफर अउ बम्फर ल संगवारी पूल, मनखे पूल या शेखिया पूल के सेहरा पहिराके सहिराए के एक अवसर तो दे ही सकथन। ये दूनो सिस्टम समाज अउ देष बर रोगहा, परलोकिया अउ घातिया हे।
वस्तु भंडारण या खाद्य भंडारण बर सबले बड़का, सजोर अउ कीच्चक जीव मुसुवा होथे। जऊन जाने कहाँ तक कतेक बड़का बिला बनाए रहिथे अउ जोर-जंगार के पुरखा -तरऊ भंडार भरके राखे रहिथे। अइसे हमरो समाज अउ देश म कतकोन जबर -जबर मुसुवा बिलबिलावत भरे हे, जिंकर बिला कहाँ-कहाँ तक बगरे हे तेकर आर-पार के काँही अता -पता नइ हे। ये मुसुवा मन अपन बिला तरी अतेक भंडारण कर डारे हावय, जउन ल उसर-पुँसर के मेछरावत -खावत अतेक भोगाए -मोटाए हवय कि बड़का, जबर अउ मेहनतकस समाज भूखन के भक्कम भरका म बोजाए -बजबजाए परत हे।
देश, समाज अउ संसार ल भविष्य म भय अउ भूख के भार ले बचाए खातिर बड़े -बड़े मुसुवा मन ल फाँदे बर परही, संगवारी हो। येकर बर जरूरी हे कि बारी ले सपटके बिलई ताके मुसुवा वाले उदीम अपनाए बर परही अउ अन्न के बरबादी ल थाम्हे बर परही।
का बीड़ू ! त तुमन कोन सिस्टम के बीड़ा उचावत हवव ?
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल