गोंड़वाना के धरोहर रइपुर के “बुढ़ातालाब” अऊ “कंकालिन तरिया”

रइपुर, 17 सितंबर 2020। रइपुर के बुढ़ातालाब १३वीं शताब्दी म राजा रायसिंह जगत के दुवारा खुदवाय गय रहीस। गोंड़वाना साहित्य मन म उल्लेख मिलत हाबय कि राजा रायसिंह जगत अपन सेना लाव लश्गर ले के चांदागढ़ राज होवत अऊ लांजीगढ़ राज ले अपन लश्गर खारून नदिया के कछार म डालिन। आघु बढ़हे बर पुरैना, टिकरापारा म एक बिशाल तरिया खुदवाईस। ए तरिया ल ऊंखर साथ चलने वाले जम्मो माइलोगिन अऊ पुरुष मन १२ एकड़ जमीन म ६ महीना म खोद के तियार कर देइन। एखर खुदाई म ३००० पुरुष अऊ ४००० माइलोगिन काम करत रहीन। हाथी बईला पशु मन के घलो खुदाई काम म उपयोग लेवत रहीन। खेती-किसानी के अऊजार के घलो खुदाई काम म पोट बिक्कट उपयोग करे गे रहीस। एखर नामकरण अपन ईष्टदेव “बुढ़ादेव” के नाव ले करे रहीस। राजा रायसिंह जगत एखर तीर म नगर बसाईस, जेखर नाव “रइपुर” रहीस। जउन अंगरेज मन के बखत “रायपुर” हो गिस। ईहां अऊ घलो अब्बड़ तरिया खुदवाय गय रहीस। जेखर नावोनिसान जम्मो मिट चुके हाबय। “बुढ़ातालाब” के मांझा म एक नानकुन असन टापू हाबय। ईही टापू म “बुढ़ादेव” के परतीक इसथापित हाबय। ए टापू म जाय बर रद्दा बने हाबय। जिहां लोगन मन रोज पूजा करे बर जावत रहिथे। ईही टापू जगा म पाछु राज सरकार ह स्वामी विवेकानंद के बड़े जान मूर्ति ल इसथापित कर दे हाबय। अऊ अपन सरकारी दस्तावेज मन म घलो एला विवेकानंद सरोवर के रूप म दरशा दे हाबय। तभो ले एखर ए नाव ले कोनो नइ जानत हाबय। आदिवासी समाज हमेशा ले ए नाव के बिरोध करत आवत हाबय अऊ अभीच्चे घलो बिरोध करे जावत हाबय। फेर सरकार एखर बर कोनो धियान नइ देवत हाबय। गोंड़वाना के लोगन मन के दुवारा बनाय गे रहीस ए “बुढ़ातालाब” के नाव विवेकानंद सरोवर रखें जाना आदिवासी मन के साथ दुरभावना ल पैदा करत हाबय।

बताय जात हाबय कि “बुढ़ातालाब” के संग एक अऊ नानकुन तरिया “कंकालिन तालाब” घलो बनवाय रहीस। “बुढ़ातालाब” अऊ “कंकालिन तालाब के दूरी करीब सीधा म लगभग एक किलोमीटर के दूरी म हाबय। कुंड नुमा कंकालिन तालाब अभीच्चे घलो अस्तित्व म हाबय। एखर मांझा म एक छोटे असन मंदिर बने हाबय। कंकालिन तालाब के तल ले बुढ़ातालाब के तल बहुत्तेच खाल्हे हाबय। फेर सदा देखे म आवत हे कि बुढ़ातालाब के जल इसतर कंकालिन तालाब के जल इसतर ल घलो परभावित करत हाबय। जल इसतर प्रभावित होय के कारण बुढ़ातालाब अऊ कंकालिन तालाब ल जोड़इया आंतरिक सुरंग ल बताय जात हाबय। अंगरेज मन घलो ए सुरंग ल तलाशे के अड़बड बिक्कट उदीम करे रहीन। फेर ओमन ल पता नइ लगीस। समे के संग सुरंग के मुख मलवे म बंद हो चुके हाबय। सुरंग के म अड़बड बिक्कट संपत्ति के रखे जाय के गोट कहे जात रहीस, ईखर बर अंगरेज मन एला ढूँढे के बिक्कट परयास करे रहीन। सुरंग के मुख्य कपाट कंकालिन तालाब के मंदिर म तह पर पाय गे रहीस फेर ओला खोले म ओमन असफल रहीन। तालाब ले लगे हाबय माता कंकालिन के मंदिर। ए मंदिर म गोंड़ मन के माता कंकालिन बिराजित हाबय। एखर बर ए तालाब के नाव कंकालिन तालाब रखे गे हाबय। ए मंदिर के महिमा के जानकार लोगन मन ईहां दूर दूर ले मन्नत मांगे बर आवत रइथे। अऊ मन्नत पूरा होय के बाद पूजा करथे। मंदिर के कपाट बछर भर बंद रइथे। बछर भर म एक बेर केवल चइत नवरात्रि म ही खोले जाथे। ए खंडहर नुमा मंदिर अपन प्राचीनता लिए अभीच्चे ले खड़े हाबय एही बहुत हाबय। मंदिर छोटे असन पहाड़ी के टापू म बने हाबय नजर आथे। ए छोटे टापू कोनो खंडहर महल के बिखरे मलवा असन परतीत होथे। ए मंदिर के तीर म मनखे मन कब्जा कर के घर बना ले हाबय। ईहां कोनो पंडित पुजारी काम नइ करय बल्कि गोंड़ आदिवासी ईहां के सेवक हाबय।

विशेष आभार गोड़वाना साहित्य
छत्तीसगढ़ी म अनुवाद करइय्या- पुनीत सूर्यवंशी

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