इतवारी: उरमाल म वो गजामूंग !!

जेकर अंतस म जीए के ललक होथे, वोह कोनो डाहर ले होवय उछाह के अंँचरा ल थाम डारथे। गजामूंग छत्तीसगढ़ म मितानी परम्परा के एक ठो रस्ता हरे। लहू अउ परिवार के रिस्ता ले हटके एक ठिन अउ रिस्ता होथे-मया के। मया के ये रिस्ता ल मयारूक मन मितानी के नाम देथे। मितानी परंपरा म भोजली, जँवारा, दौनापान, तुलसी, महापरसाद असन गजामूंग के तको चलागन हे। महापरसाद अउ गजामूंग भगवान जगन्नाथ के परसाद हरे। महापरसाद भात के सीथा (चुरे चाऊँर) अउ गजामूंग माने पीकीयाए (अंकुरित) मूंग। बस्तर के गोंचा परब…

इतवारी: योगा हमरे ले होगा !!

योग सबद संस्कृत से लिए गे हवय जेकर मायने जुड़ना या एकजुट होना होथे। अंगरी-अंगरी जुड़ मुटका बनके शक्तिशाली हो जथे। एक अउ एक ग्यारह एक के अपेक्षा जादा ताकतवर होथे। वइसने योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया हरे जेमा शरीर, मन अउ आत्मा ल आपस म संघारे (योग) जाथे। योग के संयोग ल आत्मा म हृष्ट-पुष्ट अउ सजोर बनाए जा सकथे। भारतीय दर्शन के षडदर्शन म एक के नाम योग हवय। योग सबद के उल्लेख ऋग्वेद म मिलथे। महर्षि पतंजलि ल योग दर्शन के संस्थापक माने जाथे। ओकर लिखे योगसूत्र ह…

इतवारी: बिलई ताके मुसुवा !!

एक झिन महतारी अपन बेटी के दिमाक ल सर्विसिंग करत रिहिस हे – ‘जऊन ह खेत के मुँह, मेहनत के पसीना अउ किसान के पीरा ल नइ देखे हावय, वोह अन्न के इज्जत का जानही-करही। गलती तुंहार नइहे बेटा ! गलती तो हमार हे जऊन तुंहला ये संस्कार के साँचा म नइ ढाल पाएन, एला तुंहला नइ बता-सीखा पाएन।’ बात अन्न के बरबादी अउ बरबादी के अन्न बोले तो खाद्य सुरक्षा के होवत रिहिस हे। भारत के गाँव अउ नानमुन कस्बा मन म आज ले समाज ल बइठार के परसा…

इतवारी:- जोग भोग अउ रोग

अइसे तो मैं जनम के घुघुवा हरवँ। अंधियार म जोर -जार मुँह मारके अंजोर करईया सजोर जीव। कोलिहामन अंधियार म मुँहू ल करिया करथे। मैं अइसन नइयवँ। दिन -रात आठो काल बारा महीना मुँह भर करिया पोते रहिथवँ। मोर सिध्दांत हे करिया घलो हँ एक ठो रंग हरे। ओला काबर उदास करवँ। फेर जबले बकर्रा बिकलांग षिक्षा ल अपन लिज्झड़ खाँध के पलौंदी दे हववँ। बिद्वान- बुधमान के फर्जी पागा हँ मोर मुड़ म आके जबरदस्ती खपला गे हे। बिद्या के अरथी ल बोहे-बोहे आज ले भटकत, रेंगत, किंदरत हवँ।…

इतवारी: जभे जागे तभे बिहान ?

धरती गोल हे, जिहाँ ले रेंगे रहिबे आखिर म उहेंचे पहुँच जबे। ये गोठ आपसी म बरोबर वाले मन संग करे के हरे। बोमियावत हाँका पारे माने लइका मन तुरत गुगली प्रष्न मार देथे – धरती गोल हे त हमन उन्डन-गिरन काबर नहीं ? कहिबे – धरती के गुरूत्वाकर्षण शक्ति के सेति हमन नइ गिरन-उन्डन। धरती के गुरूत्वाकर्षण शक्ति के सेति हमन नइ गिरन, त चिरई मन कइसे उड़ा जथे, जिहाज मन भूइँया म काबर नइ गिरय, नान्हे-नान्हे चँदैनी मन ओतेक दुरिहा काबर हे, वोमन काबर नइ खींचावय ? –…

इतवारी: देखत म छोटन लगे !

कभू कभू नानमुन उदीम बड़का बूता के फल ल सहज, सरल अउ सरस कर जाथे। अइसनेहे एक ठो छोटकुन घटना हे जउन मोर संग घटे हे अउ अब ले वो मोर मन के एक ठिन कोन्टा के खूँटी म झूलना झूलत टँगाए हवय। कोनो कोनो बेरा ओकर संग मोर नजर मिल जथे। फेर जब नजर मिलथे ओला मुस्कुरावत पाथवँ। ओकर मुस्कुरावत चेहरा ल देखके मैं अपन मुस्कुराहट के टोटा ल नइ मुरसेट सकवँ अउ कइसनोहो बेरा होवय मुस्कुराए बिना नइ रेहे सकवँ। दुनिया म तीन ठिन हठ होथे- बाल हठ,…

इतवारी: हसदेव आ मनीराम !!

रइपुर वनमंडल के अंतर्गत पिथौरा म एक झिन अंग्रेज वन अधिकारी के नियुक्ति होइस। वोह मनीराम ल बीटगार्ड के नौकरी म रखिस। मनीराम गोंड़ कुम्हारीमुड़ा गाँव के रहइया रिहिस हे। वोह अब्बड़ सुग्घर जेवन बनावय। ओकर हाथ के बनाए जेवन अंग्रेज अधिकारी ल अतका रूचगे कि जब वो इंगलैण्ड गिस त मनीराम ल तको अपन संग लेगे। उहाँ मनीराम ल बगवानी म सैगोन, जेला ‘प्लस ट्री’ कहे जाथे, ओकरे पेड़ के बीजा जगोए अउ पेड़ बनाए के ‘रुट शूट विधि’ सीखे के सुअवसर मिलीस। कुछ महीना पीछू उन लहुट के…

इतवारी: बासी ब्वाय !

गाँव म एक दिन शहर ले एक झिन लइका आइस। दिन बूड़गे राहय, ओकर आँखी ले चश्मा नइ उतरे रिहिस हे। मैं पूछ परेवँ – ‘यहा कम उमर म आँखी के अपरेशन होगे बेटा ?’ वोला कुछु नइ बोलत देखके बाजू म ठाढ़े संगवारी ले पूछ परेवँ- ‘भैरा-कोंदा घलो हे का जी ?’ संगवारी मन खलखला के हाँस भरिन- ‘नहीं गा, कान म ईयर फोन ठेंसाय हे, त काला सुनय।’ ओतका म वो लइका खखुवागे- ‘ये, काबर हाँसते हो, बइहा गए हो का ?’ मैं सफई देवँ – ‘नहीं बेटा…

इतवारी: सुग्घर मन के सुमन !!

जन्म विवाह मरण गति सोई, जहाँ जस लिखा तहाँ तस होई- मानस चौपाई के ये सत्यता ल जतका सिद्दत ले हम स्वीकार नइ करे सकन ओतके हिम्मत ले एकर डर ल मन ले धुत्कार तको नइ सकन। मानस ल सबो सुनथे अउ सुनाथे। अंगरी गिनाए नइ पावय मनखे कमती पर जथे जऊन एला सुने-सुनाए के अलावा गुनथे, मनन करथे अउ अपन जिनगी म अपनाथे तको। मानस अउ कला के संगे-संग मानवीय बेवहार ल मन म रचा-बसाके जेन अपन जिनगी ल सुमन बना डारिन, वो मानस पुत्र रिहिन हे – सुमन…