इतवारी: मोर मन करिया रे !

बीस बछर बाद मोर चड्डु-पड्डु संगवारी अचानक जिनगी के मोड़ म मिलगे। बालपन के संगी दिन के उजास म तो संग रहितेच फेर जिनगी के करियाहा रात म तको राख भीतर धधकत अंगरा कस अभास अउ अहसास बनके दिल म रथे। वोह उही बालपन म एक ठो पथरा उठाइस अऊ अंतस के अथाह अऊ ठहिरे पानी म ‘टुभुक ले’ मार दिस – कतेक करिया गे हस रे। तोर जम्मोे रंग-रूप बदल गेहे। ‘दुनिया ल प्रेम के पाठ पढ़इया किसना तको तो करिया रिहिसे। आँखी के सेत-स्याम पुतरी राधेस्याम के प्रेम…

इतवारी: सावचेत हर हाल रहव, सुरक्षित अउ खुशहाल रहव

टीवी म एक ठो विज्ञापन आथे। जेमा लइका चिचियाथे – दादी……मच्छर ! दादी कहिथे – बेटा ! सबर कर। ओतके बेरा पीछू ले अवाज आथे – नहीं । सबर के फल तो डेंगू मलेरिया हो सकत हेे। जबर पोठ अउ सही बात। सबर के फल डेंगू मलेरिया हो सकथे। डेंगूच मलेरिया काबर ? कोरोना काबर नइ हो सकय। हाँ, बिलकुल सही पकड़ेव संगवारी ! कोरोनच हो सकथे । अभीन के समे अतेक परलोकिया, परबुधिया अउ बइमान हे कि सबर के फल मीठा नहीं भलकुन कोरोना हो सकत हे। थोरके बुखार,…