इतवारी: हरिकीर्तन गोभीचोर !

जानकारी के होना डर के सबले बड़े कारन होथे। कभू -कभार अनजान होना मनखे बर बनेच होथे। आप कोनो अनजान रद्दा म जाथौ त सुनसान रथे तभो कोनो किसम के डर-तरास नई हलावय-डोलावय। कहूँ सुन-जान डारेंव कि वो रद्दा म कुछू हवय, त निश्चित हे उहाँ ले गुजरे बर कोनो संगवारी के संग ल पक्का जोरिहौ -धरिहौ। मुँहाचाही के बहाना तो बोहनी -बट्टा ये हिम्मत बटोरे के। मनखे दिमाक के खाली संदूक लेके अवतरथे। दिमाक के खाली संदूक म घर, आस-परोस अउ दुनियादारी के गीला कचरा-सूखा कचरा जम्मो जमा होवत…

इतवारी: तीजा -मइके के दुलार, खुशी के बीजा

एक कमइया मनखे बर सबले बड़े खुषी ओकर कमाए बूता के फर होथे। तभेच तो प्रेमचंद अपन कहानी ‘हार की जीत’ ल इहेंचे ले शुरू करथे कि एक किसान ल जउन खुशी अपन लहलहावत फसल ल देखके होथे, उही खुशी सुजानसिंह ल अपन घोड़ा ल देखके होवय। माने फसल के लहलहाना दुनिया म सबले बड़का खुशी होथे। भादो के महीना म धान के पौधा म दाना भराव/पोटरियाए माने गर्भधारण के प्रक्रिया चालू होथे जेला ‘पोटरी पान’ धरना कहिथे। छत्तीसगढ़ म पहिली पइत गर्भधारण करईया नारी ल पीहर वाले मन सातवा…

इतवारी पढ़बोन ! बढ़बोन !! गढ़बोन !!!

कीरहा कोरोना के मुड़ म टीका के टँगिया परगे हे, फेर ओकर नाव नई बुताय हे। कलबलागे हवय। खिसियानी बिलई खम्भा खुरचै। लाल मुड़ी के टेटका कस बीच-बीच म मु़ड़ ल उठाके हलावत रहिथे। लइका मन बर डेरडेरावन होगे हे। पेड़ के खोंड़रा ले चीड़रा ‘बुलुँग ले’ निकलके भूँईया म ‘पुचुक-पुचुक’ फुदकथे खेलथे त मन-मँजुर ‘पेंएँ-पेंएँ’ करत पाँखी बगराए झूमे-नाचे लगथे। रंग -बिरंगी तितली मन ‘फुर्र-फुर्र’ एति-ओति उड़ाथे त पतझर के पात झरे उदास मन म तको बसंत के उमंग उत्पात मचाए लगथे। कोयली तन ले कतको कारी हो जवय…

इतवारी: कमरछठ

आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के भाषा म एक शब्द हे – ‘सेरोगेसी’। दूसर के कोख म अपन गर्भ ल पालके अवतरित करना, माने ‘किराया के कोख’ ल सेरोगेसी के संज्ञा दे गे हवय। येला धर्म शास्त्र म ‘संकर्षण’ कहे जाथे। देवकी के गरभ ले उपजे छै संतान कंस के हाथ एकक करके काल के गाल म मेलागे। तब सातवां गर्भ ल रोहिणी के कोख म संकर्षित करे गइस। बलदाऊ ह सफल संकर्षण के सुफल हरे। नारी जीवन के सबले बड़े सफलता ओकर माता बनना होथे। अपन कोख ले नवा जीवन जनना,…

इतवारी: सावन म करेला खाएन

सावन के आते तिहार मन के भरका फूट जथे। हरेली ह बारो महीना के पहिली तिहार होथे। हरेली के पीछू पीछलग्गा बछर के अउ आने तिहार मन सरलग ओरियाए रहिथे। हरेली ह हरियाली, आनंद अउ उछाह के तिहार हरे। खेत म हरियर-हरियर धान लहरावत रहिथे। फसल के इही हरियाली के खुशी म किसान हरेली तिहार मनाथे। हरेली तिहार ल सावन महीना के अमावस के दिन मनाए जाथे। हरेली ल रथयात्रा परब के रूप म तको मनाए जाथे। ए दिन चरवाहामन मालिक ठाकुर के घर-दुवारी म लीम डारा खांेचथे। लीम के…

इतवारी: गुरू गूगल दोउ खड़े

गुरूब्र्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरूः साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरूवे नमः। गुरूपूर्णिमा गुरू – पूजन के दिन हरे। असाड़ के पुन्नी ल गुरूपूर्णिमा कहिथे। ये दिन गुरूतत्व ह हजार गुना क्रियाशील रहिथे, जेकर ले ओकर फल तको हजार गुना फलित होथे। इही दिन कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी ह 18 पुरान अउ उपपुराण मन के रचना करीन। पंचम वेद ‘महाभारत’ के रचना विश्व के प्रथम आशुलिपिक शिव-शिवानंदन श्रीगणेश के करकमल ले पूर्ण करे के पीछू ‘ब्रम्हसूत्र’ लेखन के श्रीगणेश करीन। तेकर सेति येला व्यासपूर्णिमा के रूप म तको मनाए जाथे। कतको…

इतवारी: अपनो टेम आही गा !!

घुरूवो के दिन बहुरथे। घुरूवा ह दुनिया भर के मइल ल झेल-सहि के सबो ल पचो लेथे। जे सहिथे तेकर कुछु बिगाड़ नइ होवय। घुरूवा परहित बर स्वयं म पचके खातू बनाथे। मनखे के पोषक अहार मन ल पोषन देथे। माने घुरूवा जगत के पालन-पोषण बर बड़ सहायक हे। महान हे ओकर करम। तेकरे सेति सियान मन कहिथे- मनखे ल घुरूवा होना चाही। घर के डेरौठी कस सरी दिन घुरूवो म दीया बारना चाही। नइ बारय, मनखे के जात बड़ स्वार्थी होथे। देवारी के दिन भर सही !! बछर भर…

इतवारी: मोर मन करिया रे !

बीस बछर बाद मोर चड्डु-पड्डु संगवारी अचानक जिनगी के मोड़ म मिलगे। बालपन के संगी दिन के उजास म तो संग रहितेच फेर जिनगी के करियाहा रात म तको राख भीतर धधकत अंगरा कस अभास अउ अहसास बनके दिल म रथे। वोह उही बालपन म एक ठो पथरा उठाइस अऊ अंतस के अथाह अऊ ठहिरे पानी म ‘टुभुक ले’ मार दिस – कतेक करिया गे हस रे। तोर जम्मोे रंग-रूप बदल गेहे। ‘दुनिया ल प्रेम के पाठ पढ़इया किसना तको तो करिया रिहिसे। आँखी के सेत-स्याम पुतरी राधेस्याम के प्रेम…

इतवारी: धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथे ?

बेरा बड़़ बइहा हे। दिन देखय न रात, सरलग रेंगते रहिथे। दिन -रात जगई -रेंगई म लड़भड़वत रहिथे। कभू -कभार उँघाए तको लगथे। नींद म रेंगही त काकरो न काकरो ऊपर झपाबे करही। बनत के बनौका, गिनहा होगे त दुर्घटना। दुर्घटना ले देर भली कहिथे। देरी करे म पीछुवा जथन, तब कहिथे – जिनगी म आगू बढ़ना हे त समे के संग कदम मिला के चल। ये दूनो पाटा के बीच भेजा म एकात कनक बुध्दि हे, तउनो ह घुना कस कीरा पीसा जथे। जे मनखे ते गोठ। काकर ल…