इतवारी: कबीरा खड़े बजार

दाई अबड़ समझाइस – पढ़ बेटा ! पढ़ !! नई पढ़ेन – हटा सावन के घटा। ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय। जादा पढ़िन, ते महापंडित होगे- एको अहम दूजो नास्ति। ज्ञानी मारे ज्ञान से अंग – अंग भींग जाय, अज्ञानी मारे ठेंगा से मुडी़ कान फूट जाय। मीठ-मीठ बोलके जहर पीयावत हे। लड़ावत हे, सड़ावत हे, अपन झण्डा गड़ावत हे। प्रेम गीत गाके, मन भर मया के रसा चुहकत हे। मुख म राम बगल म छुरी, भगवा ओढ़ जपै – भूरी ! भूरी !! धरम -करम, नीत-…

इतवारी: पूत के पांव पिता के पनही

पूत के पाँव पलने म दीख जथे। पूत सपूत त का धन जोरय, पूत कपूत त का धन जोरय। सपूत बर जोरे के का जरूरत, वो खुदे जोर लेही। कपूत बर जोरे का काम के, सब ल उजार डारही। बुढ़ापा म दाई -ददा लइका ले छप्पन भोग के इच्छा नई करय। लइका के व्‍यक्तित्‍व अउ कृतित्व ल देख जतका खुश होथे, छप्पन भोग खाके नई होवय। छप्पन भोग का, खिचरी पचाए के उन्कर हिम्मत नई राहय। दाँत संग देई देही त आँत ह धपोर देथे। पता नहीं मोर बात कतिहां…

इतवारी: तोर शहर म का धरे हे?

बड़ा हुआ सो क्या हुआ, उँ..उँ..बड़ा हुआ उँ….उहीच -उहीच डाँड़ ल घेरी -बेरी घोरियावत सुन बबा कहिथे – अरे बूजा ! बाढ़ भर गे हस रे ! हुड़मा कस डुंगडुंग ले, अक्कल के न बुध के। उहू पेड़ का काम के? जउन फरय न जुड़ झाँव दे सकय। पढ़े भर ले कुछु उदबत्ती नइ जरय, कढ़े बर तको परथे। पढ़, कढ़ अउ बढ़। कोनो शहर अइसे नई हे जिंहाँ गाँव नइ बसे होही। गाँव ल पाँव तरी रउँद के शहर अपन पनही चमकावत टेस मारत हे। पैडगरी रद्दा ल लील…

इतवारी : साग म नमक

साग बिन नून के, सुवाद के न गुन के। साग म नमक ओतके डारना चाही जतका म सुहावय अउ सुवाद बने रहय। जादा मीठे भर करू नई होवय, खर तको करूवा जथे। अति बर सबो रद्दा म गति अवरोधक होथे। जेन अन्न ल खाए बिगर मनखे जीए नइ सकय उही अन्न ल जादा खाए म मर तको सकथे। जादा ह अनपचन हो जथे। जरे म नमक छीते ले जलन बाढ़थे कम नइ होवय, ये हँ अत्याचार हरे। ईमानदार मनखे ककरो उपकार ल नमक ले संबोधित करथें। मोर उपर ओकर नमक…

इतवारी: अरे, ओ भाय !!

खोजे ले मुड़ के घन जंगल म जुँवा मिल जथे। निकाले म बाल के खाल निकल सकथे। भूइयाँ ले खोदके हजारों बछर जुन्ना सिंधु सभ्यता ल निकाल लेन। अतके भर नहीं, खोधर -खोधरके ओकर अध्ययन तको करत हन। जब अध्ययन करे म मुड़ खपा सकथन त अपन बीते जिनगी ल झाँक के काबर नइ देख सकन। अपन बने, सुग्घर अउ सुखद जुन्ना दिन के सुरता के झिरिया ल काबर नइ खोद सकन। आसरा ल चिमोट के पोटारे, पार म बइठे भर ले पियास नइ बूझावय। मेहनत करे बरे परथे। कतको…

इतवारी: रँगहा कोलिहा

बेरा-कुबेरा कइसनो होवय परिणाम ल आनच होथे। जउन आथे उही परिणाम ये। चाहे वो कोनो रूप म होवय। जेन नइ आइस तेकर का? बीती ताहि बिसार दे। काली 10 वीं के परीक्षा परिणाम आइस। परिणाम ये, आनच रिहिसे। आ गे। अब समस्या ये हे के पहिली सकारात्मक गोठियाय जाय के नकारात्मक। अफसाना अउ हकीकत के बीच कोनो ठोस सरहद नइ होवय उन अक्सर गलबँहिया डारे फिरथे। जइसे एक सिक्का के दू पहलू। प्रत्यक्ष कोन्हो पहलू राहय फेर अप्रत्यक्ष रूप से दूसरइया पहलू तको संगे म रहिथे। जब दूनो पहलू संगे…

इतवारी: मन चंगा ते कठौती म गंगा

मोर घर हँ सड़के कोति मुँह करे सड़क तीर उखरू बइठे हवय। पीछू कोति ले हुदरत- कोचकत गली हँ रेंगथे। बेरा -कुबेरा रेंगइया मन के चप्पल के अवाज तको खिड़की ले कूद के कुरिया म अभर जथे। परो दिन अक्ती रिहिसे। संझौती डब्बा-टीपा मन के गँड़वा बाजई सुनके नोनी ह खिड़की ल खोलिस। लइका मन पुतरी-पुतरा बिहाव करत रहय। उंकर सउँक अउ तियारी देखेंव फटाका तको फोरत रिहिन। मोर बचपना आगू म रोम्हिया के खड़ो होगे। दुनियादारी के बिला म तँही ह बिलम गे हस। मैं नइ भुलाए हौं तोला।…

इतवारी : चिंता चतुराई ले घटै

काली अचानक समारू रस्ता म मिल गे। मिलते साथ कहिथे -झारा झारा नेवता हे । अपन घर खाहू झन, हमर घर आहू झन। मैं अकचका गएंव-ये कइसन नेवता हरे जी ? – अरे कोरोना काल चलत हे न। – हेंहें …हेंहें करत दूनो अपन अपन दाँत ल चमकाएन। तहूँ अच्छा मजाक करथस यार। – मजाक नहीं सिरतोन काहत हौं, भलकुन अइसनो नौबत झन आ जाय कि बिहाव भर हम तोरे घर राहन। मैं पूछेंव – का होगे भई। बिहाव के अनुमति नइ मिल पाइस का ? वो मुड़ धरत कहिथे…

इतवारी: जुन्‍ना दिन बहुरत हे

दूए दिन पहिली मोर हंडा कंहू ले आइस। अरे बबा ! केछुवा धरे -धरे हंडा खोजइया पंडा मन रतिहा मोरे घर झन धमक देवय। छत्तीसगढ़ म हंडा अपन बेटा ल तको कहे जाथे। हाँ, त मोर हंडा कहूं ले आइस अउ धोए गोड़ -हाथ ल पोंछत कहिस- कतेक अजब बात हे। गाँव म घर पहंुचते दादी कहय- बेटा कहूं ले आथव त हाथ- गोड़ धोके भीतर आए करव। हमन कतको काहन कि हमन कहूचो नइ गे रहे हन। एदे बस बाहिर पैठा म बइठे रहेन। वो कहय – घर ले…