इतवारी: सुग्घर मन के सुमन !!

जन्म विवाह मरण गति सोई, जहाँ जस लिखा तहाँ तस होई- मानस चौपाई के ये सत्यता ल जतका सिद्दत ले हम स्वीकार नइ करे सकन ओतके हिम्मत ले एकर डर ल मन ले धुत्कार तको नइ सकन। मानस ल सबो सुनथे अउ सुनाथे। अंगरी गिनाए नइ पावय मनखे कमती पर जथे जऊन एला सुने-सुनाए के अलावा गुनथे, मनन करथे अउ अपन जिनगी म अपनाथे तको। मानस अउ कला के संगे-संग मानवीय बेवहार ल मन म रचा-बसाके जेन अपन जिनगी ल सुमन बना डारिन, वो मानस पुत्र रिहिन हे – सुमन…

इतवारी: बइहा बना दिए रे !

हप्ता के सात दिन म ले कोनो दिन हरे। जनवरी, फरवरी, मार्च अउ अप्रैल के कोनो महीना हरे, जऊन 2022 के थैली ले निकले रिहिसे। दिन के सुरता ह दिमाक ले इस्तीफा दे दे हवय। तेकर सेति ये नइ कहे सकवँ कि कोन दिन के बात हरे। फेर एक दिन के बात हरे। मनखे के माथा म लिखाए अबूझ रेखा ल बूझे के बूता लाल-बुझक्कड़ मन करथे। अखबार के माथा म लिखाए आड़ा -तिरझा रेखा ल बूझे-बाँचे के बूता म हम मस्त अउ माहिर हवन। त अखबार के माथा म…

इतवारी: खुमरी !!

अपन रूच जेवन, पर रूच सिंगार। ये बात ह मोर सुरता म चटक-मटक सज-सँवर के घूमत -फिरत-किंजरत रहय, त येकर पइरी के रूनझुन ह मोर कान म सुर धरे गुनगुनावत-गमगमावत -मटमटावत रहय। फेर ये सिंगार के सींग म मोर मन ह अरझगे रिहिस हे। उही सींग ह लइका मन बरोबर मोला घेरी-बेरी हुदरय-कोचकय अउ एति -ओति अँगरी के इसारा करत देखावय। अब मैं कोनो महतारी तो नोहय जउन लइका के इसारा ल समझ लेतेवँ। आदम सुरता ल सोच, विचार अउ विकास के उमान चारा चराएवँ, सहरिया तकनीक के महकत इत्र…

इतवारी – लंगुरवा भइया !!

सियान दाई कहय- अपन रद्दा म जाए कर, अपन रद्दा म आए कर बेटा। अपन रद्दा तो नइ बना पाएवँ। फेर मोर तीरन रेंगे बर पर्याप्त गोड़ हवय। उही सेति सरकारी सड़क ल अपन समझ एक गोड़ ल एति अउ दूसर गोड़ ल ओति फेंकत रेंगत रहेवँ। जइसे बयपारी मन सड़क म समान बगरा के रखे रहिथे अउ धीरे से ओतका जगा ल पोगरा लेथे। डिक्टो उही चाल म तनियाए रेंगत रहेवँ। सड़क के पाई म परोस के एक झिन माई ल कुकरूस-ले बइठे देख परेवँ। अभीन माई परब के…

इतवारी: तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती !

एक झिन महान आत्मा ल 1 जनवरी के संदेष पठोएवँ- बंगला के रहइया ल कंगला कोति ले आंग्ल नववर्ष के गाड़़ा-गाड़ा बधई। तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती कस संदेषा लउहे लहुट तको आइस- आंग्ल के बोरा ल जींस काहत पहिरके टेस मारे के बेरा तो आंग्ल अउ भारतीय के निरवार नइ करस। जऊँहर होगे गा। हूम देवत हाथ जरगे, बीड़ी पीयत मेंछा। फेर दिल तो बच्चा हे जी। बच्चा खाँध म चढ़गे। बेताल कस ताल ठोंकत सवाल पेल दिस- ये आंग्ल नववर्ष अउ नववर्ष प्रतिपदा होथे का ?…

इतवारी: हमर गाँव के पनिहारिन मन … !

भागे मछरी जाँघ अस रोंठ। रिहिस के नइ रिहिस होही, कम से कम गोठ ल तो सोंट। तइहा के बात ल बइहा लेगे। उही तइहा बइहा कभू -कभार किंजरत -फिरत मन के सांकुर गली म हभर-हमा जथे त अइसे लगथे कि काबा भर पोटार के धर लेववं का ? चूम -पुचकार के मना लेववं अउ मया -पिरित के गाँठ बाँध रख लेववं सरिदिन बर घर म, जिनगी के जाँवर-जिंयर संगवारी कस, फेर समे के धार अउ रेती के पार ल मुठा म कोन बाँध सके हे ? थोरको ऊँच-नीच होए…

इतवारी: प्रेम रंग !!

मनखे बालपन म टन्नक, चंट अउ हुसियार होथे। जस जस बाढ़थे, ओकर दिमाक घर -परिवार, सुख-दुख, दुनियादारी के खरदरहा पथरा म घिसा-घिसाके खियाए लगथे। सियान के होवत ले उही दिमाक पैदल हो जथे। बिहनिया-बिहनिया तो उन्कर हाल अउ बिन गड़हन के हो जथे। दूसर के ल नइ कहे सकवं मोर हाल तो एकदमेच पोचपोचहा, पोंगपोंगवा अउ पंगुरहा बरोबर हो जथे। मुंह तो बनेच कोढ़िहा हो जथे। बक्का ह छक्का परे पुक कस बाउंड्री के बाहिर निकल जाए रहिथे, फूटबे नइ करय अजरहा ह। होरी के दू दिन पहिली बड़े बिहनिया…

इतवारी: राजा मारे रोवन नइ देय !!

एक झिन लालची बनिया रिहिस। 5 रुपिया के रोटी बेचय। ओकर मन म जादा कमाए के लालच हमागे। हाथी के पेट सोंहारी म नइ भरय। वोह जानत रिहिसे माँगे म बेटा अउ अपटे म धन नइ मिलय। ओला रोटी के कीम्मत बढ़ाना रिहिसे फेर बिना राजा के अनुमति के कोनो अपन दाम नइ बढ़ा सकत रिहिसे। जी छूटे न छटपटी जाय। एक दिन वोह राजा तीरन पहुंचिस अउ कहिस राजा जी मोला रोटी के दाम 10 रूपिया करना हे। राजा खोजे दाँव ल, माछी खोजे घाव ल। राजा कहिस -‘तैं…

इतवारी: बटकी म बासी अउ चुटकी म नून !!

बटकी म बासी अउ चुटकी म नून मैंहँ गावथौं ददरिया तैं कान देके सुन रे, चना के दार चना के दार रानी, चना के दार राजा चना के दार गोंदली कड़कथे रे टुरा हे परबुधिया होटल म भजिया धड़कथे रे ….. येला सुनके कतकोन जहुँरिया संगवारी मन हँ तइहा के बालापन बेरा म लहुटगे होही अउ बटकी के बारा म नून रखे बासी बोजत सुरता के उलानबाँटी खेले लगे होही। अभीन के परबुधिया मन बर तइहा के बात ल बइहा लेगे। नान्हे लइका खेलत-कूदत, देखत-सुनत, संगी-संगवारी अउ तीर-तखार के बोली-बतरस…