इतवारी: महतारी भाखा, मोसी दाई के साखा !!

गाय के दूध कतकोन पुस्टई हो जाय, महतारी के दूध नइ हो सकय। जइसे मोसी दाई कतको मया-दुलार कर लेवय मोसीच दाई रहिही महतारी नइ हो सकय। महतारी भाखा अतेक मयारू अउ सबला होथे कि हरेक बात ल सहज अउ सरल ढंग ले बता -समझा डारथे। मनखे जनम ले के पीछू सबले पहिली जऊन भाखा ल सीखथे ओला महतारी भाखा कहिथे। महतारी भाखा बिगर कोनो मेहनत -मशक्कत के मुँह ले झर-फूटके मन म पझर-पसर, रच-बस जथे। महतारी भाखा ले ही मनखे के समाजिक अउ भाखई पहिचान होथे। सबो जानथन, महतारी…

इतवारी: हैप्पी मया दिवस !!

भारत के संस्कृति म एक ठिन बैचकहा दिवस हँ पहुना बनके आए हे। वोकर नाम हे -वेलेन्टाइन डे। येला कुल 11 दिन म बाँटे गे हे- मोमबत्ती दिवस, वेलेन्टाइन दिवस, व्हाइट दिवस, काला दिवस, गुलाब दिवस, चुम्मन दिवस, सिल्वर दिवस, ग्रीन दिवस, संगीत दिवस, वाइन दिवस, सिनेमा दिवस अउ आलिंगन दिवस। ब्यूटी पार्लर म जाके फेसियल कराए के बाद इही हँ रोज डे, प्रपोज डे, चाॅकलेट डे, टेडी डे, हग डे, किस डे, अउ वेलेन्टाइन डे के रूप म बदल गेहे। चीन म येला ‘साँचा,’ फिलीपिंस म ‘दिल के दिवस’,…

इतवारी: मटमटहा रितु बसन्त !!

बसन्त पंचमी ल श्रीपंचमी तको कहिथे। बसन्त हँ प्रकृति के पोठियाए, मोठियाए अउ मटमटाए के ऋतु हरे। भारत एकलउता अइसे भागमानी देश हरे जिहाँ छै ऋतु होथे- बरसा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त अउ ग्रीष्म। फल म राजा आमा। तइसे ऋतु म राजा बसंत सबले सुग्घर अउ सुहावन होथे, तेकर सेति येला ऋतुराज तको कहिथन। शास्त्र म येला ऋषि पंचमी कहे गे हवय। बसंत पंचमी माघ अंजोरी पाख के पंचमी के मनाए जाथे। दाऊ घर ललना अवतरथे त चिपरी-लिबरी, कानी-खोरी अउ डोकरी-छोकरी सबो ठुमकथे- नाचथे। कामदेव सिरजन के देवता हरे जऊन…

इतवारी: बरा + बरी = बराबरी !

नान्हे लइका गणतंत्र दिवस के बेरा म बोचकत पैंट ल संभालत आगू बढि़स अउ कागज म लिखके लाने अपन भासन पढ़े ल लगिस। आदरणीय माई पहुना, गाँववासी अउ मोर सहपाठी भाई -बहिनी हो ! आज मैं गणतंत्र दिवस के सुग्घर बेरा म अपन नान्हे मुँह ले नानमुन बिचार रखे बर जावत हाववँ। नान्हे लइका बने फोर -फरिहाके नई गोठिया सकय तभो ओकर तोतरी बानी के गोठ-बात सबो ल बने सुहाथे-भाथे अउ नीक लागथे। मोला अपने लइका जानके मोर टूटे-फूटे भाखा म तको मोर भाव ल समझ जहू अउ मोर जम्मो…

इतवारी: दिन कइसन आगे संगी !!

बात जादा जुनियाए नइहे। दूए दिन पहिली के हरय। काम से एक ठो आफिस के चक्कर लगावत रहेंव। उह बीच एक झन मोर आगू ले गुजरिस। छरहरा देंह, ऊँचपूर, सूट-बूट ले दुमटाम। मोर नजर के लबेदा परे ले ओकर चाल के आमा ‘लद्द ले’ मोर अंतस म गिरगे। ओकर लकधक, लदफद चाल-ढाल बतावत रिहिस हे कि वो कइसन चाल के हे। थोकन बेर म मैं अपन काम निपटावत वो आफिस म बइठे रहेंव। कति ले घूमत-फिरत वो धूमकेतु कस उहेंचे आ धमकिस। आते साथ मेडम ल कहिस- ‘मेडम जी नमस्ते…

इतवारी: छेरी के छेरा छेर बरकनिन

जन मानस के उछाह अउ प्रसन्नता समाज म परब बनके सिरजथे-पनपथे। इही परब पानी कस धार एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी बोहावत -सरकत परम्परा बन जथे। परम्परा अउ संस्कृति कोन्हो भी समाज, देश, काल अउ राज के आरूग चिन्हा होथे। देश, काल अउ वातावरण के सपेटा म परके परब, परम्परा, रीत-रिवाज, संस्कृति के चोला, रंग- रूप अउ सँवागा भले बदल जथे फेर आत्मा नई बदलय। आत्मा ठाहिल रहिथे। गीता म तको आत्मा ल अजर, अमर अउ अजन्मा बताए हवय। सीधवा गँवई शहर संग संघरके लाज म अपन संस्कार ल चपके-धरे-लुकाए भले बइठे…

इतवारी: भोगौ रे नर करम बेवहारा !!

जेन दिन किसान ‘भूले बिसरे एको दिन तो मोर अँगना म बरस रे बादर’ काहत चिरौरी पारथे वो दिन बेलबेलहा, बेंवारस अउ बिदरंग बादर अपन पीछवाड़ा म बाहरी बाँधके भाग जथे अउ पाके पुकाए किसानी म उही अनदेखना बादर बिन मौसम रदरद -रदरद बरसे लगथे। बेरा -कुबेरा पानी-बादर, अचानक -भयानक मौसम परिवर्तन, बइहा बवंडर-उलेण्डा पूरा, दुनिया भरके ये भयंकर अउ विकराल रोग-राई के रेला, कइसे, काबर अउ कहाँ ले हो जथे ? येला किस्मत के खेल, जलवायु परिवर्तन, मनखे के अपन पाँव म कुल्हाड़ी मरई कहिन कि का कहिन- भोगौ…

इतवारी: नवा बछर -खाए पीए उछर !!

सरी दुनिया 1 जनवरी के नवा बछर मनाथे। विविधता अउ विचार ले भरे भारत म 1 जनवरी के संगे -संग आने -आने बेरा म नवा बछर मनाए जाथे। तइहा समे बेरा ल नापे -जोखे -गिने के कोनो अधार नई रिहिसे। पूर्वज मन चँदा-सुरूज ल ठिहा मानके दिन ल नापय -गिनय। जेकर अनुसार चैत ले बछर शुरू होके फागुन म जाके सिरावय-थिरावय। अब ग्रेगोरियन कलेण्डर आगे हवय जेला सरी दुनिया मानथे अउ ओकरे दिन -तिथि अनुसार चलथे। एकर शुरूआत 1 जनवरी ले होथे। इही दिन दुनिया नवा बछर मनाथे। भारत किसनहा…

इतवारी: तोर धरती तोर माटी रे भइया !!

एकता म बल अउ भल सिरजथे- सँवरथे त अनेकता म छल, खल अउ दल पनपथे। खल मन छल -छेदा के भरोसा दल बनाके अपन सुवारथ ल पोसत पालत गाँव, समाज अउ देश ल घालत रहीथे। विकास के पाँव ल उसेल के खोरवा-लँगड़ा कर देथे। ये बात ल कतकोन गुनी, ग्यानी अउ गुरू मन कही डारीन, फेर अकेल्ला खाए- मारे टकराहा अटेलिहा, अपखया अउ अप्पत मानुस चोला ये गरू गुनान गोठ के गहिरई म गोता लगाए के गुर ल नई अजमा पाइन। ककरो दिवस मनाए भर ले दशा अउ दिशा म…