भारतीय संस्कृति शौर्य अउ वीरता के बड़का उपासक हरे। बछर भर के जम्मो तिथि म चैत अउ कातिक अंजोरी के प्रतिपदा (एकम) अउ कुंवार अंजोरी के दशमी, ये तीनों तिथि ल भारी शुभ माने गे हवय। कुंवार शुक्ल (अंजोरी पाख) के दशमी तिथि के हिन्दू मन के प्रमुख तिहार विजयादशमी होथे, जेला शस्त्रपूजा के रूप म मनाए जाथे। कहिथे ये दिन जउन बूता के शुरूआत करे जाथे ओमा विजय बजूर मिलथे। मर्यादा के ब्राण्ड एम्बेसेडर श्रीराम इही दिन रावण ल बधे रिहिसे अउ शक्ति के ट्रांसफार्मर देवी दुर्गा ह नौ…
Category: Dharmendra Nirmal ke Sar Samachar
इतवारी: ओ माया मोर !!
धान कटोरा छत्तीसगढ़ संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के संगम हरे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन सत्तम-महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे। नवरात म देवी माँ नौ रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सबो…
इतवारी: कऊँवा बाप !!
भादो पुन्नी के पूछी धरे ओरी- ओरी पितर मन उतरथे अउ अपन बाँटा के बरा-चीला ल मोटरी बाँधके कुँवार अमावस के रेंग देथे। येला पितृपक्ष माने श्राद्ध पर्व कहिथन। पितर मन के तृप्ति खातिर श्रद्धापूर्वक करे गेहे तर्पण ल श्राद्ध कहिथे। पारिभासिक रूप म कहि सकथन कि अइसन विवाहित, अविवाहित, स्त्री, पुरूष, लइका या सियान जिंकर मऊत हो जाए रहिथे उन्कर आत्मा ल पितर कहे जाथे। श्राद्धकर्म ह पितर ऋण चुकाए के सबले सस्ता, सरल अउ सहज मार्ग हरे। पितृपक्ष म श्राद्ध करे ले पितरमन बछरभर प्रसन्न रहिथे। मँहगाई के…
इतवारी: हरिकीर्तन गोभीचोर !
जानकारी के होना डर के सबले बड़े कारन होथे। कभू -कभार अनजान होना मनखे बर बनेच होथे। आप कोनो अनजान रद्दा म जाथौ त सुनसान रथे तभो कोनो किसम के डर-तरास नई हलावय-डोलावय। कहूँ सुन-जान डारेंव कि वो रद्दा म कुछू हवय, त निश्चित हे उहाँ ले गुजरे बर कोनो संगवारी के संग ल पक्का जोरिहौ -धरिहौ। मुँहाचाही के बहाना तो बोहनी -बट्टा ये हिम्मत बटोरे के। मनखे दिमाक के खाली संदूक लेके अवतरथे। दिमाक के खाली संदूक म घर, आस-परोस अउ दुनियादारी के गीला कचरा-सूखा कचरा जम्मो जमा होवत…
इतवारी: तीजा -मइके के दुलार, खुशी के बीजा
एक कमइया मनखे बर सबले बड़े खुषी ओकर कमाए बूता के फर होथे। तभेच तो प्रेमचंद अपन कहानी ‘हार की जीत’ ल इहेंचे ले शुरू करथे कि एक किसान ल जउन खुशी अपन लहलहावत फसल ल देखके होथे, उही खुशी सुजानसिंह ल अपन घोड़ा ल देखके होवय। माने फसल के लहलहाना दुनिया म सबले बड़का खुशी होथे। भादो के महीना म धान के पौधा म दाना भराव/पोटरियाए माने गर्भधारण के प्रक्रिया चालू होथे जेला ‘पोटरी पान’ धरना कहिथे। छत्तीसगढ़ म पहिली पइत गर्भधारण करईया नारी ल पीहर वाले मन सातवा…
इतवारी पढ़बोन ! बढ़बोन !! गढ़बोन !!!
कीरहा कोरोना के मुड़ म टीका के टँगिया परगे हे, फेर ओकर नाव नई बुताय हे। कलबलागे हवय। खिसियानी बिलई खम्भा खुरचै। लाल मुड़ी के टेटका कस बीच-बीच म मु़ड़ ल उठाके हलावत रहिथे। लइका मन बर डेरडेरावन होगे हे। पेड़ के खोंड़रा ले चीड़रा ‘बुलुँग ले’ निकलके भूँईया म ‘पुचुक-पुचुक’ फुदकथे खेलथे त मन-मँजुर ‘पेंएँ-पेंएँ’ करत पाँखी बगराए झूमे-नाचे लगथे। रंग -बिरंगी तितली मन ‘फुर्र-फुर्र’ एति-ओति उड़ाथे त पतझर के पात झरे उदास मन म तको बसंत के उमंग उत्पात मचाए लगथे। कोयली तन ले कतको कारी हो जवय…
इतवारी: कमरछठ
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के भाषा म एक शब्द हे – ‘सेरोगेसी’। दूसर के कोख म अपन गर्भ ल पालके अवतरित करना, माने ‘किराया के कोख’ ल सेरोगेसी के संज्ञा दे गे हवय। येला धर्म शास्त्र म ‘संकर्षण’ कहे जाथे। देवकी के गरभ ले उपजे छै संतान कंस के हाथ एकक करके काल के गाल म मेलागे। तब सातवां गर्भ ल रोहिणी के कोख म संकर्षित करे गइस। बलदाऊ ह सफल संकर्षण के सुफल हरे। नारी जीवन के सबले बड़े सफलता ओकर माता बनना होथे। अपन कोख ले नवा जीवन जनना,…
इतवारी – भोजली के मितानी, बहिनी के मया !!
घुघुवा के खोंधरा म पारस पथरा होथे। पारस पथरा लोहा ल सोना म बदल देथे। भारत सोन- चिरई हरे। ये सोन चिरईया के खोंधरा म पथरा नई होवय। येकर खोंधरा के तिनका -तिनका संस्कृति ले बने हावय। संस्कृति ह पारस पथरा कस लोहा ल सोन नई कर सकय, फेर धूल ल फूल अउ कोइला ल हीरा बनाए के बेद्दम दम रखथे। सोन चिरइया ह धान के कटोरा म दाना चुगथे। धान कटोरा छत्तीसगढ़ ह संस्कृति अउ संस्कार के बटकी हरे। हर छत्तिसगढि़या बटकी म बासी, चुटकी म नून खाके हर…
इतवारी: सावन म करेला खाएन
सावन के आते तिहार मन के भरका फूट जथे। हरेली ह बारो महीना के पहिली तिहार होथे। हरेली के पीछू पीछलग्गा बछर के अउ आने तिहार मन सरलग ओरियाए रहिथे। हरेली ह हरियाली, आनंद अउ उछाह के तिहार हरे। खेत म हरियर-हरियर धान लहरावत रहिथे। फसल के इही हरियाली के खुशी म किसान हरेली तिहार मनाथे। हरेली तिहार ल सावन महीना के अमावस के दिन मनाए जाथे। हरेली ल रथयात्रा परब के रूप म तको मनाए जाथे। ए दिन चरवाहामन मालिक ठाकुर के घर-दुवारी म लीम डारा खांेचथे। लीम के…