इतवारी: गुरू गूगल दोउ खड़े

गुरूब्र्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरूः साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरूवे नमः। गुरूपूर्णिमा गुरू – पूजन के दिन हरे। असाड़ के पुन्नी ल गुरूपूर्णिमा कहिथे। ये दिन गुरूतत्व ह हजार गुना क्रियाशील रहिथे, जेकर ले ओकर फल तको हजार गुना फलित होथे। इही दिन कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी ह 18 पुरान अउ उपपुराण मन के रचना करीन। पंचम वेद ‘महाभारत’ के रचना विश्व के प्रथम आशुलिपिक शिव-शिवानंदन श्रीगणेश के करकमल ले पूर्ण करे के पीछू ‘ब्रम्हसूत्र’ लेखन के श्रीगणेश करीन। तेकर सेति येला व्यासपूर्णिमा के रूप म तको मनाए जाथे। कतको…

इतवारी: अपनो टेम आही गा !!

घुरूवो के दिन बहुरथे। घुरूवा ह दुनिया भर के मइल ल झेल-सहि के सबो ल पचो लेथे। जे सहिथे तेकर कुछु बिगाड़ नइ होवय। घुरूवा परहित बर स्वयं म पचके खातू बनाथे। मनखे के पोषक अहार मन ल पोषन देथे। माने घुरूवा जगत के पालन-पोषण बर बड़ सहायक हे। महान हे ओकर करम। तेकरे सेति सियान मन कहिथे- मनखे ल घुरूवा होना चाही। घर के डेरौठी कस सरी दिन घुरूवो म दीया बारना चाही। नइ बारय, मनखे के जात बड़ स्वार्थी होथे। देवारी के दिन भर सही !! बछर भर…

इतवारी: मोर मन करिया रे !

बीस बछर बाद मोर चड्डु-पड्डु संगवारी अचानक जिनगी के मोड़ म मिलगे। बालपन के संगी दिन के उजास म तो संग रहितेच फेर जिनगी के करियाहा रात म तको राख भीतर धधकत अंगरा कस अभास अउ अहसास बनके दिल म रथे। वोह उही बालपन म एक ठो पथरा उठाइस अऊ अंतस के अथाह अऊ ठहिरे पानी म ‘टुभुक ले’ मार दिस – कतेक करिया गे हस रे। तोर जम्मोे रंग-रूप बदल गेहे। ‘दुनिया ल प्रेम के पाठ पढ़इया किसना तको तो करिया रिहिसे। आँखी के सेत-स्याम पुतरी राधेस्याम के प्रेम…

इतवारी: धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथे ?

बेरा बड़़ बइहा हे। दिन देखय न रात, सरलग रेंगते रहिथे। दिन -रात जगई -रेंगई म लड़भड़वत रहिथे। कभू -कभार उँघाए तको लगथे। नींद म रेंगही त काकरो न काकरो ऊपर झपाबे करही। बनत के बनौका, गिनहा होगे त दुर्घटना। दुर्घटना ले देर भली कहिथे। देरी करे म पीछुवा जथन, तब कहिथे – जिनगी म आगू बढ़ना हे त समे के संग कदम मिला के चल। ये दूनो पाटा के बीच भेजा म एकात कनक बुध्दि हे, तउनो ह घुना कस कीरा पीसा जथे। जे मनखे ते गोठ। काकर ल…

इतवारी: कबीरा खड़े बजार

दाई अबड़ समझाइस – पढ़ बेटा ! पढ़ !! नई पढ़ेन – हटा सावन के घटा। ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय। जादा पढ़िन, ते महापंडित होगे- एको अहम दूजो नास्ति। ज्ञानी मारे ज्ञान से अंग – अंग भींग जाय, अज्ञानी मारे ठेंगा से मुडी़ कान फूट जाय। मीठ-मीठ बोलके जहर पीयावत हे। लड़ावत हे, सड़ावत हे, अपन झण्डा गड़ावत हे। प्रेम गीत गाके, मन भर मया के रसा चुहकत हे। मुख म राम बगल म छुरी, भगवा ओढ़ जपै – भूरी ! भूरी !! धरम -करम, नीत-…

इतवारी: पूत के पांव पिता के पनही

पूत के पाँव पलने म दीख जथे। पूत सपूत त का धन जोरय, पूत कपूत त का धन जोरय। सपूत बर जोरे के का जरूरत, वो खुदे जोर लेही। कपूत बर जोरे का काम के, सब ल उजार डारही। बुढ़ापा म दाई -ददा लइका ले छप्पन भोग के इच्छा नई करय। लइका के व्‍यक्तित्‍व अउ कृतित्व ल देख जतका खुश होथे, छप्पन भोग खाके नई होवय। छप्पन भोग का, खिचरी पचाए के उन्कर हिम्मत नई राहय। दाँत संग देई देही त आँत ह धपोर देथे। पता नहीं मोर बात कतिहां…

इतवारी: तोर शहर म का धरे हे?

बड़ा हुआ सो क्या हुआ, उँ..उँ..बड़ा हुआ उँ….उहीच -उहीच डाँड़ ल घेरी -बेरी घोरियावत सुन बबा कहिथे – अरे बूजा ! बाढ़ भर गे हस रे ! हुड़मा कस डुंगडुंग ले, अक्कल के न बुध के। उहू पेड़ का काम के? जउन फरय न जुड़ झाँव दे सकय। पढ़े भर ले कुछु उदबत्ती नइ जरय, कढ़े बर तको परथे। पढ़, कढ़ अउ बढ़। कोनो शहर अइसे नई हे जिंहाँ गाँव नइ बसे होही। गाँव ल पाँव तरी रउँद के शहर अपन पनही चमकावत टेस मारत हे। पैडगरी रद्दा ल लील…

इतवारी : साग म नमक

साग बिन नून के, सुवाद के न गुन के। साग म नमक ओतके डारना चाही जतका म सुहावय अउ सुवाद बने रहय। जादा मीठे भर करू नई होवय, खर तको करूवा जथे। अति बर सबो रद्दा म गति अवरोधक होथे। जेन अन्न ल खाए बिगर मनखे जीए नइ सकय उही अन्न ल जादा खाए म मर तको सकथे। जादा ह अनपचन हो जथे। जरे म नमक छीते ले जलन बाढ़थे कम नइ होवय, ये हँ अत्याचार हरे। ईमानदार मनखे ककरो उपकार ल नमक ले संबोधित करथें। मोर उपर ओकर नमक…

इतवारी: अरे, ओ भाय !!

खोजे ले मुड़ के घन जंगल म जुँवा मिल जथे। निकाले म बाल के खाल निकल सकथे। भूइयाँ ले खोदके हजारों बछर जुन्ना सिंधु सभ्यता ल निकाल लेन। अतके भर नहीं, खोधर -खोधरके ओकर अध्ययन तको करत हन। जब अध्ययन करे म मुड़ खपा सकथन त अपन बीते जिनगी ल झाँक के काबर नइ देख सकन। अपन बने, सुग्घर अउ सुखद जुन्ना दिन के सुरता के झिरिया ल काबर नइ खोद सकन। आसरा ल चिमोट के पोटारे, पार म बइठे भर ले पियास नइ बूझावय। मेहनत करे बरे परथे। कतको…