सियानमन कहयं बाजार हाट मेला मड़ई गए अउ धक्का नइ खाए त का खाए ? ये नवा जुग हरे। हमर राजधानी रायपुर मेला ले कोनो कम थोरे हे। राजधानी के मुहाटी टाटीबंद चौक म पहुना के अइसन स्वागत होथे, त सगा के मन ले उद्गार निकलथे – राजधानी आए अउ धुर्रा नइ खाए त का खाए ?
Category: इतवारी
तुतारी – दूनो के दूनो ?
तुमन दूनो के दूनो ? हाँ, साहब ! हमन एके माई के लाल हरन। एके गाय के दूध पीथन। लीपी चारा चरथन अउ गोबर …..
तुतारी – परेड थम्म….
अरे ! दूएच महीना भर दम धर लौ न रे भइया हो, ताहेन सरी दिन सरी राज तो तुँहरेच चलना हे। अउ कभू तुमन ल काँही करे हवन जेन आज कर सकबोन। अउ लिखाके ले लेवव भविष्य म तको काँहिच नइ करे सकन। हमन ल तो खाली परेड करना हे। अरे ! जेकर सँइया भए कोतवाल। कोन करही बाँका बाल। जय लड्डुगोपाल ।
तुतारी – तुम पास हम फेल
तुतारी – तुम पास हम फेल इहू सौ प्रतिशत सही गोठियावत हे , उहू सौ प्रतिशत सच काहत हे । दूनों के दूनों हुसियार पास, टॉप टेन म अव्वल हे। गधा तो हम भएन जऊन दही के भोरहा म कपसा ल लील डारथन।
तुतारी –भरोसा
तुतारी – काश ! ये भरोसा आम जनता कर पातिस। अउ काश ! ये व्यवस्था सिरिफ अउ सिरिफ आम जनता बर नइ होके, सबो बर हो पातिस। अब तो हर मनखे के मन म इहीच भाव पनपथे – काकर करिन भरोसा ? काबर करिन भरोसा ? अउ कइसे करिन भरोसा ?
तुतारी –
तुतारी – हाथ हलावत आइन तेमन पा लिन हण्डा काँसा के छत्तीसगढ़िया भूखमर्रा चुचरय लालीपॉप दिलासा के।। उन्कर तो लीमऊ तको होथे कलिन्दर अतेक बड़े मुँह फार देखौ भैयाजी बिसात बिछत हे पासा के।।
तुतारी – बधई तो बधई होथे।
तुतारी – बधई तो बधई होथे। हम ल तुँहर बोली भाखा, रहन सहन, रीत रिवाज अउ संस्कृति ले का लेना देना हे साहेब ! बधई देके तुँहर नजर म चढ़के टिकट के जुगाड़ भर तो करना हे। अउ अइसे भी बधई गाड़ा गाड़ा या ट्रेक्टर के ट्राली म भर भरके दे, चाहे लदबद-ले गाढ़ा गाढ़ा या पातर पनियर दे बधई तो बधई होथे। टिकट के जुगाड़ नइ होही त बागी होके आगी ढीलना हे, नइते पाला बदलके पर के रागी हो जाना हे। छत्तीसगढ़िया मन ल का चाही ? बस…
तुतारी – का आदमी अस
हम तो अतके चाहत रेहेन साहेब कि हमर छत्तीसगढ़ी बाचे राहय, हिन्दी ल बने ढंगलगहा बोले बताए अउ लिखे उचारे बर जान सीख लेवन तेकर पीछू अंग्रेजी के पूछी ल धरतेन, फेर इहाँ तो सबे खदर बदर होवत हे। का आदमी अस अपन भासा के बोल न जाने, अपन भासा के मोल न जाने। जनम देवईया जग के पहिली, माँ सबद के तोल…
ये पार राहुल ओ पार राहुल बीच म बघेलं !!
आया के धरहा अउ चोक्खा कैंची-चाकू ले काट-बोंगके जनमे चीरहा जींसधारी लइका मन के धियान कोन कोति गिस होही तेला नइ बता सकवँ। फेर गँवइहा दाई के मीठ मया भरे गारी, अथक मेहनत अउ सार्थक साधक हाथ ले अवतरे धोती युगीन मनखे मन के मइन्ता म इहीच आइस होही। ये पार नदी वो पार नदी, बीच म ठुड़गा रूख रे !! सोन चिरइया गार देहे, हेरे के बेरा दुख रे !! हहो जी ! आप बिल्कुल सही पकड़े हैं। हम तभो धोती युगीन रहे हवन अउ आजो धोती युगीन हवन।…