इतवारी: ओ माया मोर !!

धान कटोरा छत्तीसगढ़ संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के संगम हरे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन सत्तम-महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे। नवरात म देवी माँ नौ रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सबो…

इतवारी: कऊँवा बाप !!

भादो पुन्नी के पूछी धरे ओरी- ओरी पितर मन उतरथे अउ अपन बाँटा के बरा-चीला ल मोटरी बाँधके कुँवार अमावस के रेंग देथे। येला पितृपक्ष माने श्राद्ध पर्व कहिथन। पितर मन के तृप्ति खातिर श्रद्धापूर्वक करे गेहे तर्पण ल श्राद्ध कहिथे। पारिभासिक रूप म कहि सकथन कि अइसन विवाहित, अविवाहित, स्त्री, पुरूष, लइका या सियान जिंकर मऊत हो जाए रहिथे उन्कर आत्मा ल पितर कहे जाथे। श्राद्धकर्म ह पितर ऋण चुकाए के सबले सस्ता, सरल अउ सहज मार्ग हरे। पितृपक्ष म श्राद्ध करे ले पितरमन बछरभर प्रसन्न रहिथे। मँहगाई के…

इतवारी: हरिकीर्तन गोभीचोर !

जानकारी के होना डर के सबले बड़े कारन होथे। कभू -कभार अनजान होना मनखे बर बनेच होथे। आप कोनो अनजान रद्दा म जाथौ त सुनसान रथे तभो कोनो किसम के डर-तरास नई हलावय-डोलावय। कहूँ सुन-जान डारेंव कि वो रद्दा म कुछू हवय, त निश्चित हे उहाँ ले गुजरे बर कोनो संगवारी के संग ल पक्का जोरिहौ -धरिहौ। मुँहाचाही के बहाना तो बोहनी -बट्टा ये हिम्मत बटोरे के। मनखे दिमाक के खाली संदूक लेके अवतरथे। दिमाक के खाली संदूक म घर, आस-परोस अउ दुनियादारी के गीला कचरा-सूखा कचरा जम्मो जमा होवत…

इतवारी: तीजा -मइके के दुलार, खुशी के बीजा

एक कमइया मनखे बर सबले बड़े खुषी ओकर कमाए बूता के फर होथे। तभेच तो प्रेमचंद अपन कहानी ‘हार की जीत’ ल इहेंचे ले शुरू करथे कि एक किसान ल जउन खुशी अपन लहलहावत फसल ल देखके होथे, उही खुशी सुजानसिंह ल अपन घोड़ा ल देखके होवय। माने फसल के लहलहाना दुनिया म सबले बड़का खुशी होथे। भादो के महीना म धान के पौधा म दाना भराव/पोटरियाए माने गर्भधारण के प्रक्रिया चालू होथे जेला ‘पोटरी पान’ धरना कहिथे। छत्तीसगढ़ म पहिली पइत गर्भधारण करईया नारी ल पीहर वाले मन सातवा…

इतवारी – भोजली के मितानी, बहिनी के मया !!

घुघुवा के खोंधरा म पारस पथरा होथे। पारस पथरा लोहा ल सोना म बदल देथे। भारत सोन- चिरई हरे। ये सोन चिरईया के खोंधरा म पथरा नई होवय। येकर खोंधरा के तिनका -तिनका संस्कृति ले बने हावय। संस्कृति ह पारस पथरा कस लोहा ल सोन नई कर सकय, फेर धूल ल फूल अउ कोइला ल हीरा बनाए के बेद्दम दम रखथे। सोन चिरइया ह धान के कटोरा म दाना चुगथे। धान कटोरा छत्तीसगढ़ ह संस्कृति अउ संस्कार के बटकी हरे। हर छत्तिसगढि़या बटकी म बासी, चुटकी म नून खाके हर…

इतवारी – देश के कुंडली म नांग के कुंडली !!

दूएच दिन पहिली नांगपंचमी रिहिसे। आज स्वतंत्रता दिवस हरे। हरेक बछर स्वतंत्रता दिवस के पहिली नांग मन भिंभोरा ले निकलके देश के कुंडली म कुंडली मारके बइठ जथे। येला देश के दुर्भाग्य काहन कि विकास बर विडम्बना। मोर मति हीनभावना के गुलामी म जकड़े हे तेकर सेति मैं निरने क्षमता म विकलांग होगे हववं। विज्ञापन देवत हौं – स्पष्ट बिचार बर स्वतंत्र बुद्धि वाले योग्य अउ महा गबरू मनखे के आवस्यकता हे। कुछु पाए बर कुछु खोए बर परथे कहिथे। करमचारी मन के एक दिन के छुट्टी ल शहीद करके…

इतवारी: सावन म करेला खाएन

सावन के आते तिहार मन के भरका फूट जथे। हरेली ह बारो महीना के पहिली तिहार होथे। हरेली के पीछू पीछलग्गा बछर के अउ आने तिहार मन सरलग ओरियाए रहिथे। हरेली ह हरियाली, आनंद अउ उछाह के तिहार हरे। खेत म हरियर-हरियर धान लहरावत रहिथे। फसल के इही हरियाली के खुशी म किसान हरेली तिहार मनाथे। हरेली तिहार ल सावन महीना के अमावस के दिन मनाए जाथे। हरेली ल रथयात्रा परब के रूप म तको मनाए जाथे। ए दिन चरवाहामन मालिक ठाकुर के घर-दुवारी म लीम डारा खांेचथे। लीम के…

इतवारी: गुरू गूगल दोउ खड़े

गुरूब्र्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरूः साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरूवे नमः। गुरूपूर्णिमा गुरू – पूजन के दिन हरे। असाड़ के पुन्नी ल गुरूपूर्णिमा कहिथे। ये दिन गुरूतत्व ह हजार गुना क्रियाशील रहिथे, जेकर ले ओकर फल तको हजार गुना फलित होथे। इही दिन कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी ह 18 पुरान अउ उपपुराण मन के रचना करीन। पंचम वेद ‘महाभारत’ के रचना विश्व के प्रथम आशुलिपिक शिव-शिवानंदन श्रीगणेश के करकमल ले पूर्ण करे के पीछू ‘ब्रम्हसूत्र’ लेखन के श्रीगणेश करीन। तेकर सेति येला व्यासपूर्णिमा के रूप म तको मनाए जाथे। कतको…

इतवारी: अपनो टेम आही गा !!

घुरूवो के दिन बहुरथे। घुरूवा ह दुनिया भर के मइल ल झेल-सहि के सबो ल पचो लेथे। जे सहिथे तेकर कुछु बिगाड़ नइ होवय। घुरूवा परहित बर स्वयं म पचके खातू बनाथे। मनखे के पोषक अहार मन ल पोषन देथे। माने घुरूवा जगत के पालन-पोषण बर बड़ सहायक हे। महान हे ओकर करम। तेकरे सेति सियान मन कहिथे- मनखे ल घुरूवा होना चाही। घर के डेरौठी कस सरी दिन घुरूवो म दीया बारना चाही। नइ बारय, मनखे के जात बड़ स्वार्थी होथे। देवारी के दिन भर सही !! बछर भर…