इतवारी: अन्न हे त टन्न हे, नइते सना सन्न हे !!

भीड़ के कोनो चेहरा नइ होवय, अभाव के चेहरा चुकचुक ले होथे। अभाव के दर्शन करे बर होवय त किसान के चेहरा देख लेवय। भारत गँवइहा अउ किसनहा देश हरे। इहाँ गाँव अउ गाँव मन म किसान मन के भीड़ हे। भीड़ माने अभाव के मेला हे। ते हिसाब ले भारत के कोनो चेहरा नइहे, मुड़कट्टा हे, फेर भारत तो सोनचिरइया ये कहिथे। माने दूमुँहा हे। संगे-संग दूदँत्ता तको हे, एक दाँत खाए के एक देखाए के। जब ये हाथी एके ठन हे, देश एके ठन हे त ये चेहरा…

इतवारी: तुलसी के बिरवा ल चौरा म लगाले दीदी…… !!

कातिक अंजोरी पाख के एकादशी ल देवउठनी (जेठउनी) एकादशी के नाम ले जाने जाथे। देवोत्थान एकादशी, प्रबोधनी एकादशी तको कहिथे। जेठउनी ल छोटे देवारी तको कहिथे। छत्तीसगढ़ म जेठ बड़े ल कहिथे। असाढ़ अंजोरी एकादशी ले कातिक एकादशी तक चौमासा/चातुर्मास कहाथे। चौमासा म देवता मन सुते रहिथें। ये बेरा म शुभ काम के मनाही होथे। एकादशी चातुर्मास अवधि के बुढ़ापा/समापन के प्रतीक हरे। इही दिन क्षीरसागर म शेष सैय्या म सुते भगवान विष्णु योगनिद्रा ले जागथे। एकादशी के दिन ले कातिक नहाना अउ जम्मो शुभ काम मन के श्रीगणेश होथे।…

इतवारी: जोहर जोहर मोर गऊरा – गऊरी !!

छत्तीसगढ़ के लोक आस्था, परब, तीज-तिहार अउ संस्कृति के बगराव उल्का ले भुलका तक हावय, माने इन्कर जर ह भूँईया के भीतर अउ डारापाना ह असमान के ऊपर तक बगरे हावय। जिनगी क्षणभंगुर हावय। मनखे काया ल माटी समझथे। फेर इहाँ के मनखे के जीजिविषा अउ जीवटता के आगू ईसर तको नतमस्तक हो जथे। इहाँ माटी के बड़ महिमा हे। माटी म माटी मिलके मनखे सोन उपजाथे उहेंचे ईसर राजा ल तको सिरजा डारथे। उही सेति इहाँ के भाखा भर म दया -मया के सुग्घर मिलाप नइहे भलकुन हरेक तीज-तिहार…

इतवारी अंधियारी पाख, अंजोरी परब -देवारी !!

श्रद्धा, विश्वास अउ आस्था जब भीतर तक घुर-मिल जथे तब जनमानस के महासागर म उछाह ह उफल जथे अउ तिहार बनके चारों खुँट बगर जथे। उमंग अउ उछाह के परब देवारी दशहरा बुलकथे अउ पाँव म पइरी बाँधके छनछन करत आए के आरो करे लगथे। हमर गँवई के कलेण्डर अँगरी म चलथे। पीतरखेदा के दस दिन बाद दशहरा ओकर बीस दिन बाद देवारी। गूगल बाबा के चेला मन नक्शा देखावत-फरिहावत कहिथे- राम ह तो रावण मारके पुष्पक विमान म उड़के आ गे। बानर सेना रेंगत आइन। लंका ले बानर सेना…

इतवारी: भाखा के लड़ई !

बड़ दिन बाद भईया पढ़ई करके घर लहुटिस। छोटकी बहिनी खुषी के मारे उचक के ओकर पीठ म चढ़गे। भईया कहिथे – ‘अब बस बहिनी, आई एम वेरी टायर्ड’। ‘का ? तोर टायर फटगे’ ? भईया अपन हाँसी ल नई थाम सकिस। भकभकाके हाँसत कहिथे- ‘अरे यार ! मैं थक गे हववँ’। ‘अब तैं अपन हुसयारी झन मार, सोज्झे-सोझ कहा न कि थके- माँदे हवँ कहिके’। ‘त अतेक लड़थस काबर भई, काके अतेक बैर -बिरोध करथस समझ नइ आवय’ ? ‘कइसे समझ आही, अक्कल राहय त ? लड़हूँ काबर नहीं।…

इतवारी हाय शरद ! बाय मानसून !!

चार दिन पहिली दाई दुर्गा के बिदाई करे हावन। आँखी के पानी सुखाए नई पाए हे अउ अब मानसून तको बिदा माँगत हे। शरद पुन्नी के आना माने मानसून के जाना। बछर म 24 पुन्नी होथे। जेमा कातिक पुन्नी, माघ पुन्नी, शरद पुन्नी, गुरू पुन्नी अउ बुद्ध पुन्नी ये पाँच पुन्नी मन पंच होथे जिन्कर मुखिया पंच होथे – शरद पुन्नी। विज्ञान बताथे के दूध म लैक्टिक अम्ल अउ अमृत तत्व होथे, जऊन ह सूरज के किरण ले जादा से जादा मात्रा म शक्ति ल सोखथे। चाँऊर म स्टार्च होथे…

इतवारी: मर्यादा अउ शक्ति के ब्राण्ड एम्बेसेडर !!

भारतीय संस्कृति शौर्य अउ वीरता के बड़का उपासक हरे। बछर भर के जम्मो तिथि म चैत अउ कातिक अंजोरी के प्रतिपदा (एकम) अउ कुंवार अंजोरी के दशमी, ये तीनों तिथि ल भारी शुभ माने गे हवय। कुंवार शुक्ल (अंजोरी पाख) के दशमी तिथि के हिन्दू मन के प्रमुख तिहार विजयादशमी होथे, जेला शस्त्रपूजा के रूप म मनाए जाथे। कहिथे ये दिन जउन बूता के शुरूआत करे जाथे ओमा विजय बजूर मिलथे। मर्यादा के ब्राण्ड एम्बेसेडर श्रीराम इही दिन रावण ल बधे रिहिसे अउ शक्ति के ट्रांसफार्मर देवी दुर्गा ह नौ…

इतवारी: ओ माया मोर !!

धान कटोरा छत्तीसगढ़ संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के संगम हरे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन सत्तम-महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे। नवरात म देवी माँ नौ रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सबो…

इतवारी: कऊँवा बाप !!

भादो पुन्नी के पूछी धरे ओरी- ओरी पितर मन उतरथे अउ अपन बाँटा के बरा-चीला ल मोटरी बाँधके कुँवार अमावस के रेंग देथे। येला पितृपक्ष माने श्राद्ध पर्व कहिथन। पितर मन के तृप्ति खातिर श्रद्धापूर्वक करे गेहे तर्पण ल श्राद्ध कहिथे। पारिभासिक रूप म कहि सकथन कि अइसन विवाहित, अविवाहित, स्त्री, पुरूष, लइका या सियान जिंकर मऊत हो जाए रहिथे उन्कर आत्मा ल पितर कहे जाथे। श्राद्धकर्म ह पितर ऋण चुकाए के सबले सस्ता, सरल अउ सहज मार्ग हरे। पितृपक्ष म श्राद्ध करे ले पितरमन बछरभर प्रसन्न रहिथे। मँहगाई के…