इतवारी: तीजा -मइके के दुलार, खुशी के बीजा

एक कमइया मनखे बर सबले बड़े खुषी ओकर कमाए बूता के फर होथे। तभेच तो प्रेमचंद अपन कहानी ‘हार की जीत’ ल इहेंचे ले शुरू करथे कि एक किसान ल जउन खुशी अपन लहलहावत फसल ल देखके होथे, उही खुशी सुजानसिंह ल अपन घोड़ा ल देखके होवय। माने फसल के लहलहाना दुनिया म सबले बड़का खुशी होथे। भादो के महीना म धान के पौधा म दाना भराव/पोटरियाए माने गर्भधारण के प्रक्रिया चालू होथे जेला ‘पोटरी पान’ धरना कहिथे। छत्तीसगढ़ म पहिली पइत गर्भधारण करईया नारी ल पीहर वाले मन सातवा या नव्वां महीना म अबड़ किसम के व्यंजन खवाथे जेला ‘सधौरी’ खवाना कहे जाथे। धरती के भगवान किसान पोरा म किसम -किसम के ब्यंजन ठेठरी-खुर्मी भरके अन्नपूर्ना दाई ल सधौरी खवाथे। ये तरह पोरा म हमार प्रकृति प्रेम पोहाए हवय। अपन सुख दुख के संगी -सहायक बईला के तको बने सजा-धजा के पूजा करथे पोला ल ‘बैल पोला’ तको कहिथे। ये किसम ले पोरा हमार जड़ अउ चेतन के प्रति लगाव के परिचायक हरे। पोरा के दिन नंदीश्वर के अवतरन दिवस तको हरे। पूजा के बाद नंदीश्वर के प्रतीक बइला ल लइका मन खेलथे त बड़े मन बइला दउड़ के आयोजन करथे। भगवान श्री कृष्ण ल बधे बर कंस ह सब रक्सा मन ल गोकुल भेजय जेमा एक झिन पोलासुर तको रिहिस। कृष्ण ह पोलासुर ल भादो महीना के अमाऊस के दिन मारे रिहिसे तेकर सेति येकर नाम पोला परिस हे कहिथे। अइसे पोरा के तिहार ह धर्म के संवाहक हरे।
भादो अंजोरी के दूसर दिन तीजहारिन मन करू-करेला खाके तीजा के उपास रहिथे जेला ‘करू-भात’ खाना कहिथे। करू करेला शरीर बर मीठ हितुवा, हरू पाचुक अउ गरू पौस्टिक होथे। शरीर ल एंटीआक्सीडेंट, बिटामीन ए बी सी जिंक, आयरन, पोटेशियम ले भरपूर अउ जुड़वास देवइया होथे। तीजा ल निर्जला रखे जाथे। करेला ले पियास नई लागय। ये तरह तीजा म आयुर्वेद-विज्ञान समाए हे। तीजा ल ‘हरितालिका तीज’ घलो कहिथे। सतयुग म माता पार्वती भूत भावन भगवान शंकर ल पति रूप म पाये बर करूभात खाके निर्जला उपास रिहिस। वो समे माता पार्वती कुँवारी अउ मइके म रिहिसे हे, तेकर सेति ये तिहार ल मइके म रहिके मनाए के परम्परा हवय। कुँवारी कइना मन तको सुग्घर बर के आसरा म ये दिन निर्जला उपास रहिथे।
मइके के नाव बर नारी एक पाँव म खड़े रहिथे। बछर के ये एक दिन ल नारी परानी ससन भर जीना चहिथे। ‘ससन भर’ के ये सबद म सिरिफ साँसे भर नई समाए हे भलकुल ये संसार के सम्पूर्णता समाए हवय। ससन भर स्वंतत्रता, ससन भर हाँसी-ठिठोली, ससन भर मइके के मया-दुलार, ससन भर संग-सहेली, मेल -मिलाप, ओतके ससन भर बचपन के खेल-खेलौना, फुगड़ी -झूलना। इही ससन भर के सुख खातिर वोह बछर भर ये दिन के बाट जोहथे। त्याग के मूर्ति वो नारी के मन-महानता देखव उन कहिथे- मइके के बाँड़ू कुकुर आ जही ओकरो संग चले जाहू। मइके के फरिया घलो अमोल होथे उन्कर बर।
तीजा के दिन, दिन भर उपसहीन मन बालूका लिंग माने बालू या माटी के शिवलिंग बनाके। केरा पान के मण्डप खड़ो करथे अउ बने फूल पान, रेशमी कपड़ा ले सजाथे जेला ‘फुल्हेरी सजाना’ कहिथे। शिव पार्वती के पूजा ल फूलहरी सजा के पूजा करना कहे जाथे। दूसरइया दिन माने चतुर्थी के दिन बिहनिया ले पूजा पाठ करके अपन पति के लंबा उमर के प्रार्थना करके ‘फरहार’ करथे। तेकर पीछू गणेश चतुर्थी माने भादो के अंजोरी पाख म चऊथ (चौथी तिथि) के पश्चिम, मध्य अऊ उत्तर भारत म धूम-धाम से मनाये जाथे। ये दिन देवादिदेव महादेव अऊ माता पार्वती के पहिलावत पुत्र विघ्नहर्ता भगवान गणेश के मूर्ति स्थापना करे जाथे। जउन हमर आस्था, श्रद्धा अउ समर्पण के जोरन होथे।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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