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इतवारी: हरेक रन में अघुवा, छत्तीसगढि़या बघवा !!

कोन मनखे किहिस होही कि मरद ल दरद नई होवय। ओकर चोखू बानी ल सहिराववँ, चरन ल चुरूवा-चुरूवा गंगाजल म पखारके चरनामृत लेववँ। कतको अप्पत, घेक्खर अउ बैसुरहा पूत होवय, पाँव म एक ठो सरहा काँटा गड़े ले दाई-ददा के सुरता बजुर करथे। दुख म सुमिरन सब करै सुख म करै न कोय।
मनखे गुनहगरा होथे, कतको कर ले गुन के न जस के।
इतिहास पोठ, जबर अउ चाकर छाती वाले के पाँव पखार पागा पहिरा अपन छाती ठोकथे। गुन गाथे, गरब करथे। आँखी म टोपा बाँध छू-टमर के नियाव नई करय। वोह ठोक बजा के तऊले के बाद अपन कोरा म कोनो ल जगा देथे। इतिहास बइमानी नई करय। लल्लो-चप्पो ल इतिहास पताल पान म नई सूँघय। वो तो मनखे बंचक, बइमान अउ बदनीयत होथे जऊन अपन हाँके बर कोनो ल छोटे आँकथे।
छाती भर के रहे ले मनखे महान नई हो सकय। महानता बर परम करम, धरम अउ मरम चाही। छाती तो दफड़ा अउ सूपा के तको होथे, एक बाजथे दूसर फूनथे। छाती सुतई के होथे जऊन मरके मोती दे जाथे।
वो दाई ल दण्डवत प्रणाम जऊन अइसन जबर बेटा ल जनम देथे। देश म अइसन कतकोन गुदड़ी के लाल होइन जऊन कथरी ओढ़के घींव खवइया मन ले जबर, जऊँहर अउ जझरंगा बूता करे हवय। छत्तीसगढ़ तको येमा कभू पीछू नई रहे ये।
सत्रहवी सदी म सोनाखान जेकर जुन्ना नाम सिंहगढ़ रिहिस नवा राज बनिस। सोनाखान छत्तीसगढ़ के वर्तमान बलौदाबाजार जिला म ह हवय। इहाँ के जमींदार रामसाय सिंह बिंझवार सारंगढि़या मन के वंशज रिहिन। पीछू ये मन राजगोंड़ ले बिंझवार होगे। उही सोनाखान म युवराज सिंह के जनम 1795 म होइस।
गोड़वाना बघवा युवराज नारायण सिंह सच्चा देशभक्त, प्रजा के सेवक अउ बड़ मयारूक रिहिन। एक पइत एक ठो मसगिद्दा बघवा सोनाखान म आ धमकिस। ओला का पता कि एक म्यान म दू तलवार नई आवय, न एक जंगल म दू बघवा राहय। जनता डेराए, पोटा पोटारे घर ले निकले बर काँपे लगीन। तब नारायण सिंह अकेल्ला लड़के शेर ल ढेर कर दीन। ये घटना ल सुनके अंग्रेज मन ओला वीर नाम दीन। जऊन ल आज हम वीर नारायण सिंह के नाम ले जानथन।
जमीदार रामसाय सिंह बिंझवार के 1930 में मृत्यु के पीछू युवराज वीर नारायण सिंह सत्ता संभालीन। सन 1855 में छत्तीसगए म गोरिया सरकार आइन। सन 1856 में भीषण अकाल परे ले प्रजा के हितुवा वीर नारायण सिंह कसडोल के जमाखोर माखन ले जनता के खातिर अनाज के सहयोग मांगिस।
व्यापारी के मना करे ले अगस्त 1856 के नारायण सिंह ओकर गोदाम ले अनाज निकाल के भूखाए अउ दुखाए जनता ल बाँट दीन जेकर सूचना वोह अंग्रेजी सरकार ल खुदे दीन। तभो अनदेखना अंग्रेज येला सोनाखान के विद्रोह नाम दे दीन। अउ लूट के झूठा आरोप म फँसाके वीर नारायण सिंह ल 24 अक्टूबर 1856 के संबलपुर ले पकड़के रइपुर जेल म बंद कर दीन।
असल म सरकार ओकर राजनीतिक चेतना ले डर्रावय अउ जलय। जलय ये खातिर काबर के सोनाखान ही वो पइत अइसे जमीदारी रिहिसे जिंहा ले सरकार ल कोनो टकोली या टेक्स नई मिलत रिहिसे। सोनाखान के ये विशेष दर्जा अंग्रेजी आँखी म कसकय, मन म खटकय अउ छाती म धधकय।
मई 1856 म मंगल पांडे के विद्रोह के बाद पूरा भारत म अंग्रेज मन के प्रति गुस्सा बाढ़ गे। हाथी कतको दुबरा जावय भँइसा नई होवय। मरे हाथी तको सवा लाख के होथे। 28 अगस्त के छत्तीसगढ़ के बघवा रइपुर जेल ल टोर के निकल गे। 1 दिसम्बर 1856 के स्मिथ अपन सेना के टुकड़ी लेके बघवा ल पकड़े बर निकलिस फेर सफल नई होइस। चाबे साँप के मुँह जुच्छा के जुच्छा। खिसियानी बिलई खम्हिया नोचय। हारके वोह सोनाखान गाँव म आगी लगा दीस। जनता ल बचाए खातिर वीर नारायण सिंह ल मजबूरन अपन आप ल स्मिथ के हाथ म सऊँप बर परगे।
कुर्रूपाट के पहाड़ी आज ले ओकर शौर्य अउ वीरता के गाथा गावत, गवाही देवत शान से खड़े हावय। आज ले भारत भूइँया म उन अनदेखना, ईरसाहा अउ ऐबी गोरिया अंग्रेज मन के करिया -गोरिया मिंझरा अउ बेंवारस वंशज जिंदा हवय जऊन शिक्षा, स्वास्थ्य, समरसता, समभाव, एकता अउ भाईचारा इहाँ तक के धरम ल व्यवसाय बनाके अपन परिवार के पेट पोसत -पालत हावय। निर्लजता के मूल धरम, झूठ शान नीच करम। व्यवसाय के एके आँखी होथे, जेमा सिरिफ अउ सिरिफ मुनाफा दीखथे। जब वो हिसाब -किताब करे बर बइठथे त माटी, मया, मितानी अउ इहाँ तक के महतारी नई चिन्हय।
वीर नारायण सिंह ल रइपुर जेल म बंद करके देशद्रोह के मुकदमा चलाए गइस। गँहू के रोटी अउ अँधरा नियाव, जेति ले टोर ले उहिती मुँह। झगरा के नाम ओखी तइसे लालच, जलन अउ नीयतखोरी के नाम देशद्रोह। झूठ मुकदमा म सहींच के फाँसी, विधाता ल घलो नई आवय रोवासी। आखिर वीर नारायण सिंह ल फाँसी के सजा सुना देहे गइस।
डर म बाघ ल बाघ बाघ नई कहिके बाप बाप कहिथे तेन कहावत परदेशिया गोरिया सरकार ऊपर सोला आना सही उतरथे। उन वीर नारायण सिंह के राजनीतिक चेतना अउ ओकर प्रति जनता के दुलार ले अतेक भयभीत रिहिसे कि फाँसी भर नई दीस, भलकुन 10 दिसम्बर 1856 के रइपुर के जयस्तम्भ चऊँक म फाँसी देहे के पीछू ओला तोप ले उड़ा दिए गइस।
उन भाँपगे रिहिन हे, काँपगे रिहिन हे। जानगे रिहिन हे, मानगे रिहिन हे कि कहूँ वीर नारायण सिंह ल फाँसी भर देके मारबोन त लोगन एकर मठ/स्मारक बनाके पूजा करे लगहीं। एकर अस के राख ल माथ म चुपरके उही चिनगारी ले छत्तीसगढि़या मन हमन ल भूँज डारही। फेर उन मन ल का पता कि आगी लगथे तभे धूँगिया उठथे। ये आगी लगगे रिहिसे जेकर धूँगिया ले उन्कर आँखी करूवागे।
ये तरह भारत के स्वतंत्रता यज्ञ म शहीद वीर नारायण सिंह बिंझवार के रूप म हमार छत्तीसगढ़ के पहिली हूमन देवाइस।
दाई ददा के दुलरूवा, जनता के हितुवा, भारत माता के रतन बेटा, छत्तीसगढ़ के बघवा ल मोर बारम्बार प्रणाम।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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