कीरहा कोरोना के मुड़ म टीका के टँगिया परगे हे, फेर ओकर नाव नई बुताय हे। कलबलागे हवय। खिसियानी बिलई खम्भा खुरचै। लाल मुड़ी के टेटका कस बीच-बीच म मु़ड़ ल उठाके हलावत रहिथे। लइका मन बर डेरडेरावन होगे हे। पेड़ के खोंड़रा ले चीड़रा ‘बुलुँग ले’ निकलके भूँईया म ‘पुचुक-पुचुक’ फुदकथे खेलथे त मन-मँजुर ‘पेंएँ-पेंएँ’ करत पाँखी बगराए झूमे-नाचे लगथे। रंग -बिरंगी तितली मन ‘फुर्र-फुर्र’ एति-ओति उड़ाथे त पतझर के पात झरे उदास मन म तको बसंत के उमंग उत्पात मचाए लगथे। कोयली तन ले कतको कारी हो जवय मन के ओग्गर होथे। जबान तको करिया नई हे। मनखे के जात बूरा नई होवय, मन बूरा होथे। मन के पाप ले मनखे पापी होथे। मंसा पाप सबले बड़े पाप हरे। तेकर सेति मन ल फरियाए के सीख देहे जाथे। ओकरे सेति पाप ले डरौ पापी से नहीं कहिथे।
लइकामन हमर अंतस-अँगना के तितली-फाँफा हरे। हमर जिनगी अमराई के कोयली हरे। जिनगी के सुख-दुख भरे बियाबान जंगल के मँजुर होथे लइकामन। लइकामन के किलकारी ले ही जिनगी के फुलवारी माहकथे। बहार आथे। इंकर हाँसी ले हमार बासी जिनगी तको अमटहा नई लागय भलकुन जीवटता ल दू कौंर आगर पुष्टई देथे। इहीमन हमर भविष्य हरे। इंकर उचित शिक्षा अउ संस्कार हमर उज्जर सोनहा बिहान हरे। नेहे जतका पोठ होथे, घर के पोट्ठई ओतके जादा साबूत अउ सजोर होथे। बेबी ल बेस पसंद हे। झकास विकास बर बेस बहुत जरूरी हे। लइकामन मनखे समाज के नेहे हरे। समाज ल सबल, संस्कारी अउ विकास के प्रतीक बनाए बर लइकामन ल सरल, सहज अउ सजग शिक्षा अउ संस्कार के आँच म ‘ठन-ठन ले’ पकोए बर परही। अइसन नई कर पाबोन त भविष्य म हमार समाज ‘ठन-ठन गोपाल’ होके रहि जही।
अबड़ दिन ले स्कूल के कपाट मन मुँहजोरे गोठियावत असकटागे रिहिस होही। कुची के अगोरा म दिन-रात आँसू बोहावत तारा के आँखी तको उसुवागे रिहिस। अब जाके स्कूल के उदास कुरिया मन ‘मरे-जीओ’ ‘चोरोबोरो’ चिचियाही- एक एकम एक, एक दूनी दू….। खिड़की-दुवार मन मारे खुशी के अतका जोर से तारी बजाही कि ‘भड़ाँग-भड़ाँग’ बाजे लगही। तभो हमन ल कंझट नई लागय। चिरई-चिरगुन के चहचहाहट भला कब कंझट लगथे। नदिया -नरवा के कलकल भला कब कलबलाए असन लगथे। तितली -फाँफा मन के फुरफुरई फुसियइन नई लगय। भलकुन मुँड़मिंजनी माटी म धोए बाल कस फुरफुराथे।
कापी -किताब के पन्ना मन सपना सजोए अगोरत होही कि नान्हे -नान्हे लइकामन कोंवर-कोंवर हाथ ले सहिलावत हमार मुँह ल उघारके देखही। नान्हे-नान्हे आँखी मन नजर मिलाके हाँसे लगही त कतेक सुग्घर लागही -अहा ह !! मै तो लजा जाहूँ इमान से ! अइसे किताब के फोटू मन आपस म गोठियावत होही अउ मुचमुचावत होही।
स्कूल खुलगे हवय। अबड़ जरूरी तको रिहिसे। किताबी कोरा ज्ञान अउ अनुभव-अनुमान के बेवहारिक ज्ञान म उल्का-भुल्का के़ अंतर होथे। बल, बु़िद्ध अउ विद्या ले हीनमान हनुमान तको जझरंगा बूता करे म सक्षम नई होवय। बोहावत जल म बस्सावन के बसाहट होए के संभावना अबड़े कमती होथे। गंदा नरवा के मिलवट ले बस्साना अलग बात हरे, फेर येह कुसंस्कृति के निसानी हरे। एकर ले दुरिहाके जल के पवित्रता ल बचाके राखे जा सकथे। ये हमार जुम्मेदारी हरे। तरिया के पानी रूकथे तेकर पाय के बस्साथे। प्रकृति ले खिलवाड़ करना भल संस्कार नोहय। जो गतिमान हे, गतिमान रहना चाही। पवित्रता अउ विकास के अधार गतिमान रहना हे। ज्ञान ह समाजिक विकास के प्रमुख अउ पोठ पैदान हरे। जिनगी के खेल मैदान म ज्ञान ही अतुल, अकाट अउ अटूट बल हरे। बल के तीन प्रकार – तन, धन अउ ज्ञान बल म ज्ञान -बल सर्वश्रेष्ठ होथे। ज्ञान ल कोनो डाकू लूट सकय न चोर चोरी करे सकय। ज्ञान के बल म ही भारत विश्व-गुरू के पद म शोभायमान हो सरी जग ल ‘’खो’’ कर देहे रिहिसे, अब उही चुचरू देश मन एकरे बर ‘कबड्डी कबड्डी’ करे लागे हे। बेरा बलावत हे। नालंदा, तक्षशिला जइसन ज्ञान के भंडार रिहिसे तउन समे के गुनान, मान अउ गुमान ल सजाए-सँवारे के दिन फेर आगे हे। हमन ल एका होके ओला पुनर्जीवित करे बर परही। शिक्षा अउ संस्कार के नास होय ले बड़े ले बड़े देश नसा जथे। बुध के बइला धपोर देथे। वो हाल एक पइत हमर होगे हावय। हमला अइसन दिमागी हमला ले बाँच-बँचाके बचपन ल सँभाल -सजाके राखे बर परही, तभे हमर भविष्य सुधरही-सँवरही। विकास के रद्दा जगमगाही- चमचमाही। रटन्त विद्या खोदन्त पानी, हलू-हलू सिरजै जिनगानी। बूँद-बूँद ले घड़ा भरथे। सरपट दऊँड़के खरगोश अगुवा भले जही, जीत के ठिहा ल नई पोगरा सकय। जीतान के ऊँचान मचान म बिराजे बर केछुवा के लगन, धीरज अउ हौसला चाही। धीरे-धीरे सहीं फेर विकास ल गढ़े खातिर, आगू बढ़ना जरूरी हे। आगू बढ़े बर पढ़ना जरूरी हे, त चलव विकास ल गढ़े खातिर आगू बढ़े खातिर, पढ़े बर स्कूल चलिन हम !!!
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल