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वाचिक परम्परा ही आदिवासी के जिन्दा साहित्य हे पदमश्री डॉ. दमयंती बेसरा

रायपुर, राजधानी रायपुर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम म आयोजित तीन दिन के राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव के दूसर दिन आज प्रख्यात साहित्यकार मन अपन विचार के आदान-प्रदान करिन।
जानबा हे कि साहित्य परिचर्चा के अंतर्गत देश के प्रख्यात साहित्यकार सामिल होवत हें। जेमे दूसर दिन म कुल 33 भाग लेवईया मन ह परिचर्चा म भाग लीन। आज के सत्र म ‘भारत म जनजातियों म वाचिक परंपरा के तत्व अउर विशेषताएं अऊ संरक्षण बर उपाय, भारत म जनजातीय धर्म अउर दर्शन, जनजातीय लोक कथाओं के पठन अउर अनुवाद अऊ कई ठन बोली भाषाओं म जनजातीय लोक काव्य पठन अउर अनुवाद’ विसय म परिचर्चा के आयोजन करे गीस। आज के सत्र के अध्यक्षता पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा ह के जबकि सह सत्र अध्यक्षता प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह, रिर्पाेटियर डॉ. देवमत मिंज अउर डॉ. अभिजीत पेयंग कोति ले अउर आभार प्रदर्शन डॉ. रूपेन्द्र कवि कोति ले करे गीस।
पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा ह साहित्य परिचर्चा म अपन विचार वक्तव्य करत कहिन कि केवल वाचिक परम्परा ही आदिवासी के जिन्दा साहित्य हे। काबर के वाचिक परम्परा ले ही कई ठन समाज कोनो लेखन प्रणाली के बिना वाचिक इतिहास, वाचिक साहित्य, वाचिक कानून अऊ आन ज्ञान के एक पीढ़ी ले दुसर पीढ़ी म संचार करत आए हे। आन संस्कृति मन के जइसे भारतीय संस्कृति म वाचिक परम्परा ह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे हे। जेखर सेती एला संजो के रखे के जरूरत हे।
एखर अलावा डॉ. सत्यरंजन महाकुल, डॉ. स्नेहलता नेगी, डॉ. गंगा सहाय मीणा, श्री वाल्टर भेंग, श्रीमती वंदना टेटे, प्रो.पी. सुब्याचार्य श्री रूद्रनारायण पाणिग्रही श्री बी. आर.साहू, डॉ. संदेशा रायपा, श्रीमती जयमती कश्यप, डॉ. रेखा नागर डॉ. अल्का सिंह, डॉ. किरण नुरूटी, संग 33 ले जादा वक्ता ह घलोक साहित्य परिचर्चा म अपन विचार व्यक्त करिन।

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