दूएच दिन पहिली नांगपंचमी रिहिसे। आज स्वतंत्रता दिवस हरे। हरेक बछर स्वतंत्रता दिवस के पहिली नांग मन भिंभोरा ले निकलके देश के कुंडली म कुंडली मारके बइठ जथे। येला देश के दुर्भाग्य काहन कि विकास बर विडम्बना। मोर मति हीनभावना के गुलामी म जकड़े हे तेकर सेति मैं निरने क्षमता म विकलांग होगे हववं। विज्ञापन देवत हौं – स्पष्ट बिचार बर स्वतंत्र बुद्धि वाले योग्य अउ महा गबरू मनखे के आवस्यकता हे।
कुछु पाए बर कुछु खोए बर परथे कहिथे। करमचारी मन के एक दिन के छुट्टी ल शहीद करके स्वतंत्रता दिवस इतवार के अभरगे। मन म डंडा मारके झंडा फहराए बर जाए ल परही। नान्हेपन म स्वतंत्रता दिवस, गनतंत्र दिवस का होथे नइ जानत रेहेन। हमन 15 अगस्त अउ 26 जनवरी ल जानन। बाढ़ेन त जानेन 15 अगस्त माने अजादी के दिन होथे। थोरिक अउ बाढ़ेेन त समझेन अजादी माने काकर अजादी, कइसन अजादी अउ कहाँ तक के अजादी ? गणतंत्र अउ गनतंत्र म फरक पाछू समझेन। हम तो इही जानन मानन कि 15 अगस्त अउ 26 जनवरी माने खुशी के दिन। साल भर भले टेम कुटेम नहावन फेर ये दूनो दिन बिहिनिया ले नहाना हे। झक कपड़ा पहिनके स्कूल जाना हे। एक दिन पहिली नाच-कूदके बनाए तोरन ले स्कूल ल सजाना हे। देशभक्ति के गाना गावत फेरी निकालना हे। देश का होथे, देशभक्ति का होथे एकर ले कोनो मतलब नई राहय। न उधो से लेना न माधो के देना। न हानि म हार न लाभ के लालच। देश, देशभक्ति अउ शहीद के गुना -भाग करमचारी मन करय। हानि -लाभ के जोड़, घटाव, गुना, भाग बयपारी मन करथे। जेकर सेति गनित के अवतरन होइस। गनमान्य मन गनित बइठारथे। गनित म उन्कर बइठे, खड़ा होए अउ पाँव पसारके फसर-फसर सुते के अलगे सूत्र होथे। जेला हमन गुरूजी मन ले सीखेन-पढ़ेन। पढ़-लिखके समझगे तउन हुसियार, नई समझिन तउन कुसियार। हाँ, त हमन फेरी निकले रहेन अउ काकर फेर म पर गेन। फेरी म घेरी-बेरी इहीच फेर होथे। समझ आवय चाहे झन आवय, सुर म चिचियाना रहय। लइका बुद्धि अचानक फेरी म गाना के गुलामी टोर ‘बुलुंग ले’ बचपना म बुलक जावन अउ अपन मस्ती म गोठ -बात के फेरा लगाए लगन। गुरूजी चिचियावय- अरे ! कोलभील हो, सोजबाय गावव न रे। गुरूजी के नियम -कानून के चलत हमन फेर फेरी के गुलामी स्वीकारके गाए लगन- भारत देश हमारा, प्रानों से प्यारा। अतके भर सुरता रहय अउ हम इहीच भर ल फेरी भर गावन। बाकि बर सुर म सुर मिला देवन। हमू जानन अउ गुरूजी तको जानय कि सुर भर मिले हे मुर नहीं। तभो दूनो पाल्टी खुश। कतको पइत जिनगी के समीकरन ल बराबर करे खातिर अतका टोर-भाँज करेच बर परथे। दिल मिले के झन मिले हाथ मिलावत रही, आखिर म बात बनी जही। बैसुरहा सुर के आगू असुर-ससुर सब ल हारे बर परथे।
फेरी ले लहुटके ओरी-ओरी बइठ जावन। सहपाठी, गुरूजी अउ कुछु नेता टाइप मनखे मन भासन झाड़ै तेला एलम-ठेलम करत झेलन। एक झिन पंच महोदय रहयं। वोह सरीदिन विकास के गोठ करय। पंच ले विकास करके सरपंच बने के सपना देखय अउ उही खातिर कतको प्रपंच तको करय। सरपंची तो नई मिलिस फेर वोह प्रपंची म पोठ होगे। हर बछर वोकर अतके भासन राहय – 15 अगस्त ह सिरिफ मिठई खाए के दिन नोहय। खुशी मनाए के दिन हरे। इहां कोनो छोटे-बड़े नइहे। सबो बरोबर हे। सब ल बरोबर मिल-बाँटके खाना चाहीं। भासन के रासन पचते साठ वो करिया नाग ह भीड़ के भिंभोरा ले निकलके फन फइलाए फुसनत मिठई कुरिया म धमक देवय। उहाँ मिठई बँटइया लइका मन चमकावत कहय- अरे ! देख ताक के बाँटहू। अंधरा बाँटय रेबड़ी अपन-अपन ल चीन्ह -टमर के देवय कस हाल झन करहू। अजादी के रोटी म सबो के बरोबर हक-हिस्सा हे। दू बिलई के झगरा म बेंदरा कस दबाहू झन। हम सोचे लगन- ठीक हे, हमन बेंदरा भएन फेर ये बिलई कोन हे ? प्रस्न उछाले माने चटरहा के प्रमाणपत्र मिलना हे। गुरूजी से लाठीचार्ज तको करा सकत हे। अइसे कहिते- कहत वोह एक पुडि़या बूंदी के जगा तीन ठिन पुडि़या ल सरकारी खजाना के चंगुल ले अजाद कर देवय। हम सुरसा अवतार लिए मुँहफारे बोकबाय देखे लगन, त वो तोपचंद ह ‘धाँय ले’ गोला दाग देवय, गाँधी बबा के डंडा निकाल लेवय – का देखथौ रे ? बूरा मत देखौ, बूरा मत कहौ, बूरा मत सूनौ। हमार मन म ‘पुचुक -पुचुक’ प्रष्न उछलय कूदय- बूरा मत देखौ, बूरा मत कहौ, बूरा मत सूनौ। माने बूरा सोचे अउ करे जा सकत हे। ओतके म वोह हमन ल फेर बबा के रद्दा कोति रेंगा देवय अउ अपन ह बबा – छाप के भरोसा अउ छापे बर रेंग देवय।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल