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इतवारी: धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथे ?

बेरा बड़़ बइहा हे। दिन देखय न रात, सरलग रेंगते रहिथे। दिन -रात जगई -रेंगई म लड़भड़वत रहिथे। कभू -कभार उँघाए तको लगथे। नींद म रेंगही त काकरो न काकरो ऊपर झपाबे करही। बनत के बनौका, गिनहा होगे त दुर्घटना। दुर्घटना ले देर भली कहिथे। देरी करे म पीछुवा जथन, तब कहिथे – जिनगी म आगू बढ़ना हे त समे के संग कदम मिला के चल। ये दूनो पाटा के बीच भेजा म एकात कनक बुध्दि हे, तउनो ह घुना कस कीरा पीसा जथे। जे मनखे ते गोठ। काकर ल मानबे, काकर ल नहीं। एक के ल मानबे त दूसर कहिथे- सुनय सबके करै मन के। बूढ़ी दाई कहय – अपन रद्दा म आए कर अपन रद्दा म जाए कर। रेंगइया अपन रद्दा म बने रेंगत रहिथे आगू वाले झपा जही तेला कोन काय कर सकत हे। न तूने सिगनल देखा, न मैने सिगनल देखा …..हो जथे। एक दिन गिरत -हपटत मोरो कना झपा गे। होइस का ? फुरसुतहा बइठे, वाट्सअप के संदूक ल खोल के नवा -जुन्ना संदेश मन ल पढ़त- छाँटत रहेंव। बडे बइला के संदेश आए रहय। बड़ खुश होएंव। बछरू बर बइला के संदेश ? बइला मन के सींग -पूछ सबो बड़े होथे। वोमन बछरू मन बर अपन सींग -पूछ दूनो के उपयोग बरोबर करते रहिथे। रहिथे तेन चीज के उपयोग होते रहिना चाही। नइते माड़े -माड़े जुनिया जथे। बइला कहूँ बछरू ल सहिला देथे ओतके बछरू बर गजब गरब के बात होथे। लिखे रहय – ‘तोर रचना ल पढ़ेव रे बाबू !! बने लिखथस। सारगर्भित लेख बर बधाई।’
‘धन्यवाद भैयाजी !! अइसनेहे दृष्टिपात करत रहिहौ।’
बइला फुसने लगिस- ‘हमार नजर का अतेक गए बीते हे रे जेमा हम दृष्टि-पात करबो ?’
‘छमा करिहौं भइयाजी ! कृपया दृष्टिघात करत रहिहौ। मया अउ दुलार बर आप मन के कोठी-कोठी धन्यवाद !’
पानी म रहिके मंगर ले दुश्मनी नइ करे जाय। कोठा म बइले संग रहिना हे त कइसे करबे। बइला के मन जुड़ होगे। मोला पहिलीच ले खटकत रिहिसे, बइला ह कोनो मेरन हुमेलै- पटकै झन कहिके। अउ जझरंग ले पटकी दीस। तैं तो खाँटी छतिसगढ़िया हरस, धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथे ? धन्यवाद तो परदेसिया हरे। सोचे लगेंव – धन्य संस्कृत के विशेषण हरे जेकर माने साधुवाद, प्रशंसा या बड़ई के योग्य होथे। ध्रन्या ह स्त्री. (संस्कृत) आय जेकर माने पत्नी, जोरू। धाय, दाई।
धन्यवाद पुंिल्ंलग (सं.) साधुवाद, प्रशंसा। उपकार, अनुग्रह के बदला म कृतज्ञता प्रकट करइया शब्द। संस्कृत तो हमर माई भाखा हरे परदेसिया कइसे होइस।ंजबकि जिला – पुंल्लिग अरबी जिलअ शब्द ले बने हे जेकर मतलब कोनो क्षेत्र या प्रांत के छोटे विभाग, तहसील- स्त्री (अरबी) लोगन ले रूपिया उगाही। वसूली के भाव, उगाही होथे । ओइसनेहे तहसील $ फारसी के दार प्रत्यय मिंझार के तहसीलदार बने हे।
वकील- पु (अरबी) दूत, प्रतिनिधि। जोन वकालत के परीक्षा पास होवय अउ अदालत म बहस करै।
खसरा- पु (अरबी) पटवारी के वो कागज जेमें खेत के नंबर आदि लिखे जाथे, हिसाब के कच्चा चिट्ठा । अउ एक ठिन खसरा पु. (फारसी- खारिश) एक प्रकार के खुजली होथे।
खर्च पु. (अरबी) व्यय, खपत। धन जे कोनो काम म लगाय जाय।
खर्चीला वि. (अ). खर्च $ हिन्दी के ईला प्रत्यय लगाके बनाय गे हवय )
हवा- स्त्री (अ) सर्वत्र चलने वाला तत्व जेकर ले परानी साँस लेथे।
वायु- स्त्री (सं) 5 तत्व मन म एक ठो तत्व जोन धरती से लेके अकाश तक पसरे -बगरे हवय, जेमें परानी साँस लेथे।
वाद-पु.(सं) कोनो तथ्य/तत्व के निर्णय लेहे बर होवइया तर्क-वितर्क/तथ्यज्ञों
द्वारा निश्चित तत्व सिद्धंात। एक ठो वाद अइसनो हे जउन कुछ संज्ञा मन के अंत म प्रत्यय के रूप म लगथे, जइसे कि – साम्यवाद, समाजवाद, अवसरवाद।
अतेक अकन परदेसिया शब्द मन ल पोटारे बइठे हवन अउ महतारी भाखा बर सवाल। आइस रे मुड़ढॅक्की रोग, बाढ़े बेटा ल लेगे जोग। हम खोजत -खोजत चिथिया तो गएन फेर अपन कोति ले अंधियार म लाठी भाँज के हुसियारी देखाएन। जेन हुसियार रहिहीे तेन तो हुसियारी देखाबेच कररही न भई !
कहेन – भइया जी, हमार छत्तीसगढ़ सब ल बरोबर मानै, छोटे -बड़े नइ जानय। उही सेति एकर बर कउनो शब्द नइ हे। ककरो कोनो बने बूता बर खुशी होवय त -खुशी रहा, तोर जय होवय, भगवान तोर भला करय, कहि देवय। जेला मनखे अपन फरज समझ के कर देवय अउ भूला जवय – नेकी कर तरिया म डार । एति जेकर काम होवय तेन अपन ल बड़े नइ मान उप्पर वाले उपर सौंप देवय- भगवान तोर भला करय। माने अपन आप ल बड़े तको नइ मानय। येला मानवता के सबले ऊँच बिचार मान सकथन।
आज अंग्रेजी अतेक पोठ काबर हे। वो सोंचत नइ बइठे राहय। फलाना कोन ये कहाँ ले आइस- अमका ढमका कुछ नहीं। सोज्झे -योर वेलकम। बइरी बर ऊँच पीढ़ा हाने भर बर झन राहय। बढ़ना हे त अपनाए बर परही। एकर मतलब एहू नई होना चाही कि हम उहीच म बूड़े रही जावन। बुड़ मरय नहकौनी दय कस किस्सा झन होवय। बाई के मया म दाई ल झन बिसरावय, इही खियाल रहय, भइगे।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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