भारत के संस्कृति म एक ठिन बैचकहा दिवस हँ पहुना बनके आए हे। वोकर नाम हे -वेलेन्टाइन डे। येला कुल 11 दिन म बाँटे गे हे- मोमबत्ती दिवस, वेलेन्टाइन दिवस, व्हाइट दिवस, काला दिवस, गुलाब दिवस, चुम्मन दिवस, सिल्वर दिवस, ग्रीन दिवस, संगीत दिवस, वाइन दिवस, सिनेमा दिवस अउ आलिंगन दिवस। ब्यूटी पार्लर म जाके फेसियल कराए के बाद इही हँ रोज डे, प्रपोज डे, चाॅकलेट डे, टेडी डे, हग डे, किस डे, अउ वेलेन्टाइन डे के रूप म बदल गेहे।
चीन म येला ‘साँचा,’ फिलीपिंस म ‘दिल के दिवस’, कोरिया म ‘चिलसीओक’, जापान म ‘तानाबाता’, ग्वाटेमाला म ‘डिया डेल आमोर यी ला आमिस्ताद’ (मया अउ मितानी दिवस ) के रूप म मनाथे। ब्राजील म इही ल ‘डिया डाॅस नामोराडोस’ माने ‘अनुरक्ति या प्रेमी/प्रेमिका’ के दिवस के रूप म मनाए जाथे।
फिनलैण्ड म येला ‘स्तावनपाईवा’ अउ एस्टोनिया म ‘सोब्रापायेव’ कहिथे दूनो के मायने ‘मितानी दिवस’ होथे। तुर्की म ‘सेवजिलिलर गुनू’ कहिथे जेकर मायने ‘प्रेयसी दिवस’ होथे।
स्वीडन म ‘अल जारतांस दाग’ माने ‘पूर्ण दिल दिवस’ कहे जाथे। येकर शुरूआत फूल उद्योग के बेवसायिक स्वार्थ के सेति 1960 म अउ अमेरिकी सभ्यता के प्रभाव के सेति होइस।
स्लोवेनिया म एक ठो कहावत हे ‘सेंट वेलेन्टाइन जर मन के कुची हरे, एकरे सेति पेड़-पौधा अउ फूल मन के विकास होथे।’ येला अइसे दिवस के रूप म माने जाथे जऊन दिन खेत म पहिली पइत बूता करे के श्रीगणेश होथे। अइसे कहे जाथे कि ये दिन चिरई मन एक दूसर ले बिहाव के मनुहार करथे। येला पारंपरिक रूप ले 12 मार्च के मनाए जाथे जऊन हँ ‘संत ग्रेगरी दिवस’ हरे। अइसे तको मान्यता हवय कि संत वेलेंटिन बसंत के शुरूआत के द्योतक हरे।
रोमानिया म येला कतको झिन छिछला, बेवसायिक अउ पश्चिमी चिखला कहिके येकर हाँसी उड़ाथेे।
एक ठो मजाक म वेलेन्टाइन दिवस ल ‘अकेल्ला मनखे मन के जागरूगता दिवस’ नाम के पागा तको पहिराए गे हवय।
ईरान अउ सऊदी अरब म येकर ऊपर रोक लगा देहे हवय। इही प्रतिबंध के चलत गुलाब अउ येला लपेटे के कागज के कालाबजारी होए लगिस।
करिया मन के मनखे कोनो भी जगा अपन मुँह करिया कर लेथे। उन ल देश, काल, वातावरण अउ समाज-संस्कृति से कोनो मतलब नई रहय। एकर मतलब बेयपार ही जम्मो कालाबजारी अउ बइमानी के जर होथे। माने बजार ले संस्कार नई पनप सकय। संस्कृति ल जिंदा राखे बर बयपार के गला मुरसेटना सही हे।
बैचकहा, बैसुरहा अउ बेंवारस वेलेन्टाइन डे आए बर तो आ गे हे फेर भारतीय संस्कृति म एकर पूछन्ता नइहे। ये हँ कृष्ण के भूइयाँ हरे। इहाँ माटी के कन -कन म मया भरे हे।
मया मन मिले ले होथे। मया म तियाग करे, खुद ल अर्पण करे अउ एक दूसर के दुख म संघरे के भावना होथे। विश्वास मया के नेंव होथे। जिहाँ विश्वास के पाँव डगमगाथे उहाँ ईष्र्या, स्वार्थ, घिना के भाव आ जथे। येकर बाद मया मया नइ रहि जाय। मया नाम बड़े दर्शन छोटे भर होके रहि जथे।
असल मया जात-पात, रंग-रूप, देश -परदेश नइ चिन्हय। न मया कोनो सीमा म बँधावय, न येकर कोनो भाखा होवय। कहूँ रंग-रूप चिन्हतीस त गोरी राधा ल करिया कन्हैया संग मया नइ होतिस।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान अउ मत्सर (ईष्र्या) इही षड्विकार हँ अबड़ अकन संसारिक दुख के महतारी होथे। जिनगी म सुख दुख कोनो पानी के लहरा नइ होवय जऊन उदुपुहा आथे अउ चल देथे। भलकुन हमरे कोनो उघरे -मुँदाए उदीम -करम के फल होथे या मन के विकार होथे। मयारूक मन ल सबो भावना के जर म जाके झाँकना चाही अउ ओला दूर करना चाही।
मया म अइसन ईष्र्या, घिन या दुराव कहाँ ले आइस ? काबर आइस ? मया म कोनो कमी तो नइ रहिगे ? एकर बर मन के गहिरी म उतर के जाए के कोनो जरूरत नइ होवय। सिरिफ मन ले पूछ के देखे म एकर जुवाब मिल सकत हे।
अपने मन ले ये पूछना चाही कि का हमर मया के भीतर कोनो अइसन भावना कुंदरा बनाके बइठ गेहे जेकर ले मयारू के मन म हमर ले दुरिहा होय के डर समागे हे।
कहूँ हम अपन मयारू बर कतको बड़ दुख ल खुशी- खुशी सहे बर तियार हन, ओकर बर बड़का ले बड़का तियाग करे बर तियार हन अउ कहूँ ओकर मालिकी के भावना ल नइ तियाग सकेन त समझ मया म दोष हवय। फेर वो मया मया नइ राहय। येला हम आसक्ति, वासना, मोह या राग कहि सकथन।
असल पे्रम/मया म परमात्मा के वास होथे। अंग्रेजी म ‘लव इस गाॅड’ येकरे सेति कहिथे। ये मया परमात्मा तक तभे पहुँचा सकथे जब वोहँ निस्वार्थ होवय। जउन आत्मिक होवय। अइसन होय ले इही संसारिक मया मुक्ति के साधन बन सकत हे।
मया ककरो संग हो सकथे दाई, ददा, पत्नि, पे्रमिका, पुत्र, पुत्री, भाई, बहिनी, सगी-संगवारी अउ दूसर संग तको। येला निस्वार्थ प्रेम, आत्मिक प्रेम, आध्यात्मिक प्रेम, पवित्र प्रेम, वासनारहित प्रेम या माँस रहित प्रेम कहि सकथन। इही ल आजकल नेवरिया भाखा म ‘वर्चुअल लव’, विज्ञान के भाखा म ‘प्लेटोनिक लव’ कहे जाथे। जेकर एक नाम ‘अफलातूनी स्नेह’ तको हे।
कतको अइबी मन मया के गोठ निकलथे त ये कहिथे कि कृष्ण तो 16,108 पटरानी रखे रिहिस हे, त हम का दू नइ रख सकन ?
अरे बूजा एक झन ल तो बने ढंग के पाल-पोस के देखा। कृष्ण संग सबो गोपी मन प्रेम करय जेमा कोनो बहिनी, भतीजीन, काकी, बड़ी, भौजी, फूफू सब रिहिन होही। वो सबो के दृष्किोण मया के रूप ‘यथायोग्य स्वीकार’ के भाव म रिहिस हे। जइसन के हम संसारिक मनखे अपन घर के जम्मो सदस्य दाई-ददा, बहिनी- भाई, गोसइन, बेटा- बेटी, नाती- पोता, अरोसी- परोसी अउ इहाँ तक के गाँव के आने -आने जात -अनजात के मनखे ले नता जोर लेथन, मया करथन। उही मया जुरे नता नाम ले बलाथन, मानथन अउ मनाथन। इही असल मया हरे।
अइअसनेहे आत्मिक प्रेम राधा अउ कृष्ण म रिहिस हे। उन्कर प्रेम अमर हे। इही आत्मिक अउ निस्वार्थ प्रेम के सेति आज कृष्ण के आगू म राधा के नाम लगथे- राधे कृष्ण।
इही निस्वार्थ अउ आत्मिक मया ल समझाए बर एक पइत कृष्ण उधो ल गोपी मन तीरन भेजे रिहिस हे। ज्ञानमार्गी उधो मया के रूप ल देख के चकरित खागे। उधो गोपी मन तीरन जाके कृष्ण के नाम ले उन्कर पाँव के धूर्रा ल माँगिस। पाँव के धूर्रा माँगत बेरा येहू कहिस कि जऊन -जऊन पाँव के धूर्रा ल देही वोहँ नरकगामी होही। गोपी मन कहिन कि हम भले नरकगामी हो जावन हमर प्रेमी तो बने रहय। जम्मो के जम्मो पाँव के धूर्रा देके आनन्द मनाइन अउ पाँव के धूर्रा म नहाके मोहना तको आनंद मनालिस।
मैं जानना चाहथौं कि गाय ल दुत्कार के भगइया अउ कुकुर ल दूध, बिस्कुट खवाके संग म पोटारके सोफा -गद्दा म सुतइया मनखे के प्रेम कुकुर संग कइसन किसम के होथे। कुकुर संग प्रेम करइया मनखे अपन परिवार के अउ आने सदस्य माने दाई, ददा, भाई, बहिनी, बेटा, बेटी, नाती, पोता या अरोसी -परोसी संग कोन किसम के प्रेम संबंध रखथे अउ उन्कर बेवहार इन्कर संग कतका सुग्घर होथे।
इही ल ओशो कहिथे कि -‘प्रेम के कोनो शर्त नइहे, न कोनो सौदा हे। पे्रम हे, त परम मुक्ति हे। एक झन ल तको हम कहूँ पे्रम कर लेन त हम पाबोन कि एक जऊन रिहिस हे, वोहँ दुवारी बनगे अबड़ झिन के। अउ कब एक हँ मेटागे अउ कब प्रेम हँ अनेक (अबड़ झिन) म पहुँच गे। कहिना मुश्कुल हे।’
असल म मया बिगर जिनगी निच्चट सीट्ठा, पचर्रा अउ बिन गड़हन के होथे संगवारी हो।
जय जोहार!!
धर्मेन्द्र निर्मल