कौशल्या के राम ले हे छत्तीसगढ़ के गहिर नता: भांचा ल प्रभु राम मान के परथें पांव
Surabhi Tiwari
– ओम प्रकाश डहरिया
अयोध्या के रानी अउ छत्तीसगढ़ के अस्मिता के चिनहा माता कौशल्या के पुत्र भगवान श्री राम के भांचा के स्वरूप म गहिर नता हे। एकर जीयत-जागत उदाहरण हे, छत्तीसगढ़ म सबो जाति समुदाय के मनखे बहिनी के बेटा ल भगवान के प्रतिरूप अर्थात भांचा मानके ओखर पांव पखारथें। मोक्ष के प्राप्ति बर प्रभु श्रीराम ले कामना करथें। ये अऊ प्रबल तब होथे, जब गांव-शहर-कस्बा कहूं होवय कोनो जाति या समुदाय के होवय ममा-भांचा के बीच के रिश्ता ल पूरा आत्मीयता के संग निभाए जाथे। ममा के संग कोनो भांचा के ये रिश्ता कई पइत माता-पिता बर पुत्र ले घलोक जादा घनिष्ठ स्वरूप म दिखाई परथे।
त्रेतायुग म जब छत्तीसगढ़ के प्राचीन नाम कोसल अउ दण्डकारण्य ले विख्यात रहिस, तब कोसल नरेश भानुमंत रहिन। वाल्मिकी रामायण के मुताबिक अयोध्यापति युवराज दशरथ के राज्याभिषेक के अवसर म कोसल नरेश भानुमंत ल घलोक अयोध्या आमंत्रित करे गए रहिस। ये बेरा म कोसल नरेश के पुत्री अउ राजकन्या भानुमति घलोक अयोघ्या गए रहिस। युवराज दशरथ कोसल राजकन्या भानुमति के सुंदर अऊ सौम्य रूप ल देखके मोहित हो गे अऊ कोसल नरेश महाराज भानुमंत ले विवाह के प्रस्वाव रखिन। युवराज दशरथ अऊ कोसल के राजकन्या भानुमति के वैवाहिक संबंध होइस। शादी के बाद कोसल क्षेत्र के राजकुमारी होए के सेती भानुमति ल कौशल्या कहे जाए लगिस। अयोध्या के रानी इही कौशल्या के कोख ले मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम के जनम होइस। तभे ममतामयी माता कौशल्या ल वो समें के कोसल राज्य के मनखे मन बहिनी मानके अपन बहिनी के बेटा भगवान श्री राम ल प्रतीक मानके भांचा मानथें अऊ ओखर पांव छूके असीस लेथें।
छत्तीसगढ म स्मृतिशेष आठवां-नौंवा सदी म बने माता कौशल्या के भव्य मंदिर राजधानी रायपुर ले 27 किलोमीटर दूरिहा आरंग विेकासखण्ड के ग्राम चन्दखुरी म स्थित हे। चंदखुरी घलोक रामायण ले छत्तीसगढ़ ल सीधा जोड़थे। रामायण के बालकांड के सर्ग 13 श्लोक 26 म आरंग विकासखंड के तहत अवइया चंदखुरी गांव के जिक्र मिलथे। माने जाथे के चन्दखुरी सैकड़ों साल पहिली चन्द्रपुरी मने देवता मन के नगरी के नाम ले जाने जात रहिस। समय के संग चन्द्रपुरी, चन्द्रखुरी हो गीस जऊन चन्द्रपुरी के अपभ्रंश ये। पौराणिक दृष्टि ले ये मंदिर के अवशेष सोमवंशी कालीन आठवी-नौंवी शताब्दी के माने जाथे। एखर अलावा छत्तीसगढी संस्कृति म राम के नाम रचे-बसे हे। तभे तो जब एक दूसर ले मिलत बेरा चाहे रिश्ता-नाता होवय के झन होवय अपरिचित मन तको राम-राम कका, राम-राम काकी, राम-राम भैइया जइसे उच्चारण ले अभिवादन आम तौर म देखे सुने ल मिल जाथे।