लोक नृत्य मन मं शारीरिक कौशल अऊ करतब के घलोक होइस प्रदर्शन

प्रतियोगिता के पहिली सत्र म तेलंगाना, असम, झारखण्ड, उड़ीसा, गुजरात के नृत्य दल ह दीस मनोरंजक प्रस्तुति

रायपुर, राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य प्रतियोगिता म झारखण्ड राज्य के कलाकार मन ह रंगबिरंगा कुरथ म मुखौटा लगाके छाऊ नृत्य करिन जऊन ल देखके दर्शक अकचका गें। ये म नृत्य विद्या म मार्शल आर्ट अऊ करतब के माध्यम ले रामायण अऊ पुराण के कथा मन ल प्रस्तुत करे जाथे। अपन विशिष्ट शैली के सेती छाऊ ह विदेश मन म घलोक अपन खास पहिचान बनाए हे। झारखण्ड के सारेकला जिला ले आए छाऊ नृत्य के कलाकार श्री घासीराम महतो ह बताइस कि उमन अधर्म उपर धर्म के जीत के कथानक उपर आधारित महिषासुर मर्दन के प्रदर्शन करिन। छत्तीसगढ़ म कई कला अऊ पारंपरिक नृत्य मन के समागम देखके ओ मन ल बहुत खुशी होइस। उमन कहिन कि इहां आके देश-विदेश के कई ठन संस्कृति ल जाने के अवसर मिलीस। छाऊ नृत्य के हर एक गीत के शुरूआत म पात्र मन के अऊ विषयवस्तु के परिचय दे जाथे। नृत्य म पुरूष कलाकार मन ओजस्विता, शारीरिक कौशल अऊ कई ठन भाव भंगिमा ले दर्शक मन के मनोरंजन करथें। झारखण्ड राज्य ह छाऊ नृत्य के अकतहा संथाली नृत्य के घलोक प्रदर्शन करिस। ये नृत्य जनजाति समूह कोति ले पारंपरिक उत्सव के समय करे जाथे।

राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज परिसर म आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के पहिली सत्र म तेलंगाना राज्य ह कोया नृत्य, असम ह बागरूंगा, झारखण्ड ह छाऊ अऊ संथाली, उड़ीसा ह दुरवा, गुजरात ह सिद्दी नृत्य के मनोरंजक प्रस्तृति दीन। आदिवासी नृत्य के कई ठन विधा अऊ परंपरा के प्रदर्शन देखके दर्शक मंत्रमुग्ध हो गें। प्रतियोगिता के पहिली बेलारूस ह लोक नृत्य, अरूणाचल प्रदेश ह रेह, लद्दाख ह फ्लावर नृत्य, कर्नाटक ह सुगाली अऊ छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार मन ह दंडामी माड़िया जनजाति के गौर नृत्य के प्रस्तुति दीन।

प्रतियोगिता म सबले पहिली नवगठित तेलंगाना राज्य के कलाकार मन ह कोया नृत्य प्रस्तुत करिस। तेलंगाना म बहुत अकन आदिवासी जनजाति निवास करथे एमां ले आदिवासी जनजाति कुमुख कोया कोति ले मुख्य रूप ले कोया नृत्य करे जाथे। ये नृत्य विवाह, धार्मिक अनुष्ठान, मेला मड़ई म करे जाथे। कोया नृत्य म छत्तीसगढ़ के दंडामी माड़िया के गौर नृत्य के जइसे युवक गौर के सींग अऊ मोरपंख पहिनके मांदर धरे होथें अऊ युवति मन पीतल के मुकुट अऊ घुघरूदार छड़ी लेके नृत्य करथें।

असम के नृत्य दल ह बोडो जनजाति के प्रसिद्ध बागरूंगा नृत्य के प्रस्तुति दीन। असम म कई जनजाति समूह हे, जेमा बोडो सबले बड़े जनजाति समूह हे। ये नृत्य पारंपरिक कृषि उपर आधारित हे जऊन तिहार म महिला मन ह करथें। ये मा खनाई, अरूनाई, जवामागरा, ढोई नाम के वाद्य यंत्र मन के परयोग करे जाथे। नदी के धारा, वायु के प्रदर्शन ले बोडो जनजाति के प्रकृति प्रेम ये नृत्य म मुखरित होथे। नृत्य के माध्यम ले ये जनजाति अपन उल्लास अऊ उत्साह ल प्रदर्शित करत प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दर्शाथे।

उड़ीसा राज्य के जनजातीय कलाकार मन ह दुर्वा नृत्य करिन। जनजाति बहुल कोरापुट म दुर्वा जनजाति निवास करथे जऊन खेती-किसानी के काम करथें। ये मा बिटली, दन्डार, बनकुल, पलानी, बंशी, ढोल, सिंगा, तुड़ीमुड़ी जइसे वाद्य के परयोग करे जाथे। ये नृत्य विधा म पुरूष मन पारंपरिक आभूषण पहिरके तीर, टंगिया, तूती जइसे अस्त्र लेके नृत्य करथें। स्त्रि मन घुंघुरू, पइरी, झापी, बहूटी, सिंघा माला, मंजूर माला आभूषण पहिनथें। ये नृत्य दीवाली, दशहरा, चैत पर्व, नुआखाई जइसे सबो तिहार संग विहाव के बेरा म करे जाथे। नृत्य के माध्यम ले आदिवासी जनजाति कोति ले ईश्वर अऊ पूर्वज मन ले सुग्‍धर स्वास्थ्य, अच्छा फसल अऊ वर्षा के कामना करे जाथे।

गुजरात के सिद्दी दमाल नृत्य के प्रस्तुति ह मनखे मन ल अचंभित कर दीस। सिद्दी पूर्वी आफ्रिका के असली जनजाति ये, जऊन गुजरात, कर्नाटक अऊ गोवा म बस गए हे। ये जनजाति ह सिद्दी गोमा अऊ सिद्दी दमाल नृत्य करथें। ये बाबा गौर के आराधना म नृत्य करथें। ये आदिवासी नृत्य पुरूष कलाकार मन करथें जऊन चेहरा म रंगीन आकृतियां बनाए रहिथें। कलाकार मोर पंख अऊ कौड़ी के आभूषण पहिरथें। नृत्य के समय शारीरिक कौशल अऊ करतब के प्रदर्शन करे जाथे।

लउछरहा..