इतवारी: गुरू गूगल दोउ खड़े

गुरूब्र्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरूवे नमः।
गुरूपूर्णिमा गुरू – पूजन के दिन हरे। असाड़ के पुन्नी ल गुरूपूर्णिमा कहिथे। ये दिन गुरूतत्व ह हजार गुना क्रियाशील रहिथे, जेकर ले ओकर फल तको हजार गुना फलित होथे। इही दिन कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी ह 18 पुरान अउ उपपुराण मन के रचना करीन। पंचम वेद ‘महाभारत’ के रचना विश्व के प्रथम आशुलिपिक शिव-शिवानंदन श्रीगणेश के करकमल ले पूर्ण करे के पीछू ‘ब्रम्हसूत्र’ लेखन के श्रीगणेश करीन। तेकर सेति येला व्यासपूर्णिमा के रूप म तको मनाए जाथे। कतको व्हाटसेपिया ज्योतिषाचार्य मन व्यासजी ल असाढ़ पूनम के दिन अवतरित तको कर डारे हावय। एकरो सेति ये दिन ल व्यासपूर्णिमा के नाम देके ओकर जनमदिन के बधई गा लेथन। व्यास जी ल आदिगुरू अउ आ़द्यशंकराचार्य जी ल महर्षि वेदव्यास के अवतार माने जाथे।
भारतीय संस्कृति म गुरू के जगा अबड़ ऊँच हे। गुरू के महिमा बड़ महान अउ गरू होथे। भगवान तको इहां अवतरथे त गुरूच के शरन म जाथे। मया, राजनीति अउ प्रबंधन के पुरोधा लीलाधारी कृष्ण ह सांदीपनी के आश्रम म सेवा करिस त मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम तको गुरू वशिष्ठ के चरन के अनुरागी बनिस। कहे जाथे कि गुरू- शिष्य परम्परा ले अपभ्रंश होके ‘सिख’ शबद बने हे। गुरू-शिष्य परम्परा ह सिख समुदाय के मऊर-मुकुट हरे।
‘गु’ माने अंधकार या अज्ञान अउ ‘रू’ माने तेज, प्रकाश या ज्ञान। अर्थात गुरू ही ब्रम्ह हे, जउन अज्ञानता के अंधियार ल मेटार के जिनगी म ज्ञान के अंजोर बगराथे।
गुरू ज्ञान के खदान, उड़ान के ऊँचान अउ शक्ति के मचान होथे। गुरू के मिले ले ईश्वर मिल जथे। आजकल के विद्यार्थी भले बड़े -बड़े डिग्री ले अपन पहिचान कराथे, अर्थ के सीढ़ी चढ़ विद्या के अर्थी निकालथे, सोचिंग के पाठशाला ले निकल कोचिंग के गौशाला म झींगालाला कर लेथे फेर पहिली कोनो भी शिष्य के पहिचान ओकर गुरू ले होवत रिहिसे। सही कहिबे त गुरू बिना मानुष जिनगी अधूरा, अबिरथा अउ गारद हे।
एक योग्य शिष्य ल ‘श्वान निद्रा बको ध्यानम्’ माने कुकुर बरोबर सुतई-उठई अउ कोकड़ा बरोबर एकथई मन होके लक्ष्य ल साधना चाही तभे जिनगी के लक्ष्य- स्वयंवर म मछरी के आँखी -छेंदन संभव हो सकथे । आज के शिष्य अतेक गुनी अउ हुसियार हे कि अपन लक्ष्य म शेर बरोबर झपट्टा मारके काकरो भी मुँह के कौंर ल झटके म महारथ हासिल कर लेहे। कोनो- कोनो शिष्य अपन योग्यता, अनभो अउ अनुमान ले अतेक सीख डारथे कि गुरू ल तीन कोस पीछू ढकेलके पाँच कोस आगू निकल जथे। गुरू गुर ल धरे गुड़ के ढेला रहि जथे अउ चेला शक्कर -मिश्री के रद्दा होवत सिंघासन बिराज नरियर के भेला झेले-पगुराए लगथे।
गुरू के गुरूता अउ महानता के पहिचान ओकर शिष्य ले होथे तेकर सेति योग्य गुरू योग्य शिष्य के तलाश म लगे रहिथे। इही कारन गुरूजी गनित के असली गुर ल कक्षा म नइ बताके ट्यूशन म बताथे। जे दिन गुरूजी राजप्रासाद ले राजप्रसाद के रूप म श्रेष्ठ गुरूजी के प्रमाणपत्र ले लेथे ओ दिन ले ओकर चरू लोटा म काई रचे लगथे। ओमा के पवित्र जल ह तको कसा जथे। ओकर मान-सम्मान ह जोंखी छाँड़के गुरूजी ले गरूजी होय लगथे। जे दिन वो ह गुरूता अउ श्रेष्ठता के टोंटा ल मुरसेट के अपन आप ल राजसात कर लेथे वो दिन ले अतेक हरू हो जथे कि राजपुरूष अर्जुन बरोबर श्रेष्ठ धनुर्धर ल तको गरीबहा, अधनंगा अउ बनवासी एकलव्य के अंगठा के आगू मुड़ी नवाए बर पर जथे। ये ह गुरूजी के महानता अउ गुरूता के गरूता हरे कि एकलव्य के अंगठा काटके अर्जुन जइसे ल श्रेष्ठ घोषित करे म कोनो संकट आवय न संकोच। राजयोग अउ हठयोग के राम-भरत मिलाप इतिहास के स्वर्णिम पल होथे जब करन जइसन योग्य अउ गुनी मनखे ल तको मंत्रालय म अंगराज के पद पाए बर दुर्योधन जइसन कायर, कपटी अउ चालबाज राजपुरूष के सिफारिश लेहे बर परथे।
गुरू गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरू आपनो, गोविन्द दियो बताय।।
जिहां गुरू अउ गोविन्द दूनों खड़े रहिथे ओमेर गुरू के पहिली पाँव परना चाही काबर कि गुरूच ह ईश्वर ले परिचय कराए हे कहिथे। कोनो- कोनो अइसनोहो ब्याख्या करथे कि गुरू अउ गोविन्द दूनो खड़े रहिथे अउ कहूँ चेला के मुड़ म शंका के ये ढेला माढ़ जथे कि काकर पायलगी पहिली करवं त गोविन्द खुदे कहि देथे – इही चंडाल के पहिली पर। काबर कि मोला तो तोर चिन्ता हावय, मैं ह तो कइसनो करके तोला उबारी लेहूँ। येला नइ हे। येला अपन गुरूता अउ गरूता के चिन्ता हे। एकर पायलगी पहिली नइ करबे त ये ह तोला नाश देही।
गुरू गूगल दोउ खड़े ……….।
चेला जब चितिया जथे तब ओकर चेथी म दही चटाकन चटकावत गूगल कहिथे – रिचार्ज के गुग्गुल जला मोला पहिली मना। तेकर पीछू प्रश्न के नाँगर जोतबे रे बइला !! चेला दऊँड़े – दऊँड़े रिचार्ज कराथे तेकर पीछू गूगल बताथे-तोर गुरूजी के मोबाइल सेवा ल अस्थायी रूप ले बंद कर देहे गे हे। अइसे तैं जिंहा खड़े हवस, सर्च इंजन म उही मेर तोर गुरूजी के मोबाइल नंबर बतावत हे।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..