इतवारी: सावन म करेला खाएन

सावन के आते तिहार मन के भरका फूट जथे। हरेली ह बारो महीना के पहिली तिहार होथे। हरेली के पीछू पीछलग्गा बछर के अउ आने तिहार मन सरलग ओरियाए रहिथे। हरेली ह हरियाली, आनंद अउ उछाह के तिहार हरे। खेत म हरियर-हरियर धान लहरावत रहिथे। फसल के इही हरियाली के खुशी म किसान हरेली तिहार मनाथे। हरेली तिहार ल सावन महीना के अमावस के दिन मनाए जाथे। हरेली ल रथयात्रा परब के रूप म तको मनाए जाथे।
ए दिन चरवाहामन मालिक ठाकुर के घर-दुवारी म लीम डारा खांेचथे। लीम के हरियर डारा ह हरियाली के प्रतीक हरे। अइसे करके उन अपन मालिक के जिनगी के खुशहाली अउ सुखी जीवन के कामना करथे। एकरे संग मालिक ठाकुर ले धान, रूपिया- पइसा अउ आने किसम के उपहार या भेंट के रूप म सेर-सीधा पाथे। ए दिन घर के पशु मन के तको स्वास्थ्य के कामना करे जाथे। इही पशु मन के सहयोग ले ही हमर किसानी के बूता ह पूरा होथे। तेकरे सेति हरेली के दिन पशु मन ल तको नहवाए-धोए जाथे। हरेली के पहिली दिन पहाटिया समाज के लोगन मन मुँदराहा ले नहा -धोके जंगल ले दसमूल, काँदा-कूसा, जड़ी -बूटी खोज के लानथे। बिहान भर हरेली के दिन किसान/गौ मालिक मन खम्हार पान म सेर -चाँऊर धरके पहाटिया घर ले ओकर बलदा म जड़ी -बूटी, काँदा-कूसा लानथे। उन ल गँहू पिसान के लोई म भरके गाय-गरूवा ल खवाए जाथे। लोई भीतर नून घलो डारे जाथे। एकर पीछू ये मान्यता हावय कि अइसन करे ले गाय-गोरू मन ल साल भर रोग-राई नइ होवय। नून म रोग निरोधक क्षमता होथे। येला गाँव-गँवई म ‘लोंदी खवाना’ कहिथे।
पंडित मन अर्जुन के दस नाम ल नानकुन कागज म लिखके अपन जजमान घर देथे, जेला ‘सवनाही कागज’ कहिथन। एकर बलदा जजमान घर ले महराज ल सेर -सीधा मिलथे। शास्त्र म कहे गे हे कि अर्जुन के दस नाम कोठा के दुवार म लिखे ले गाय -गोरू म रोग-राई नई हमावय।
नान्हेपन के थोक बहुत सुरता हे, वो समे ये दिन लोहार ह घर के चैखट म पइसा ल खीला संग ठोंकय। केंवट -ढीमरमन अपन मछरी-जाला के नान्हे कुटका ल दुवार मन म बाँधय।
गाँव के ‘बइगा’ गाँव के सम्मत, खुसहाली अउ रक्षा खातिर रात कन पूजा -पाठ करथे। ए बूता ल गँवई भासा म ‘गाँव बनई’ कहिथे। गाँव बनई म बइगा गाँव के मेड़ो म पूजा-पाठ करथे। लोहा के नाँगर मुँहा कोकवा खीला ल मेड़ो म गडियाथे। उलटा पाँखी के कुकरी ढीले जाथे। एकर ले बाहरी अविद्या, जादू -टोना, महामारी अउ कोनो किसम के बिपत ले गाँव के, घर के, खेत-खलिहान सबो के रक्षा होथे। गाँव के बनावत ले गाँव म गति वाले काम जइसे कि पानी भरना, आगी बारना आदि के मनाही रहिथे। ये गाँव बनई के काम ल बइगा अपन सुविधा अनुसार हरेली से लेके ऋषिपंचमी तक अपन चेला -चपाटी मन संग मिलके करथे।
कहे जाथे कि सावन मास के अमावस के दिन भगवान शंकर ह अपन त्रिशूल म बंधाए सिंघिन ल बजाके मांत्रिक शक्ति के उद्गार करे रिहिसे। गाँव के बइगा मन इही समे अपन मंत्र के पुनर्पाठ करके उन ल नवशक्ति प्रदान करथे। कतको झिन सावने म इही दिन मांत्रिक गुरू शिष्य बनाथे जेला छत्तीसगढ़ी संस्कृति म ‘पाठ-पीढ़वा लेना/देना’ कहे जाथे। ये हिसाब म येहर मंत्र-जागरण के महीना हरे।
आज के दिन किसान अपन नाँगर-बक्खर, हँसिया- कुदारी, राँपा-गैंती जम्मो किसानी के औजार ल धो-माँजके साफ करथे। ओला बढि़या सजाके साफ जगा म रखे जाथे। ओमा हरदी, चंदन, फूलपान चढ़ाके पूजा करे जाथे। चाँउर पिसान के हाथा देहे जाथे। ए सब बिधि -बिधान के पीछू ए सोच हावय कि ये सब औजार मन खेती -किसानी म हमर काम आथे। इन्कर सहायता ले अन्न उपजाथन अउ जेकर ले हम अपन जिनगी चलाथन। तेकर सेति बछर म कम से कम एक दिन इन्कर उपयोग नइ करन।
हरेली परब म नांगर -बक्खर, हंसिया -कुदारी मन के पूजा म विशेष करके चीला चढ़ाए जाथे। चीला के चढ़ावा खेत खार म तको करे जाथे। जउन मनखे खेत म चीला चढ़ाए बर जाथे। वोह जम्मो चीला ल उहिति खाथे। खेत के चढ़ावा चीला ल घर नइ लाने जाय।
सावन दू मौसम के संक्रमण काल होथे। सूरज के धूप तको कमजोर होथे। भोजन के पाचन म सहयोग देवइया एंजाइम मन पनप नई पावय जेकर ले पाचन क्रिया कमजोर रहिथे। ओकर सेति शरीर के शुद्धिकरण बर उपवास के विधान हवय। हमर गाँव-देहात म सावन म भाजी के मनाही रहिथे। सावन म कीरा-मकोरा मन वृद्धिदर जादा होय ले इन बेतहासा पनपथे। इन्कर बढ़वार इही भाजी-पाला मन म जादा होथे। ओकरे सेति सावन म पत्तावाले साग-भाजी ले परहेज करना चाही। सावन म करेला खाएन …ओकरे सेति काहत होही।
हरेली परब के दिन गाँव म घर के भीथिया मन म गोबर के भित्ति चित्र ‘सखिया’ बनाए जाथे। ए सखिया मन ल डांड़ ले जोड़े तको रहिथे। एकर पीछू मान्यता हावय कि एकर ले गांव, घर अउ खेत-खलिहान के रक्षा होथे। एकर बैज्ञानिक अधार ये हे कि गोबर म कीटानुनासक गुन होथे जेकर ले हवा म उड़ावत रोगहा-कीरहा मन ओला पार करके घर म प्रवेश नई कर सकय। ये तरा ले वोह एक ठो ‘लक्ष्मन रेखा’ हरे। बड़े मन के ये हरेली लइका मन बर ‘गेंड़ी परब’ होथे। इही दिन लइका मन गेंड़ी बनाथे जेला तीजा-पोरा बर ठंढा करे जाथे। ये प्रकार ले हरेली ‘छोटे-बड़े’ माने ‘दाऊ-नाऊ’ सबो के तिहार हरे।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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