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इतवारी हाय शरद ! बाय मानसून !!

चार दिन पहिली दाई दुर्गा के बिदाई करे हावन। आँखी के पानी सुखाए नई पाए हे अउ अब मानसून तको बिदा माँगत हे। शरद पुन्नी के आना माने मानसून के जाना। बछर म 24 पुन्नी होथे। जेमा कातिक पुन्नी, माघ पुन्नी, शरद पुन्नी, गुरू पुन्नी अउ बुद्ध पुन्नी ये पाँच पुन्नी मन पंच होथे जिन्कर मुखिया पंच होथे – शरद पुन्नी।
विज्ञान बताथे के दूध म लैक्टिक अम्ल अउ अमृत तत्व होथे, जऊन ह सूरज के किरण ले जादा से जादा मात्रा म शक्ति ल सोखथे। चाँऊर म स्टार्च होथे जेन ह ये शक्ति सोखन के क्रिया- प्र्र्रक्रिया ल सरल कर देथे। उहेंचे चाँदी म प्रतिरोधक क्षमता भारी होथे। एकर ले विषाणु पीछौत म बाहरी बाँधके दूरिहा भागथे। शरद पुन्नी के रात चाँदी के बरतन म खीर बनाके खाए ले अमृत बरोबर फल मिलथे। एला आस्तिक रूप म ऋषि मुनि मन के विधान नई कहिना चाहबो त नास्तिक रूप म विज्ञान के निदान कहे म शरम नई करना मानव धरम तो कहीच सकथन।
पुन्नी के रात दमा रोगी मन बर बरदान ले कम नई होवय। दिव्य औषधि ल खीर म मिलाके चाँदनी के अंजोर म रखे जाथे। बिहनती चार बजे सेवन करके कम से कम 2-3 किलोमीटर पैदल चले जाथे। ये दिन हरेक मनखे ल रात के 10 ले 12 बजे के बीच कम से कम आधा घंटा ले नहाना चाही। एकर ले दमा म लाभ मिलथे। वैज्ञानिक मन कहिथे के ये दिन चंदा के प्रभाव तेज होथे, जेकर ले मनखे के लहू के न्यूराॅन सेल्स मन लुकपुकाए (क्रियाशील) रहिथे। तेकर सेति मंदाग्नि रोग के मनखे मन ल जेवन के पीछू नसा बरोबर लगथे अउ उन्कर दिमाक शरीर म कम अउ भावना म जादा सक्रिय हो जथे। हालेके अइसन हरेक पुन्नी के होथे फेर शरद पुन्नी के जादा होथे। हरेक पुन्नी के समुन्द के जल म ज्वार-भाटा आथे काबर के चंदा ह अपन कोति समुन्द के जल ल तीरथे। ये दिन जल के गुन-गति बदल जाये रहिथे।
विज्ञान एहू कहिथे कि पुन्नी के रात मनखे के मन बड़ बेचैन रहिथे। रतिहा नींद मुसकियावत मुड़सरिया म खड़े रहि जथे, फेर आँखी म कम समाथे। उही पाए के कमजोर दिमाक के मनखे के मन म इही दिन आत्महत्या या हत्या के हत्यारा बिचार हावी होथे। बछर म इही दिन चंदा नील दीखथे जेला हुसियार मन ‘ब्लू मून’ कहिथे। ये दिन चंदा दूसर दिन ले 14 प्रतिशत बड़का अउ जादा चमचमाथे। हरेक तीन बछर म 13 पइत ब्लू मून के हिसाब ले शताब्दी म 41 पइत ब्लू मून दीखथे। अब आगू के ब्लू मून मन ले 2028 अउ 2037 म भेंट पालगी होही।
ये तो होइस विज्ञान के गोठ-बात। अब चलिन धरम कोति। मैं कोनो धरम धजा वाहक, कबीरा के कुकुर या विज्ञान के पिद्दी के पागा पहीरे के साध नई मरत हौ। मैं चाहथौं कि संस्कृति बाँचे राहय। काबर के संस्कृति के मरे ले समाज मुर्दा हो जथे। जिहाँ मनखे के जिनगी नरक ले कम नई होवय, जेन सरग नरक के हम कल्पना करत आए हवन या जऊन ल हमार सियान मन बखानय।
मै नई कहवं कि अंधविश्वासी होवव। हमार हरेक तीज तिहार के पीछू विज्ञान के तथ्य लुकाए हवय जेकर ले हम अनजान हवन। उही अज्ञानवश हम अपन संस्कृति अउ तीज तिहार के अवहेलना करे लगथन। हमला चाही कि हम उन्कर संग आँखी ले आँखी मिलाके गोठियावन। मन म उपजत -अवतरत विकार ल उन्कर ले सामना करावन। हल जरूर मिलही। उही सेति मैं विज्ञान के गोठ ल पहिली करे हववं काबर के मोला कोनो संस्कृति के पीट्ठू झन कहय।
मैं जानत हौं, मोर एक के कहे-करे ले उदबत्ती नई जल जाय। मनखे मनखे के मिले ले संस्कार मिलथे। ओकरे संगे संग नवा-जुन्नी होवत रहिथे अउ संस्कृति सजथे -सँवरथे। फेर नान्हे नान्हे बात होथे जेला जानना हमर बर आवश्यक होथे, जेकर कमतियाए ले हम सरलग भोकवा, ढीठ अउ उठमिलवा होवत जाथन।
ये शरद पुन्नी ल कुमारा पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा, नवन्ना पूर्णिमा, रास पूर्णिमा त कोनो कोनो जगा कौमुदी पूर्णिमा के नाम ले तको जाने जाथे। कहिथे ये दिन धन के देवी लक्ष्मी के जनमदिन हरे। उही सेति ये दिन ल फसल उत्सव के रूप म तको मनाए जाथे। मान्यता हावय के समुन्द मंथन के बेरा इही दिन लक्ष्मी, ऐरावत अउ अमृत निकले रिहिसे।
उडि़सा म ये दिन कुँवारी कैना मन कुमारा माने योग्य वर के आसरा म उपवास रखथे तेकर सेति एकर एक नाम कुमारा पूर्णिमा परे हावय। शरद पुन्नी के रात मनमोहिनी गोरी राधा अउ श्यामसुन्दर कन्हैया के बीच मया रस भरे रास होय रिहिसे। जेकर रस लेहे खातिर नीलकण्ठ भगवान शिव गोपेश्वर महादेव के रूप धरे धरती म आइस। उही नीलकण्ठ जऊन समुन्द मंथन म दशमी के दिन निकले विष ल अपन कण्ठ म धारण करीन अउ जगत ल दंशहरा उत्सव के उपहार दीन। कहिथे ये पुन्नी के रात म देवी लक्ष्मी मनखे मन के बूता -काम ल देखे बर धरती म उतरथे।
लंकापति रावण राक्षस कुल म भले जनमे रिहिसे फेर वो समे म तीनों लोक, चऊदो भुवन म ओकर ले बड़े विद्वान कोनो नई रिहिसे। वोह शरद पुन्नी के रात चंदा के किरण ल दर्पण के माध्यम ले सकेलके अपन बोंड़री (नाभि) म ग्रहण करय जेकर ले ओला पुनर्यौवन शक्ति मिलय। अइसे माने जाथे कि ये दिन चंदा सोला कला ले पूर्ण होथे अउ एकर चाँदनी सबले जादा तेज प्रकाश वाले होथे। एकर संगे संग किरण ले अमृत तको बरसथे। त आवव हम सबो मिल अमृत के बरसा म नहाके चोरोबोरो भींग जावन अउ दुुरात्मा के बध करके देवात्मा ल अमरत्व प्रदान करे म अपन खोंची -खोंची योगदान देवन।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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