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इतवारी: पूत के पांव पिता के पनही

पूत के पाँव पलने म दीख जथे। पूत सपूत त का धन जोरय, पूत कपूत त का धन जोरय। सपूत बर जोरे के का जरूरत, वो खुदे जोर लेही। कपूत बर जोरे का काम के, सब ल उजार डारही। बुढ़ापा म दाई -ददा लइका ले छप्पन भोग के इच्छा नई करय। लइका के व्‍यक्तित्‍व अउ कृतित्व ल देख जतका खुश होथे, छप्पन भोग खाके नई होवय। छप्पन भोग का, खिचरी पचाए के उन्कर हिम्मत नई राहय। दाँत संग देई देही त आँत ह धपोर देथे। पता नहीं मोर बात कतिहां के जावत ले बने हे। अपन मुँंह मियाँ मिट्ठू कस झन हो जाय। नेकी कर दरिया म डार कहिथे। चलागन अइसे हे कि दिखथे तेन बिकथे। हिम्मत कथे- गरब के बात हरे गरज के बोल। बाप कहिते रहि जथे- तोर बाप औ रे मैं। बेटा कब बाप के पनही पाँव म खाप के दुनिया नाप जथे, पते नई चलय।

मोर पुत्तर उम्मर के सत्रा विराट ओपनिंग मैच खेल डारे हे। अठारवाँ ओवर चलत हे। पढ़ई के नाम लेके ओकर संग जगदलपुर जाना होइस। यात्रा पेरेन्ट ले पार्टनर तक होगे। कहिथै- पापा ! आप ल सुरता हे ? एक दिन हमन दूनों झिन सइकिल म नानी घर जावत रहेन। वो समे मैं तीसरी कक्षा म रेहेंव। चौंक म देखेन, एक झिन लइका ल कुकुर भूँकत कुदावत रिहिसे। आगू -आगू रोवत लइका, पीछू -पीछू भूँकत कुकुर। हमन दूनो देखत रहेन। का देखथन, रोते रोवत वो लइका अचानक रूकगे। डर म मनखे के अवाज पता नहीं काबर, बाढ़ जथे। वो लइका एकदम जोर से चिचियाके रोइस अउ रूक गे। चिचियाके रोए के बेरा ओ ह कुकुर कोति मुड़गे। कुकुर ल लगिस होही कि ए ह मोला मारे बर खड़ा होगे। कुकुर भूँकई अउ कुदई ल छोड़ के रूक गे। आप मोला पूछेव- देखे हस का होइस हे तेला ? मैं कहेंव – हौ, कुकुर ह कुदावत रिहिसे लइका भागत रिहिसे। लइका रूकिस त कुकुर तको रूकगे। कुछु समझ म आइस ? मैं अचानक ये बिन बलाए मेहमान बरोबर प्रश्न ले चकरित खा गेंव। मोला निरूत्तर देख आप कहेव- देख, डर के जउन भाव हे वो ह भागत लइका हरे। माने डर हमर मन म रहिथे। हम भागे जाथन, डर हमला दऊँड़ाते रहिथे। सही म जेन डर हे, जोन समस्या हे, या ये दुनिया हे, वो ह कुकुर बरोबर हे। जब तक तैं डरबे -भागबे, ये डर, ये दुनिया सब तोला डरवाए परही। दऊँड़ाही -कुदाही। एक पइत अइसे होही कि तैं अपन डरे ले डरके जिनगी के जंग हार जबे। जब तक डराबे जिनगी म हारते रहिबे। बेटा ! हारना नई हे। डर ल ही अपन ताकत बना। गनित म तैं अपन आप ल कमजोर समझथस। गनित ले डर के भागथस। तैं कमजोर नई हस। मनखे कभू कमजोर नई हो सकय। मनखे कमजोर होतिस त उड़न खटोला म बइठ अकास म नई उड़ातिस। कमजोर होथे ओकर हिम्मत, ओकर आत्मबल। शेर तो नोहय जउन खा डारही, वो तो सवाल हरे। दुनिया म अइसे कोनो सवाल नई होवय, जेकर जवाब नई रहय। भलकुन जवाब ले ही सवाल बनथे। पढ़, बने समझ अउ बना। एक पइत गलत होही, दू पइत गलत होही। चल तीसरइया पइत घलो गलत होही। चउथइया म ओला बनेच बर परही। एके कौंरा म पेट नई भरय। घेरी पइत कौंर खाथस तब जाके पेट भरथे न।

बस ! वो एक बात ह मोर मन के जम्मो डर ल निकाल दीस। गनित बर रूचि जागगे। सही म मोर पहला प्रोत्साहक (मोटिवेटर) आप हरौ पापा।
दुनिया म सब फिल्मी सितारा के, खेल हस्ती के त कोनो अउ काकरो काकरो फेन होथे। आज ये जानके कि मोर लइका मोरे फेन हे, मैं ओकर फेन होगेंव। एक ठो बिज्ञापन आथे – कोचिंग ले निकाला सोचिंग म डाला। सहीच म झींगालाला हे यार।
जय जोहार !
धर्मेन्द्र निर्मल

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