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इतवारी : साग म नमक

साग बिन नून के, सुवाद के न गुन के। साग म नमक ओतके डारना चाही जतका म सुहावय अउ सुवाद बने रहय। जादा मीठे भर करू नई होवय, खर तको करूवा जथे। अति बर सबो रद्दा म गति अवरोधक होथे। जेन अन्न ल खाए बिगर मनखे जीए नइ सकय उही अन्न ल जादा खाए म मर तको सकथे। जादा ह अनपचन हो जथे। जरे म नमक छीते ले जलन बाढ़थे कम नइ होवय, ये हँ अत्याचार हरे। ईमानदार मनखे ककरो उपकार ल नमक ले संबोधित करथें। मोर उपर ओकर नमक लगे हे, मैं ओकर ले बेईमानी नइ कर सकवं। नमक संग हलाल मिलके ‘नमक हलाल’ अउ हराम संग ‘नमक हराम’ बनाथे। राम जिंहा मर्यादा के अवतार हरे उहेंचे भरत प्रेम के साक्षात प्रेरणामयी मूर्ति। राम अउ भरत के प्रेम संसार म भातृप्रेम के अनुपम उदाहरण हरे। गुरतुर शक्कर अउ खर नमक के राम-भरत मिलाप ले सुग्घर-गुत्‍तुर पेय तियार होथे, जेला जीवन रक्षक घोल कहिथे। निम्न रक्तचाप (लो बीपी) म कतको निष्कपट अउ निस्वार्थी जानकार भलमानुस मन नमक चाँटे के सलाह देथे। कोनो-कोनो कोरोना कीरा ल तको नमक चाँटे ले मर जथे कथें। मान्यता अइसे घलो हे कि नमक ल हाथ ले हाथ म नइ देना चाही। भुइयाँ म रख के खाना नइ चाही। उचित पात्र म ही नमक के अदान-प्रदान होना चाही। नमक ल उधार स्वरूप मँगनी म माँगना तको नइ चाही। कुछ न कुछ मूल्य बजूर चुकाना चाही। चटकन के का उधार? नमक के तको गुन सुधार। कतको दुकानदार दिन बुड़े के बाद नमक नई बेंचय। नमक के संबध म अतेक मान्यता अउ किवदती रूपी नदी ह अब आधुनिकता के धरातल ले लुप्त होए चाहत हे। जादा नून खाए ले खून पतरा जथे। तभो मनखे नमक खाए बर नई छोड़त हे। महतारी के हाथ ले रोटी छीनके लइका के मुँह म मैगी बोजइया मनखे ममता के हत्या तो करते हें, संग म भूइयां के भगवान संग तको ओतके नमक हरामी करत हावें। जीयत परानी संग नमक हरामी करइया मनखे ले माटी संग नमक हलाली के आसरा करना बेइमानी नई हे त अउ काहे?

गंदा होय के मंदा, धंधा के फंदा म जउन झूलत हे उही फूलत-फरत हे। धंधाबाज अपन धंधा ल नइ छोड़ सकय। धंधा मनखे के साँस बेंचे से लेके गउ के माँस नोचे तक कुछु भी हो सकत हे। मनखे के जात ल सबो योनि ले सर्वश्रेष्ठ माने गे हे। काबर कि ओकर तीर विवेक नाम के एक ठो कलर बॉक्स होथे। जेमा ले वोह अपन मन मुताबिक कोनो भी रंग के प्रयोग कर सकथे। दूसर भाखा म कहे त मनुष्य सब योनि म श्रेष्ठ होथे काबर कि वोह गदहा, घोड़ा, कुकुर-माकर सबो ले उपर गए-गुजर गे हवय। अब येला गए-गुजरे कहव के गए-बीते समझव ये आपके विवेक उपर हावय।

ये विवेक के ही देन हरे कि मनखे अपन जाल म दूसर ल फाँस के फायदा उठा लेथे। मनखे के मउत तक के सौदा कर लेथे। पर के मजबूरी ल अवसर म बदल लेथे। सेवा-संस्कार कथरी, घींव भरे भीतरी। सेवा के नाम म गउ के सेवा- जतन नहीं दूहई होवथे। दूध म मिलावट करथे। स्वस्थ तन स्वस्थ मन के नारा तरी अपन चारा चरत-पगुरावत हे अउ पर के मुँह म पैरा बोज स्वास्थ्य संग खेलत हे। ओम् रामबोला छुंराय नमः! संसार ल आयुर्वेद के रद्दा देखैया-बतैया देश म मनखे इलाज बिगर मर जथे। मनखे-मनखे एक समान के भाव भजैया देस म मनखे के जीते जी तो दुर्दशा होते हे, मरके तको चैन से मुक्ति नई पा सकय। हर सेवा एंबुलेंस म सवार साँय-साँय सायरन मारत भीड़ चीरत घूमत हे। संवेदना आई सी यू म कोमा म परे हे। स्वार्थ, सौदा अउ शर्त के खुराक म जिनगी मुर्दा बने रेंगत भर हे। साँस के आक्सीजन लेबल डॉउन हे। सोला संस्कार म एक ठो संस्कार अंतिम संस्कार होथे। हम अपन आप ल भाग्यशाली मानन कि दुर्भाग्यजनक कहन जउन संस्कारवान देश म पइदा होए हवन। जिंहा अंतिम संस्कार बर साजो समान धरे स्वागत म फूल-माला लेके मुक्तिधाम के रद्दा म मनखे मनखे के अगोरा करत हे। चौबीसो घंटा सेवा उपलब्ध हावय। अतिथि देवो भवः नहीं, मुक्ति सेवो भवः। जिहां उत्तम स्वास्थ्य बर अस्पताल चार कोस म मृग-मरीचिका बरोबर लुपलाप चमक परथे, उहां चार -चार कदम म मुक्तिधाम अतेक सजे-सँवरे हे, जेला देख शान से मरे के शउँक सिर चढ़ जथे। बड़ मुस्कुल जिनगी के रस्ता, इलाज माँहगी मरना सस्ता। कहाँ अछप होगै वो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया के भाईचारा चुहावत नारा? विज्ञापन देखे बर मिलथे-अंतिम संस्कार के लिए संपर्क करें। काश ! हमार पूर्वज मन स्वास्थ्य ल तको सोला संस्कार संग संघार लिए रहितिन।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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