इतवारी: मन चंगा ते कठौती म गंगा

मोर घर हँ सड़के कोति मुँह करे सड़क तीर उखरू बइठे हवय। पीछू कोति ले हुदरत- कोचकत गली हँ रेंगथे। बेरा -कुबेरा रेंगइया मन के चप्पल के अवाज तको खिड़की ले कूद के कुरिया म अभर जथे। परो दिन अक्ती रिहिसे। संझौती डब्बा-टीपा मन के गँड़वा बाजई सुनके नोनी ह खिड़की ल खोलिस। लइका मन पुतरी-पुतरा बिहाव करत रहय। उंकर सउँक अउ तियारी देखेंव फटाका तको फोरत रिहिन। मोर बचपना आगू म रोम्हिया के खड़ो होगे। दुनियादारी के बिला म तँही ह बिलम गे हस। मैं नइ भुलाए हौं तोला। मै ंमोहाए सुघरई ल देखथे रहिगेंव बोकबाय। नोनी मन लुगरा पहिरे, बाबू मन धोती। झूमत -नाचत चुलमाटी जावत हे। संस्कृति अउ संस्कार के साँसा चलत देख भविष्य के आसरा जवान होगे। खुशी के मउँर मोर मुड़ी म चमके लगिस। मुस्कान के ढाँढस ल उजास आसरा के झोली म धरे भविष्य रेंग दिस। मान के कि अभीन तक तो हम सुरक्षित हवन, आगू उप्पर वाले के मर्जी।
बिहतरा दल आगू बढ़ गे। खिड़की बंद होइस अउ मोर नोनी के धीरज के गुदुम बाजा भकरस ले फूट गे। बठेना सीधा मोर कनपटी म परिस- पापा ! लाॅकडाउन हे, कोरोना हे कहि-कहिके मोला घर ले नइ निकलन देवव। इन्कर मन बर नइ हे कोरोना हँ, मोरे भर बर हावय ? टिमकी के कुड़के ले मोर मोहरी- मँजीरा, टिन्न-गद्द सबो दफड़ागे। आजे बिहिनिया ए बात बर अंड़े रिहिसे कि कोनो बात म छोटे कहिथौं, कोनो बात म बड़े। पहिली तुमन ए तय करलौ कि मैं अभीन छोेटे हौं कि बड़े। मैं झन्नाए चुप्प। ताहेन शुरू होगे ओकर राग धरके दोहा परई – खउवा लेहंू कहिथौं, लाॅकडाउन हे। अउ कुछू लेहूं कहिथौ, लाॅकडाउन हे। साग -भाजी ल कहाँ ले कइसे लाथस ? मैं पोल पाके तुरंत मुँह खोल ढोल बजाएंव – मम्मी ! मम्मी !! जरूरी समान मन बर छूट हे बेटा। वो फेर कड़ांग ले टिमकिस – हाँ, त मोरो बर कलर पेंसिल लेना जरूरी हे।
तैं भले काहत हस, उन्कर बर जरूरी नइहे।
उन कोन ? मोर जरूरी अउ नइ जरूरी ल मैं जानहूँ।
मैं चारो कोति ले चित्त आँखी ल मूँद लेंव। वर्तमान म त्रिकाल के दर्शन कर डारेवं। नोनी माई म कभू -कभार सरस्वती के झलक पाए रेहेंव आज ओकर दुर्गा रूप ले तको साक्षात्कार होगे। मैं हथियार डार देंव- चल ठीक हे। काली तोला संग म घुमाए बर लेगहूं अउ होटल खुले रहिही त समोसा तको खवाहूँ, बस।
वो उछल गे – पक्का।
मैं ‘हाँ’ में मुड़ी डोला देंव।
मुड़ी भर हलाए -डोलाए ले काम नइ चलय। पक्का बोल पक्का।
पक्का। पक्का।
मैं बिचारा विचार के त्रिधार म बोहावत ये तय नइ कर पावत हौं कि ये जो समे हे वोह भूत, भविष्य या वर्तमान हरे।
काबर कि ओकर आगू म घोषणा करे माने फांदा म परे। मजबूत इरादा हे तभे वादा कर, नइते हरहिंसा सदासुखी ओमेर ले टर।
अब आप कहिहौ कि अरे यार ! एहू फालिया हं अपने भर ल ओसावत हे। त भई ! अपन गोठ ल मै अपन मन के नइ गोठियाहूं त काकर मन के गोठियाहूं। मोर मुड़ म देवता तो नइ खेलत हे कि तुँहर मन के बात ल जान लौ।
जय जोहार !!
-धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..