इतवारी: सावचेत हर हाल रहव, सुरक्षित अउ खुशहाल रहव

टीवी म एक ठो विज्ञापन आथे। जेमा लइका चिचियाथे – दादी……मच्छर ! दादी कहिथे – बेटा ! सबर कर। ओतके बेरा पीछू ले अवाज आथे – नहीं । सबर के फल तो डेंगू मलेरिया हो सकत हेे। जबर पोठ अउ सही बात। सबर के फल डेंगू मलेरिया हो सकथे। डेंगूच मलेरिया काबर ? कोरोना काबर नइ हो सकय। हाँ, बिलकुल सही पकड़ेव संगवारी ! कोरोनच हो सकथे । अभीन के समे अतेक परलोकिया, परबुधिया अउ बइमान हे कि सबर के फल मीठा नहीं भलकुन कोरोना हो सकत हे। थोरके बुखार, सर्दी – खाँसी या हाथ -गोड़ म पीरा होवत हे त सबर ल कबर म डार अउ तुरते जाँच केन्द्र म हभर। तभे भलई हे, नइतो देखत आवत हौ कतेक करलई हे।
फेर सबर नइ करे के माने जोश म होश गँवाना तको नइ हे। जल्दी करना हे, जल्दबाजी नहीं। दुनियाभर के जम्मो गड़बड़ी हड़बड़ी के ही पेट ले जनम लेथे।
ए बात सोला आना सत हे के डर म मनखे बाघ ल देखके बाप – बाप चिल्लाए लगथे। फेर डर म विवेक के अँचरा ल छोड़ देना कोनो किसम के समझदारी नोहय। ये कीरहा कोरोना दुनिया भर ल अपन जाल म फाँस डारे हावय। अइसन बेरा म बुधमानी अउ बहादुरी इही म हे के डाक्टर मन के सुलाह मानय- मास्क पहिरै, दुरिहा रहै अउ साफ- सफई रखै। कहूँ अइसन लक्षण दीखत हे त तुरते जाँच करावै। उप्पर वाले ले इही बिनती हे कोरोना के नजर आपमन ल झन लगै, फेर कहूँ कोरोना होइगे त घबरावै झन भलकुन घरेच म रही के तको उचित सलाह ले दवा -गोंटी लेके ठीक होए जा सकत हे। आजकाल सुनब म एहू आवत हे कि इही जल्दीबाजी के सेति कतकोन झन अइसनोहो मनखे मन अस्पताल म बिस्तर ल पोगरा डारे हवय जउन मन घरे म बने हो सकत रिहिसे। अउ ओकर परिणाम ए होवत हे कि जेन ल जरूरत हे ओला न बेड मिलत हे न आक्सीजन।
करनी पर के, भरनी पर ल।
त संगी हो, अपन समझदारी के प्रमाण पत्र देखावव – सावचेत हर हाल रहव, सुरक्षित अउ खुशहाल रहव। जीयव अउ जीयन दव।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..