इतवारी: राजा मारे रोवन नइ देय !!

एक झिन लालची बनिया रिहिस। 5 रुपिया के रोटी बेचय। ओकर मन म जादा कमाए के लालच हमागे। हाथी के पेट सोंहारी म नइ भरय। वोह जानत रिहिसे माँगे म बेटा अउ अपटे म धन नइ मिलय। ओला रोटी के कीम्मत बढ़ाना रिहिसे फेर बिना राजा के अनुमति के कोनो अपन दाम नइ बढ़ा सकत रिहिसे। जी छूटे न छटपटी जाय। एक दिन वोह राजा तीरन पहुंचिस अउ कहिस राजा जी मोला रोटी के दाम 10 रूपिया करना हे। राजा खोजे दाँव ल, माछी खोजे घाव ल। राजा कहिस -‘तैं 10 नहीं 30 रुपिया कर दे।’ बनिया कहिथे- ‘महाराज ! एकर ले तो हाहाकार मच जही।’ राजा कहिस -‘एकर चिंता तैं झन कर। तैं 10 रुपिया दाम कर देबेे त मोर राजा होए के का फायदा ? तैं अपन फायदा ल देख, 30 रूपिया कर दे।’
बिहान भर बनिया ह रोटी के दाम ल बढ़ाके 30 रुपिया कर दिस। बकठी का जाने छेवारी के पीरा।
पइसा वाले करे हाट, बिन पइसा वाले निपोरे दाँत। गाँव -साहर सबो डाहर म हाहाकार मच गे।
सबो मनखे राजा तीर पहुंच गे। कहिन- ‘महाराज ! ये बनिया ह तो बड़ तपत हावय, 5 रूपिया के रोटी ल 30 रूपिया म बेचत हावय।’
राजा अपन मुँह ल फारके गोटारन कस आँखी ल छटकारत कहिस- ‘अइसे का हव रे माहँगू ! सही बात ये ?’
‘हौ महराज ! सोला आना सही ये’- गाँव के कुकुर गाँव कोति भूँकिस।
राजा ह अपन सिपाही मन ल बलाके कहिस -‘वो बनिया ल मोर दरबार म पेश करौ।’
बनिया ल नोटिस भेजे गइस। बनिया नइ आइस। दूसरइया -तीसरइया नोटिस म तको नइ आइस। सिपाही मन बनिया के घर गइन। गरीबहा होतिस त कूटत लानतिस, ओला फूल-माला पहिराके ससम्मान दरबार म लाने गइस।
बनिया दरबार म पेष होइस त राजा गुसियाके कहिस-‘कस रे बनिया ! तोर अतेक हिम्मत ? तैं मोर ले बिगर पूछे रोटी के दाम ल कइसे बढ़ा देस ? ये जनता ह मोर ये, तैं इन मन ल लाँघन-भूखे मारना चाहत हस।’
बनिया सकपकागे। सोचे लगिस- ‘अरे ! राजे ह तो काली….’ फेर बघवा के नरी म घंटी कोन बाँधय। बनिया मुँह ल ओथार दिस काबर कि वो जानत रिहिसे – ‘राजा रिसाही ते गाँव ले लेही, नंगरा रिसाही तेन का कर लेही।’
राजा तुरते बनिया ल आदेश देवत कहिस- ‘तैं अभीन के अभी रोटी के दाम ल आधा कर, नइते तोर खँड़री ओदार देहूँ।’
‘उजार गाँव म चिपरी मोटियारीे।’ राजा के आदेश सुनते साथ जनता जोर -जोर से चिचियाए लगिन -. ‘महाराज की जय हो’, ‘महाराज की जय हो’, ‘महाराज की जय हो’।
बिहान भर 5 रूपट्टी के रोटी 15 म बेचाए लगिस।
मेछा उखाने म मुर्दा हरू नइ होवय। दाम तो कमतियाइस। जनता खुश…
धोए मुरई के उही भाव, बिन धोए मुरई के उही भाव। बनिया खुश…
कुसियार मीठ होथे त जर सम्मेत नइ खाय। अउ राजा तको खुश …..

जय जोहार!!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..