इतवारी: मटमटहा रितु बसन्त !!

बसन्त पंचमी ल श्रीपंचमी तको कहिथे। बसन्त हँ प्रकृति के पोठियाए, मोठियाए अउ मटमटाए के ऋतु हरे। भारत एकलउता अइसे भागमानी देश हरे जिहाँ छै ऋतु होथे- बरसा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त अउ ग्रीष्म। फल म राजा आमा। तइसे ऋतु म राजा बसंत सबले सुग्घर अउ सुहावन होथे, तेकर सेति येला ऋतुराज तको कहिथन। शास्त्र म येला ऋषि पंचमी कहे गे हवय। बसंत पंचमी माघ अंजोरी पाख के पंचमी के मनाए जाथे।

दाऊ घर ललना अवतरथे त चिपरी-लिबरी, कानी-खोरी अउ डोकरी-छोकरी सबो ठुमकथे- नाचथे। कामदेव सिरजन के देवता हरे जऊन बिदेह होके तको प्रकृति के कन-कन म रचथे-बसथे।

बसंत ल रूप के देवता कामदेव अउ सुघरई के देवी कामप्रिया रति के सन्तान कहे गे हवय। जब रूप अउ सुघरई घर बेटवा अवतरथे त जम्मो प्रकृति झूम उठथे। रूख -राई के नवा -नवा पाना मन झूलना फाँद देथे। नवा -नवा फूल मन ओन्हा -कपड़ा पहिराथे। पवन झूलना झूलाथे। अमराई म कोयल गीत गाके मन ल बहलाए लगथे। चिरई -चिरगुन चहचहाए लगथे त आमा के बौराए- मऊँराए मंद-मंद बयार बोहावत मन ल बइयाए लगथे। आनी-बानी के रंग-बिरंगी तितली मन मँडराए लगथे, येला देख बिलवा भौंरा मन बइमान नइ होही अइसन कब संभव हो सकथे भला। अइसन अपरम्पारी बसंत के महिमा जतके बखानबे कमतीच हे। उही सेति भगवान श्रीकृष्ण गीता म कहिथे -‘ऋतु म मैं बसंत हरौं।’

जऊन महात्तम सैनिक मन बर शस्त्र अउ विजयादशमी के होथे, गुनी-ग्यानी मन बर पुस्तक अउ व्यास पूर्णिमा के होथे, बयपारी मन बर तराजू-बाट-बहीखाता अउ देवारी के होथे उही महात्तम कवि-कलाकार मन बर बसंत पंचमी के होथे।

बसन्त पंचमी हँ सरस्वती के अवतरे के दिन हरे।

ये दिन विद्या, संगीत अउ बुद्धि के देवी सरस्वती के पूजा करे जाथे। देवी पुराण म सरस्वती ल सावित्री, गायत्री, सती, लक्ष्मी, अउ अंबिका कहे हवय। प्राचीन ग्रंथ म वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी, वाग्देवी, वाणी, विद्याधरी, सर्वमंगला के नाम ले तको जाने जाथे। सात सुर ले येकर सुरता करे के सेति ‘स्वरात्मिका’ अउ सुर ताल, लय के सातों विधि ले ज्ञान देहे के सेति ‘सरस्वती’ कहाथे। संगीत ल उपजाए के सेति येला ‘संगीत के देवी’ तको कहिथे।

श्वेत अंग म श्वेत वस्त्र धारिणी चतुर्भुजी के एक नाम ‘श्वेता’ नीर-क्षीर विवेकी हंस सवार के सेति ‘हंसवाहिनी’ अउ निरपेक्ष गति के प्रेरक कमल के आसन के सेति ‘कमलासना/पद्मासना’ तको बलाथन। योग म पद्म एक आसन तको होथे। सरस्वती के एक हाथ म वीणा, त दूसर हँ असीस देके मुद्रा म रहिथे। अउ आने दूनों हाथ म पुस्तक अउ माला होथे।

शास्त्रीय संगीत के हिन्दुस्तानी पद्धति म एक राग, राग बसंत होथे जेकर गायन काल रात के आखरी पाहर होथे। येला बिशेष रूप ले बसंत ऋतु म गाए जाथे। रागमाला म राग बसंत ल रागहिंडोला के पुत्र माने गे हवय।

लक्ष्मी श्री हरि के शक्ति हरे, पार्वती शिव के शक्ति हरे ओइसनेहे सरस्वती ब्रम्हा के शक्ति हरे।

अवतरे के पीछू सरस्वती ल ब्रम्हा कहिस कि तैं मनखे के जीभ म वाक्शक्ति बनके क्रियाशील रहिबे।
वाक्शक्ति माने बानी ले ही मनखे वश म होथे अउ बानी ले ही बइरी होथे। उही बोली आ कहिथे, उही बोली जा कहिथे। इहीच गोठ ल हम मुहावरा के मुखौटा पहिराके अइसे काहत मनखे के मन ल मोहि सकथन कि मनखे उही मुँह ले पान खाथे उही मुँह ले पनही।
सरस्वती के कृपा ले महर्षि वाल्मीकि ‘आदिकवि’ होके जग म नाम कमाइस।
बानी के देवी सरस्वती के प्रभाव ले कुंभकरण हँ इन्द्रासन के जगा निद्रासन माँगे रिहिस हे।
ऋषि भार्गव अउ भौर्व म एक पइत कोनो बात ल लेके अतेक तर्क -कुतर्क होइस कि ब्रम्हा के माथा ठनक गे। ये तर्क ले ब्रम्हा के पलक ले ज्वाला जनम ले लिस। सरस्वती देखिस कि बानी ले जन्मे ये तर्क ज्वाला ले सरी जग के नाश हो सकथे त वो हँ वो लपट ल समुन्दर के दाहरा म दबाके आ गे। येकर ले सरस्वती के एक नाम ‘बड़वाग्नि’ परिस।

ऋग्वेद के अनुसार श्रीकृष्ण हँ सरस्वती माता ऊपर प्रसन्न होके ऋषिपंचमी के दिन ये असीस देहे रिहिस हे कि कलजुग म तको तोर पूजा होही। आज के दिन सरस्वती के पूजा करे जाथे। दाई सरस्वती भूइँया म एक ठो पावन नदियाँ के रूप म तको सऊँहत अउ साहित हे। सरस्वती नदी के पार म महर्षि वेदव्यास के पुत्र हँ राजा परीक्षित ल ज्ञान दे रिहिस हे।

बसंत पंचमी के दिन विष्णु अउ कामदेव के पूजा करे जाथे। पीताम्बर पहिरे जाथे। ये बेरा म आमा के मँजरी, सरसो के सोनहा फूल अउ जवाँ-गहूँ म बाली पोटरियाये लगथे। ये दिन भगवान ल इही अर्पित करे जाथे- ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।’

बसंत पंचमी अतके भर ले नई जुरे हावय। एकर संग कतकोन अकन अउ किस्सा कहिनी मन खाँध जोरे, मुँह जुरियाए कानाफूसी करत खड़े हावय।

बनवासी राम ल दंडक बन के रहइया भीलनी शबरी हँ चीख-चीख के बोईर खवाए रिहिस हे। दंडक बन ओ पइत वर्तमान गुजरात अउ मध्यप्रदेश तक बगरे रिहिस हे। गुजरात के डांग जिला म वो शबरी आश्रम आज ले हे। उहेंचे शबरी माता के मंदिर तको हे। बसंत पंचमी के दिन बनवासी राम शबरी के कुटिया म आए रिहिस हे।

बसंत पंचमी के दिन सिख समुदाय के दसवाँ गुरू, गुरू गोविन्द सिंह जी बिहाव बँधना म बँधाए रिहिस हे।

गुरू रामसिंह कूका जऊन गऊ रक्षा, नारी उद्धार, अंतर्जातीय बिहाव, सामूहिक बिहाव ऊपर जोर देवय। जऊन सबले पहिली अंगरेजी राज म तको अपन अलग डाक सेवा अउ प्रशासन बेवस्था चलाइन। उन्कर जनम 1816 म बसंत पंचमी के दिन लुधियाना के भैणी गाँव म होए रिहिस हे।

‘कहाँ राजा भोज कहाँ गँगू तेली’ के कहावत कोन ल सुरता नइ होही। बसंत पंचमी के अवतरे राजा भोज अपन जनम उत्सव के दिन जम्मो प्रजा ल झारा-झारा खवावय जऊन चालीस दिन ले चलय।

महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के गरीब अउ निजोर वर्ग बर अतेक मया अउ पीरा राहय कि वोहँ कमई के रूपिया -पइसा अउ कपड़ा -लत्ता ल तको दान कर देवय तेकर सेति वोला ‘महाप्राण’ कहे गे हवय। वो ‘महाप्राण’ इही दिन (28.02.1899) अवतरे रिहिस हे।

राजा पृथ्वीराज चैहान ल सबो जानत होहू। वोहँ विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी ल 16 पइत हरो के जीयत छोड़ दिस। 17 वाँ पइत मोहम्मद गोरी जीतिस त ओला नई छोडि़स, भलकुन अपन संग अफगानिस्तान लेगे। उहाँ ओकर आँखी ल फोर दिस। मोहम्मद गोरी ओला मऊत के सजा देहे के पहिली ओकर शब्दभेदी बाण के कमाल देखना चाहिस। पृथ्वीराज चैहान अपन कवि चंदरबरदाई के सुलाह ले इशारा पाके कि –
चार बाँस चैबीस गज, अँगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चुको चैहान।

अंदाज के तीर चलाइस, जऊन मोहम्मद गोरी के छाती म जाके धँसगे। वो दिन (1192 ई.) बसंत पंचमी के रिहिस हे।

बसंत पंचमी हमला बीर हकीकत के तको सुरता कराथे। मुस्लिम लइकामन दुर्गा माता के हँसी उड़ावय। तेकर जुवाब हकीकत तको दिस। ओकर शिकायत लइकामन हाजी तीरन कर दीन। शासन ले आदेश होइस कि हकीकत मुसलमान बन जावय नइते मऊत के सजा दे जाही। हकीकत नइ मानिस। ओकर घेंच ल तलवार ले काट देहे गइस। बताथे कि ओकर मुड़ी हँ भूइँया म नई गिरके अगास के रद्दा ले सोझ सरग गय। ये घटना हँ बसंत पंचमी के घटे रिहिस हे। ओकरे सुरता म पाकिस्तान के लाहौर म बसंत पंचमी के दिन पतंगबाजी होथे। काबर कि हकीकत लाहौर के रहइया रिहिस हे।
पतंगबाजी के जनक सही म चीन हरे। इहाँ-उहाँ पतंगबाजी देखा-सीखी ये।

ये दिन आमा के मँजरी ल हथेरी म रमंज के जोर भर सूँघे अउ प्रसाद स्वरूप ग्रहण करे ले बछर बर साँप -बिच्छी जइसन जहरीला जिनावर मन के चाबे -काटे के डर-तरास नइ राहय। उन तीरे म नइ ओधय।

बसंत पंचमी के अवतरे लइका जऊन ठानथे करके मानथे कहिथे। भस्म ले अंकुर फूटके भस्मांकुर होइस वो हे ‘काम’। पौराणिक कथा ‘कामदहन’ के ऊपर विद्रोही जनकवि नागार्जुन के एक खण्डकाव्य के नाम हे ‘भस्मांकुर’।

विष्णु के कहे म ब्रम्हा सृष्टि रच तो दिस। फेर मजा नइ आइस। मजा आना चाही। त का करे जाय ?
दूसर- पापी असुर तारकासुर शिव-पार्वती पुत कार्तिकेय के हाथ ले मरही। बैसुरहा शिव तपस्या म रत हे, रति का सकत हे। जागय कइसे अउ जगावय कोन ?
एक पंथ दू काज। दूनो के बूता एके ले हो सकिस, वो हे -‘कामदेव।’

बसंत पंचमी कामदेव आगमन के आरो हरे।

बसंत पंचमी के दिन छत्तीसगढ़ म अंडा पेड़ के डाँड़ी ल पूजा करके होले डाँड़ म गडि़याए जाथे जेला झंडी गडि़याना कहिथे। झंडी गडि़याए के दिन ले होले रचे के श्रीगणेश होथे जऊन फागुन पुन्नी तक 40 दिन चलथे। होले डाँड़ के झंडी हँ कामदेव के चिन्हा ये। सही म देखे जाय त बसंत पंचमी ले होले तिहार तक छत्तीसगढ़ म ‘मदनोत्सव,’ या ‘बंसतोत्सव’ के परब चलथे।

बसंत पंचमी के दिन कामदेव अउ रति, शिव के तप ल तपे-टोरे बर ओकर आगू म आथे। दूनो अपन बानी-बचन, चाल-चलन, नाच-मटकन अउ छप-अछप कामी दृश्य ले ओकर तपस्या ल टोरे के उदीम करे लगथे। सजीव-निर्जीव, ठूँठ -पान, जर-मूर, रस-नीरस, उल्का-भुल्का, कीरवा-बिरवा, धीर-बीर, थिर-चल, गहिर-उथल, कोपल-उपल, देंह-बिदेंह, मुक्का-बक्का, चेहरा-मोहरा, अजन-सजन, मन-अमन सबो म मया, मोह अउ मस्ती के रसा ल नीचो-चुचुवाके मनमाड़े बोर-चिभोर के सरस कर देथे। उन्कर ये नाच-गान, अम्मक-झम्मक, हीही-भकभक हँ माघ अंजोरी के पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक चलथे। फागुन पुन्नी के शिव अपन तीसरइया आँखी ल उघार के कामदेव के जम्मो रंगझाँझर ल राखर कर देथे।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..