इतवारी: अपनो टेम आही गा !!

घुरूवो के दिन बहुरथे। घुरूवा ह दुनिया भर के मइल ल झेल-सहि के सबो ल पचो लेथे। जे सहिथे तेकर कुछु बिगाड़ नइ होवय। घुरूवा परहित बर स्वयं म पचके खातू बनाथे। मनखे के पोषक अहार मन ल पोषन देथे। माने घुरूवा जगत के पालन-पोषण बर बड़ सहायक हे। महान हे ओकर करम। तेकरे सेति सियान मन कहिथे- मनखे ल घुरूवा होना चाही। घर के डेरौठी कस सरी दिन घुरूवो म दीया बारना चाही। नइ बारय, मनखे के जात बड़ स्वार्थी होथे। देवारी के दिन भर सही !! बछर भर म घुरूवा देवारी के दिन भर दीया के मुँह ल देखे बर पाथे। तभो पाव मानके अपन भाग ल सहिरा लेथे। देरी से सहीं, सुरता तो करिस। सहीं म घुरूवा के दिल अब्बड़ बड़े हे। मनखे रिंगी-चिंगी होवय कि गबरू राहय, दिल के बड़े होय ले दिलदार बनथे अउ बड़े कहाए के मान पाथे।
दिन बहुरे ऊपर म एक ठो बात सुरता आगे। मनखे के पुरखा बेंदरा रिहिसे कहिथे। माने विकास के चक्का चले ले मनखे बेंदरा ले मोगली के रद्दा होवत मानव बनगे। अब महामानव बन गे हे। महानगर म रेहे लगे हे। झकाझक ओन्हा -कपड़ा, चकाकच घर दुवार, ठसाठस ऐसो अराम। मनखे आवत खानी कुछ जिनावर मन ल संग ले लालिन जइसे गाय, भइँस, छेरी -पठरू। जल्दबाजी म घोड़ा म सवार होके निकले रिहिन। साग-पान नई मिलिस त कुकुरी -मुर्गी ल दार बना लिन। अऊ जिनावर मन जंगले म छूट गे। कोनो-कोनो मन पीछू -पीछू आ तको गय। बिलई नान्हे लइका मन कस रोम्हियाए पीछू परगे, पूछिस- मैं आऊँ… म्याऊँ। मनखे नहीं.. नहीं कहिते रहिगे, वोह लुकाचोरी, छपटत -छपटावत आइगे। बिलई ल शेर के मोसी कथे। बिलई चोट्टी मुँहा हे। आदत ले लचार। तन घुरघुराए-सकेलाए, पूछी छपटाए, कान टेंड़ाए रहिथे फेर इमान डोलत रहिथे। आँखी मूँदे दूध ल ताकथे। अपन आँखी ल मूँदके समझथे कि दुनिया के आँखी मूँदागे। फेर अइसन नई हावेय। सींका के टूटती होगे बिलई के झटकती। बदनामी फोकट म मोसी के माथा पर गे। बिल्ली बदनाम हुई…….।
कोलिहा -कुकुर अउ खेखर्री सहोदर भाई हरे, एके पेट ले उपजे। एके चेहरा -मुँहरन। मुँह चोक्खी, तिकोनिया ठाढ़-ठाढ़ कान तीनों भाई म बस अतके फरक हे कि छै महीना ले लोहा के पोंगरी म सोज घुसेर के राख दे जब खोलके देखबे कुकुर के पूछी टेड़गा के टेड़गा। कोलिहा के पूछी सुल्लु अउ खेखर्री के झबरा होथे। उम्मर के हिसाब ले ऊँचई कम- जादा होथे। कोलिहा बड़े भाई हरे, कुकुर मँझला अउ खेखर्री सबले छोटे। एक पइत कोलिहा अउ कुकुर दूनो भाई गाँव -नगर के माहर -माहर महमहई ल सूँघके गोठियाथे-
कोलिहा- ये मोगली मन माँस ल भूँजके खाथे कहिथे, भाई ! कइसे लागत होही ?
कुकुर – झन पूछ भैया, अब्बड़ सुवाद होथे कहिथे। भूँजे माँस के मजे गजब होथे गा।
कोलिहा – हमू मन एकात दिन भूँजके खाइन का रे ?
कुकुर – वा, नेकी अउ पूछ-पूछ। शुभ काम बर देरी नई करना चाही भैया।
कोलिहा – त…. आगी कहाँ हे ? अइसे कर, जा तैं गाँव अउ हमार मोगली भाई मन ले आगी माँगके लानबे। लगे हाथ माँस ल भूँजे के रेसिपी, तौर-तरीका तको लान लेबे। बात के मुताबिक कुकुर गाँव म अभर गे। गाँव आके कुकुर मनखे के आनी -बानी के खवई -पीयई ल देखके इहेंचे रतियागे। लहुटबे नई करिस। कोलिहा ल चिंता खाए लगिस- बड़े फजर के गए भाई अभीन ले नई लहुटे हे। मुँधियार होवत हे, कुछु अनहोनी तो नई होगे। खोजा-खोजा मातगे। एफआईआर लिखाए बर गइस त कहि दिस- बड़का -बड़का साहर म नान्चीन-नान्चीन बात होथे रहिथे पाटनर। कोलिहा भुसभुसाए मन संझौती गाँव के तीर पहुँच गे। सोचिस- सोज्झे -सोझ गाँव घुसरे म अऊ गड़बड़ झन हो जाय। गाँव के बाहिरे ले हाँका पारिस- का हुआ…. हुँवा…हुँवा ?
कुकुर के कान खड़ो होगे। सोचिस गाँव के बिरियानी के आगू म जंगल के हिरन चानी तको नहीं के बरोबर हे। कोन फोकट जंगल जावय। ओकर मन म अपन बाँटा के खई-खजानी के तको कोलिहा संग बँटवारा के चिंता होगे। बाँटे भाई परोसी कहिथे। ओहा गाँवे भीतर ले भूँके लगिस – रूक.. हौ… भौं… भौं…. भौं।
भाई रूके बर काहत हे सोंच कोलिहा जंगल लहुटगे। रात भर अगोरा करिस। भाई के छइँहा नइ दिखिस। मुंदरहा ले फेर आके गाँव के बाहिर चिल्लाए लगिस — का हुआ…. हुँवा…हुँवा ?
कुुकुर भूँके लगिस – रूक.. हौ… भौं… भौं…. भौं।
कोलिहा सबो बात ल समझ गे। भाई कुकुर भईगे रतियागे।
भाग कब पलट जाही, कहे नई जा सकय।
त्रिया चरित्रं, पुरूषस्य भाग्यम्, देवो ना जानाति कुतो मनुष्यः।
राहते राहत कुकुर के भाग जाग गे। बिस्कुट खाये लगिस, दूध पीये लगिस अउ सोफा म तनिया के सुते लगिस। जऊन निर्मल के कुकुर घर के रिहिस ल घाट के, वोह स्वामीभगत के पुरूस्कार पा लेहे। पुरूस्कार ल चाँटत मनखे के मनखई ल चाँटे लगे हे। घर के पिसान ल कुकुर खाय, परथन बर माँगे जाय। भाई के आसरा म कोलिहा रोज मुँदरहा अउ संझाती गाँव के बाहिर आवय अउ चिचियावय – हुँआ…….हुँआ…….. हुँआ……..।
एति ले कुकुर रूक.. हौ… भौं भौं भौं कहिके चुप करा देवय। गाँव के बाहिर हुँआ. हुँआ हुँआ अउ गाँव म ये भौं भौं भौं के परंपरा आज तक बने हवय।
कुकुर के कुकुरई ल देख कोलिहा एक दिन वाट्सअप करिस- तैं नई आवस ते झन आवस हमर बाँटा ल तो भेज दे। कुकुर जुवाब भेज दिस- तोर गीदड धमकी ले मैं नई डर्राववँ, का करबे ते कर ले। तब ले कोलिहा अपन गीदड धमकी ल पैजामा बनाके पहिन लिस।
गलती होगे, देहे के बेरा आसरा म दे परथे। मनखे कहिथे- कुकुर ह गंगा नहाही त पतरी ल कोन चाँटही। इंहा तो कुकुर पतरियों ल चाँट डारिस अउ गंगा तको नहा लिस। पतरी के चाँटत ले बंगला के दुआर म बोर्ड टाँग दिस – कुत्तों से सावधान।
कुकुर मन झकाझक पहिर -ओढ़के चकाचक दिखे- रहे लगे हे। पद, प्रतिष्ठा अउ पहिचान के पलौंदी पाके मेछराए लगे हे। कोलिहा बिचारा अपन सब-कुछ ल सँऊपके भोकवा बन गे। ये मामला म खेखर्रीच ह बने हे। खेख..खेख करत कथरी ओढ़े घींव खावत रहिथे मुसुर-मुसुर। अपना काम बनता, …जाय…….। उही पाय के खेखर्री उर्फ लोमड़ी ल ‘श्रीश्री चलाकश्री’ के उपाधि देहे गे हे।
कोलिहा चिचियाते रहिगे- हुँआ…हुँआ…हुँआ.। फेर आसरा के संग ल नई छोड़े हेे। अपन भाग के अगोरा सबो ल रहिथे। हमू ल हे संगवारी ! हमरो मन चिचियाके नहीं, फुसुर-फुसुर सहीं, फेर कहिथे – अपनो टेम आही गा………।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..