इतवारी अंधियारी पाख, अंजोरी परब -देवारी !!

श्रद्धा, विश्वास अउ आस्था जब भीतर तक घुर-मिल जथे तब जनमानस के महासागर म उछाह ह उफल जथे अउ तिहार बनके चारों खुँट बगर जथे। उमंग अउ उछाह के परब देवारी दशहरा बुलकथे अउ पाँव म पइरी बाँधके छनछन करत आए के आरो करे लगथे। हमर गँवई के कलेण्डर अँगरी म चलथे। पीतरखेदा के दस दिन बाद दशहरा ओकर बीस दिन बाद देवारी। गूगल बाबा के चेला मन नक्शा देखावत-फरिहावत कहिथे- राम ह तो रावण मारके पुष्पक विमान म उड़के आ गे। बानर सेना रेंगत आइन। लंका ले बानर सेना ल रेंगत आए म 21 दिन लगगे। जब उन अयोध्या आइन त कार्तिक अमावस के अंधियारी रात रिहिसे। उन ल अंजोर देखाए बर घरो -घर दीया बारीन। जेति ले आ जावय, घर-दुवार, खेत- खार, नदिया-नरवा, मरघट-मंदिर सबो कोति दीएच दीया। दीया के कतार – दीपांे की अवलि, जेकर नाम दीपावली। देवारी के दीया घुरवा के मुड़ म पागा बाँधके ओकरो दिन ल बहुरा देथे।
अइसे तो दशहरा के बाद से लोगन उन ल रद्दा देखाए-बताए बर घर म अगासदिया टाँगे बर चालू कर देवय। ये चोंई-चोंई, लुरू-बुचु उतलंगहा झालर लाईट मन ह छत के मुँडेर म चढ़के अगासदिया ल ढकेल के मार डारिन।
मारकंडेय पुरान अउ दुर्गा सप्तशती के अनुसार तीन बड़े रात कालरात्रि, महारात्रि अउ मोहरात्रि होथे। कालरात्रि माने होरी, महारात्रि माने शिवरात्रि अउ मोहरात्रि माने देवारी अउ शरद पूर्णिमा तीनों रात जागरण के परब हरे। येकर साधना कठिन होए के संगे -संग कामनापूर्ति के भरे-पूरे कोठी होथे।
सबो जानथे पाँच दिन के ये देवारी म पहिली दिन धनतेरस, जेमा पिसान या कच्चा माटी के 13 दीया बारे जाथे। आयुर्वेद के जनमदाता देवता धनवन्तरि ह अमृत कलश धरे समुन्द मंथन ले इही दिन अवतरिस। ये दिन लक्ष्मी, गणेश अउ कुबेर के पूजा करे जाथे।
दूसर दिन नरक चतुर्दशी ल छोटे देवारी तको कहिथे। ये दिन गोबर के 14 दीया बारके यम के पूजा करे जाथे।
तीसरइया दिन ये तिहार के माई मुड़का सुरहुत्ती के हरे। ये दिन अन-धन के देवी लक्ष्मी के पूजा करे जाथे। किसान के असल लक्ष्मी मुड़ म सोनहा बाली बोहे-पहिरे झूमत -नाचत फसल होथे। एकर खुशी म नवा चाँऊर के फरा बनाके खेत-खार म चढ़ाथे। ईष्र्या, द्वेष के अंधियारा मेटारत किसान मन म जन कल्याण के भावना भरे एक दूसर ल दीपदान करथे। घरो-घर दीया बगराके मंगलकामना करथे। ये सुरहुत्ती के दीपदान उछाह, उमंग अउ उजास के महापर्व होथे।
नान्हेपन म देखे रहेंव लोगन ज्ञान के देवी सरस्वती, धन के देवी लक्ष्मी अउ बुद्धि के देवता गणेश के संघरा पूजा करैं। अब मनखे अतका बुद्धिमान होगे हे कि ओला विद्या के जरूरत नइहे। बुद्धि रहे ले कतको लक्ष्मी कमाए जा सकथे अउ लक्ष्मी के भरोसा विद्या ल खरीदे जा सकथे। आजकल सिरिफ लक्ष्मी अउ गणेश के फोटू देखे बर मिलथे। माने लक्ष्मी के अंहकार म मनखे अपन आप ल बुद्धिमान मानके विद्या के तिरस्कार करत हे। अब तो विद्या घलो बुद्धिमान धन -कुबेर मन के धंधा बन गेहे।
देवारी के बिहान भर गोवर्धन पूजा होथे। येला अन्नकूट तको कहिथे। इही दिन भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत ल अपन छीनी अंगरी म उठाके इन्द्र के कोप ले जगत ल बचाए रिहिसे। कृष्ण छीनी अंगरी भर लगाइस, गोवर्धन पर्वत ल उठाए म बाकी पूरा सहयोग जम्मो गोपी-ग्वाल मन के रिहिसे। कृष्ण एकर माध्यम ले ये सिखोथे कि एक एक मिल एक्कइस होथे माने एकता म बल होथे। ओकर सुरता म धान के बाली, मेमरी अउ गोंदा फूल खोंचके गोबर के गोवर्धन बनाए जाथे। अपन हितैषी, मितवा अउ जाँगर के संगवारी गो-धन ल नहवा-धोके ओकर पूजा करथन। खीचरी खवाथन। ओकर ले गोवर्धन खुंदवाथन अउ एकर दूसर के माथ म गोवर्धन के टीका लगाथन। कोनो कोनो मन के मया अउ आत्मा के रिस्ता नता ल नाम देहे बर गोवर्धन तको बदथे। कृष्ण खुद गौ-वंश के बड़का अउ पोठ पूजक रिहिसे। ये बात अलग हे के आधुनिकता के दऊँड़ म आज हम गो-मूत्र अउ गोबर के उपयोगिता ल भूलाके गौ-वंश के संवर्धन अउ संरक्षण ले मुँह चोराए लगे हावन।
रऊताइन मन घरो-घर हाँथा (भित्तिचित्र) देथे। राऊत -पहाटिया मन मातर जागथे। गाय-गोरू ल जेवर के रूप म सोहई बाँधथे। खिचरी खवाके परसाद पाथे।
पाँचवा दिन भाई -दूज होथे। कहिथे ये दिन मऊत के देवता यम ह अपन बहिनी ‘समी’ यमुना ले मिले बर पृथ्वीलोक आइस। यमुना ह भाई आए के खुशी म आनी बानी के खीर-तसमई बनाके खवाइस। जेकर ले खुश होके यम ह यमुना ल कलजुग म अम्मर रहे के बरदान देइस। आजो भाई मन बहिनी के घर जाथे अउ बहिनी मन टीका लगाके उन्कर पूजा करथे अउ मिठई, खीर -तसमई राँधके खवाथे। भाई मन ओकर बलदा म बहिनी मन ल उपहार देथे।
देवारी के बीचो-बीच एकरे समानान्तर एक ठो अउ रसम चलथे – गौरी -गौरा के। कहिथे इही पइत ईसर राजा भगवान शंकर अउ गौरी के बिहाव संपन्न होए रिहिसे। नारी परानी मन इही बीच ये बिहाव के जम्मो रसम ल पूरा करथे। रसम निभाना नारी मन ही जानै अउ रसम नारी मन ले ही निभे बर जानै। कहे गे हवय के सप्ताह के सातों दिन म कोनो न कोनो दिन सबो ल जाए बर परही। ये जगत के मुसाफिरखाना म कोनो सरी दिन नही राहय। फेर मोर आसरा अउ विश्वास हे के ये धोबी के पट्ठा ल आपमन के सेवा करे खातिर ईसर राजा अवइया हप्ता तक बजुर जियाए रखही। तब मैं ईसर राजा के बिहाव परब गौरी-गौरा के कहिनी जइसे बन परही लेके आहूँ। आपमन के मया अउ दुलार अवइया इतवार तक नई कमतियाए रहिही इही आसरा अउ विश्वास के संग-

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..