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इतवारी: हरिकीर्तन गोभीचोर !

जानकारी के होना डर के सबले बड़े कारन होथे। कभू -कभार अनजान होना मनखे बर बनेच होथे। आप कोनो अनजान रद्दा म जाथौ त सुनसान रथे तभो कोनो किसम के डर-तरास नई हलावय-डोलावय। कहूँ सुन-जान डारेंव कि वो रद्दा म कुछू हवय, त निश्चित हे उहाँ ले गुजरे बर कोनो संगवारी के संग ल पक्का जोरिहौ -धरिहौ। मुँहाचाही के बहाना तो बोहनी -बट्टा ये हिम्मत बटोरे के।
मनखे दिमाक के खाली संदूक लेके अवतरथे। दिमाक के खाली संदूक म घर, आस-परोस अउ दुनियादारी के गीला कचरा-सूखा कचरा जम्मो जमा होवत रहिथे। स्वच्छता अभियान म सूखा कचरा़ ले ‘कबाड़ ले जुगाड़’ योजना के तहत कोनो उपयोगी नवा जिनिस तियार हो जथे। दिल-दिमाक के स्वच्छता अभियान ल संस्कार के संज्ञा देहे जाना अनुचित नई हे। अइसन अभियान बर विपक्ष तको अपन मुँह के सिलई ल नई टोरे सकय। ये किसम ले अइसन संस्कार जोरे -जुरियाए के पोठ अउ सुविधाजनक साधन होथे।
कन्हैया के एक नाम माखनचोर हे। कतको झिन कहिथे कि वोला माखनचोर कहना खचित-उचित नई हे। वो तो स्वेदशी अपनाओ योजना के सीख देवत गोकुल के दूध -दही ल बाहिर बेचे बर ले जाए के बिरोध करय। लीलाधर के गोठ लीलाधर जानै। हम तो सिरिफ लाल-पीलाधर अवन। अपन किसन ल जानथन, सो ओकरे गोठ ल तानथन।
नान्हेपन म किसन अतके भर जानय कि आठे कन्हैया के उपास रहना हे। फरहारी म सूजी -सिंघाड़ा के कतरा, खीर-पुड़ी अउ खीरा धड़कना हे। सावन-सम्मारी सावन भर रेहे ल परथे ओ रद्दा अबड़ लम्बा हे। आठे कन्हैया सार्ट एण्ड स्वीट हवय। आजकाल सब सार्टकट ल स्वीट समझ झट ले झोंक-झपट लेथे।
किसन आन दिन सुतके उठय अउ मुसुर-मुसुर अंगाकर रोटी दबावय। आज फरहारी के आसरा ल चिचोरत एलम-ठेलम करत हे। चुचरू लइका अंगरी ल चुचरके मन ल मड़ा सकथे, पेट के तिलिंग म चढ़े भूख ल नई झड़ा सकय। नौ नई बजे पाइस, किसन ल मारे के भूख के नौ ले दस पूरे कस लगे लागिस। रंधनी कुरिया ल झाँकिस, उहाँ डोकरी दाई के पाहरा लगे रहय। नवा गाड़ी के पिकप गजब के होथे ओइसनेहे बचपन म सुरता के नोक अबड़े चोक्खी होथे। किसन बारी-बेला कोति कूच करिस। मन उदास -ये उपास भी न, मन झपास-मइन्ता खपास के छोड़ अउ कुछू नोहय।
कोंहड़ा, करेला, तोरई, रमकेलिया सब बइहा हे, फोकट के झूलना म खुश हे। ये चुटचुटिया -पहलवान के आगू म डेढ़ फुटिया !! खीरा- वा रे ! मोर सोना ! मोर हीरा !! कहत किसन आगू बढ़े। देखथे, उहाँ तो कोनो अइसन खीरा नइहे जउन किसन के भूखे मन के पीरा संग पंजा लड़ा सकय। पहलवान खीरा मन मसल म तेल लगाए बिहिनया ले फरहारी के अखाड़ा म खोभियाए खड़ा होगे रहय। भागत भूत के लंगोटी सही, किसन खीरा के जतका बाती धरे रहय सब ल पजा डारिस, एक नइ छोडि़स।
बाती-बाती म का उदबत्ती जलना हे। छापामार युद्ध शैली म पोठ- पाके किसन डोकरी दाई के बंकर ल पंचर कर डारिस। रंधनी खोली ले एक मूठा बासी मारे म तको सफल होगे। तेकर पीछू माड़े मन ल धरे डोकरी दाई संग हरिकीर्तन सुने बर गै। रतिहा आके बासीचोर-खीराचोर, गोंह-गो ले फरहार करके प्रसन्नमन सुतगे।
बिहान भर डोकरी दाई चिचिया-चिचियाके गाँव-भर ल उठा-सकेल डारिस। बारी के खड़े पेड़ ले गोभी चोरी होगे। किसन तको नटवरलाल कस नटवा हे। बिंदास बारी गइस। रतिहा पानी बरसे रहय। बारी म चोर के पाँव के चिनहा परे रहय। सब एक ले बढ़के एक विचार उछरत रहय। दुनिया म लालबूझक्कड़ के पद कभू रिक्त नइ होवय। एक झिन लालबूझक्कड़ आइस। अइसे -अइसे पाँव रखत चोर ह गोभी के चोरी करे हवय – काहत पाँवे -पाँव के चिन्हा म अपन पाँव ल मड़ावत रेंगे लगिस। कभू -कभू गलती से मिसटेक करत सुकाल म अकाल ल काॅल लग जथे। अपने पाँव म कुल्हाड़ी मार डारथे। अइसना मनखे डेढ़-हुसियार के नाम ले साहित्य म जगा पोगराथे। सबे एके सुर म कहिन – पाँव तो तोरे मिलत हे। चोर तो तही लागत हस। गाँव म वो दिन ले ये नारा के चलागन होगे – हरिकीर्तन गोभीचोर !

जय जोहार !
धर्मेन्द्र निर्मल

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