इतवारी: ओ माया मोर !!

धान कटोरा छत्तीसगढ़ संस्कृति, परम्परा अउ आस्था के संगम हरे। इहाँ के हर परब, उछाह अउ तीज-तिहार प्रकृति ले जुड़़े हवय अउ सबो के अपन-अपन सत्तम-महात्तम हे। नवरात के जवाँरा तको माई के पूजा, अर्चना अउ अराधना के संगे संग प्रकृति -पूजा के एक ठो विशेष शैली हरे।
नवरात म देवी माँ नौ रूप म पूजे जाथे। कहिथे जब देवी माँ प्रगट भइस त ओकर हजारो आँखी रिहिसे अउ वो आँखी मन ले नौ दिन ले जल गिरत रिहिसे। संगे -संग खाए-पीए के जीनिस तको बरसत रिहिसे। जेकर ले सबो जीव-जिनावर अउ वनस्पति-प्रकृति के पियास बुझिस, एकर ले देवी के एक नाम शाकम्भरी तको परिस। इही दिन ले वनस्पति पूजा शुरू होइस। वनस्पति जिनगी के अधार होथे, जेकर ले शक्ति मिलथे। उही सेति जेवन माने जीवन के आसरा म लोगन जवाँरा बोथे। जवाँरा के रसपान ले विटामिन सी अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता म बढ़ोतरी होथे। सरगुजा म एला जई बोना त बस्तर म देवी जगार के नाम ले जाने जाथे।

सेऊक मन पंचमी के जस पचरा गाके माता के सोलहो सिंगार के बखान करथे त सप्तमी के दिन जगराता करथे। ए दिन रात भर जागके देवी दाई के पूजन -अर्चन करे जाथे। बिहान भर माने अष्टमी के कलश चढ़ाके पींवराए जवाँरा ल अउ गाढ़ पींयर देखे के आसरा म हरदी पानी छींचथे जेला हरदाही कहिथे। सेऊक मन देवी जस गीत के अलावा ओकर दिकपाल मन के तको जस गाथे जेमा ब्रम्हा के पुत्र बरमदेव, गहिरा के पुत्र गोरइया अउ धोबी के पुत्र ल बन के करसा कहिके संबोधित करे जाथे।
जवाँरा के फुलवारी ल देख-निहारके सियान मन वो बछर के सुकाल -दुकाल के अनुमान लगा लेथे। फुलवारी कहूँ रिगबिग ले घमाघम जामे ह त सुकाल हे, कहूँ कमजोर हे त दुकाल अउ खण्ड मंडल जागे ह त समझ ले वो बछर खण्ड बरसा के लक्षण हे।
भोजली बरोबर जवाँरा तको बदे के रिवाज हवय। भोजली अउ जवाँरा के बदना ये बात के परिचायक हरे कि खून के रिश्ता ले बड़े अऊ रिश्ता होथे जऊन मन ले मन मिले ले बनथे। जऊन ह मनखे मनखे ल एक बनाथे अउ इही असल धरम हरे। धरम कोनो नीत-नियम या अचार-व्यवहार के मोटरा नई होवय जेन मनखे ल बाँधके रखय बल्कि धरम वो रद्दा हरय जउन जिनगी म उछाह अउ मंगल भर लानथे। जिनगी ल सजा-सँवार गमगमा देथे। जिनगी के ये मरम ल समझ के जऊन करम करे जाथे उही धरम ये। अउ आखिर म देवी दाई के नौ रूप के अराधना –

नवरात्रि में नवदुर्गा के
मन से जो ध्यान लगाही ।
कन्या भोज कराके सुग्घर
मनवांछित फल पाही ।।

पहिली पूजौं करौं वंदना
पहिला दिन नवरात्रि ।
पर्वत के शिखर म बिराजै
रानी माँ शैलपुत्री ।।

जल कमण्डल एक हाथ म
दूसर हाथ गुलाब धरे ।
दूसरइया दिन ब्रम्हचारिणी
रूप अनन्त धरे विचरै ।।

दिन तीसर मंदिर देवाला
गूंजै टनटन घंटा के ।
आधा चंदा माथा सोहै
दसभुजी चंद्रघंटा के ।।

शेर सवारी माँ कूष्मांडा
प्राणशक्ति देवइया ।
जइसे गोला ब्रम्हांड के
चौथा दिन म अवइया ।।

ज्ञान कर्म के सूचक मैया
चार भुजी कमलासन ।
पाँँँचवा दिन स्कंदमाता के
रंग सफेद मनभावन ।।

सत्य धर्म के सिरजन खातिर
ज्ञान स्वरूपा क्रोध देखावै ।
जगतहित बर छठवा दिन
माँ कात्यायनी रूप म आवै ।।

रूप भयंकर कालरात्रि के
लाश ;गदहाद्ध म चढे धरे मशाल ।
दिन सातवा बनके आए
मैया असुर मन के काल ।।

बइला सवार त्रिशूल धरे
बिजली जस उज्ज्वल गोरी ।
आठवा दिन नवरात्रि में
आवै मैया महागौरी ।।

अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता
चार भुजा हे तोर ।
अर्धनारीश्वर सिध्दिदात्री
नौवा दिन हे तोर ।।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

लउछरहा..