भादो पुन्नी के पूछी धरे ओरी- ओरी पितर मन उतरथे अउ अपन बाँटा के बरा-चीला ल मोटरी बाँधके कुँवार अमावस के रेंग देथे। येला पितृपक्ष माने श्राद्ध पर्व कहिथन। पितर मन के तृप्ति खातिर श्रद्धापूर्वक करे गेहे तर्पण ल श्राद्ध कहिथे। पारिभासिक रूप म कहि सकथन कि अइसन विवाहित, अविवाहित, स्त्री, पुरूष, लइका या सियान जिंकर मऊत हो जाए रहिथे उन्कर आत्मा ल पितर कहे जाथे। श्राद्धकर्म ह पितर ऋण चुकाए के सबले सस्ता, सरल अउ सहज मार्ग हरे। पितृपक्ष म श्राद्ध करे ले पितरमन बछरभर प्रसन्न रहिथे। मँहगाई के जमाना म पितर ल एक दिन तृप्त करके बछर भर खुश रखे म कोनो बुराई नइ हे। श्राद्धकर्म ले मनखे अपन परिजन भर ल नहीं भलकुन ब्रम्हा से लेके तिनका तक के जम्मो प्राणी ल तृप्त कर सकथे। पितरपूजा ल ब्रम्हापूजा माने गे हवय। ब्रम्हपूजा के आगू म दाई-ददा ल जिनगी भर तरसाए -तड़पाए के पाप चिटको मायने नई राखय। जीयत जागत दाई -ददा मुड़ के बोझा होथे। हटा सावन के घटा ! उन्कर बर बुड्ढाश्रम बने हे। आश्रम के सफल, संस्कारित अउ सहज उपयोग करे ले ही ओकर सार्थकता फलित होथे। त उपयोग तो होना ही चाही। जिनगी भर रूढि़वादी, गँवार अउ ढोर टाइप डोकरी-डोकरा मन ल झेले ले एक दिन के कऊँवा-बाप बने फुरमानुक हे।
कऊँवा साक्षात मऊत के देवता यमराज के बरोबर अउ नियाव के देवता शनि के वाहन माने जाथे। कुछु पाए बर कुछु खोना परथे। जिनगी म ये खोया-पाया के गनित म अइसन खोटहा करम ले कोनो किसम के हानि नजर नई आवय। येला कऊँवा-दृष्टि कहे म काइयाँपन नई होना चाही। कऊँवा मन कनवा होथे फेर उहू म एकठो विशेषता होथे कि वोमन दूनो आँखी ले ओसरी पारी देख सकथे। जेन कोति देखथे ओकर दूसर कोति के आँखी अँधरा जथे। अइसे कहिथे कि त्रेताजुग म देवराज इन्द्र के बेटा जयंत कऊँवा के रूप धरके सीता के पाँव ल चोचम दीस। एकर ले राम गुसियाके तिनका ले ओकर आँखी ल फोर दीस। जयंत के माफी माँगे ले कहे गइस कि ये आँखी फूटगे तेन फूटे रहिही, फेर जेति के आँखी म देखबे ओकर उल्टा दिशा के आँखी म नई दीखय। ये किसम ले तैं कनवा रहिबे अउ कनवा कहाबे। संगे -संग पितर पाख म पितर मन संग एक भाग तहुँ पाबे। बड़े भाग काँवा तन पावा।
काली संझा कऊँवा मन के बइठका सकेलाइस। सियान कऊँवा काहत राहय- सब घर के पितर खाए बर जाहू फेर कोचरू मंडल घर झन जाहू रे। तुलमुलहा छोकरा कऊँवा पूछ परिस- काबर बबा ? बबा कहिस- वो कोचरू ! जीयत भर अपन दाई ददा ल पानी बर नई पूछिस अउ मरे के पीछू बरा-सोंहारी अउ मिठई चढ़ाके पितर-सेवा के नाटक करत हे। मारिहौ पनही पाँच अउ गिनिहौ एक स्साले ल।
धरम पोथी के अनुसार समुन्द मंथन के बेरा कऊँ ह अमृत ल चीख डारे रिहिसे तेकर सेति उन ल अमर माने गे हे। उन बीमारी अउ बुढ़ापा ले नई मरय भलकुन उन्कर मऊत आकस्मिक होथे। उन स्वार्थी, जीछुट्टा अउ हदराहा मनखे मन बरोबर अकेल्ला कभू नई खावय। जब खाथे संगी-साथी मन संग मिल-बाँट के खाथे। मुनगा के डारा चिरइया बाँटे चारा बड़ शुभ अउ पहुना आए के सूचक होथे।
उन मनखे जोनि कस लेदरा अउ दलिद्दर तको नई होवय, भलकुन तीर-तखार, पारा -परोस के गंदगी ल खाके के सफई तको करथे ओकर सेति कऊँवा ल सफाई के दरोगा कहे जाथे।
लोगन इहू कहिथे कि कऊँवा खाए ले जिनगी भर आँखी नई आवय। ये अंधविश्वास हरे कि जागृतआस, ये तो नई बता सकौं। चश्मा पाॅवर वाले हरे कि फेसन वाले ये बेचइया जानै अउ पहिनइया जानै, फेर कऊँवा खवइया लोगन ल तको चश्मा लगाए बजुर देखे हौं।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल