Site icon हांका – Chhattisgarhi News

इतवारी: कमरछठ

आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के भाषा म एक शब्द हे – ‘सेरोगेसी’। दूसर के कोख म अपन गर्भ ल पालके अवतरित करना, माने ‘किराया के कोख’ ल सेरोगेसी के संज्ञा दे गे हवय। येला धर्म शास्त्र म ‘संकर्षण’ कहे जाथे। देवकी के गरभ ले उपजे छै संतान कंस के हाथ एकक करके काल के गाल म मेलागे। तब सातवां गर्भ ल रोहिणी के कोख म संकर्षित करे गइस। बलदाऊ ह सफल संकर्षण के सुफल हरे। नारी जीवन के सबले बड़े सफलता ओकर माता बनना होथे। अपन कोख ले नवा जीवन जनना, नवा सृष्टि रचना ओकर सबले बड़े सपना, उछाह अउ उत्सव होथे। असल म महतारी बने म ही नारी अपन जीवन के सफलता , सार्थकता अउ संपूर्णता समझथे। नारी सृष्टि के रचयिता होथे। बलदाऊ के संकर्षण पीछू देवकी के मन पियासे के पियासे रहिगे। अवइया संतान ल अपने कोख ले जनम देहे के पियास अउ आस धरे बियाकुल देवकी जेल भीतर माता पार्वती के ब्रत करिस। जेला कमरछठ ब्रत कहिथन। ये ह सुहागीन स्त्री मन के सबले बड़े तिहार हरे।

कमरछठ भादो अंधियारी के छठ के दिन मनाए जाथे। जस नाम तस गुन। छठ म छै के संयोग देखव। इही दिन पार्वती नंदन षडानन कार्तिकेय के जनम दिन तको हरे। येमा छै जात के अन्न- राहेर, तिंवरा, मसूर, चना, लाई अउ मउहा। पटपर भूईंयां म उपजे छै जात के भाजी, छै ठिन तरल पदार्थ- दूध, दही, घींव, मदरस, गंगाजल अउ पानी, छै प्रकार के खेलौना- बांटी, भौंरा, गिल्ली, डण्डा फुग्गा अउ गेंड़ी के संगे-संग कमरछठ कथा के छै अध्याय श्रवण करे जाथे। कथा सुने के पीछू सामरथ अनुसार सगरी ल छैयो तरल पदारथ ले भरे जाथे। जेमा लाल, पींवरा अउ सफेद रंग के नवा कपड़ा के टुकड़ा ल भिंजो के घर लानथे अउ अपन संतान के कनिहा उपर बाखा म छूवाथे। बेटा के जेवनी बाजू अउ बेटी जात के डेरी बाजूं। येला पोता छुवानाा कहिथे। सगरी के जल ल संतान के जीवन रक्षा अउ सुख समृद्धि के कामना संजोए घर म चारो कोति छींचे जाथे।

पहिली सगरी अउ पैठू, जउन ह नर अउ नारी के प्रतीक हरे, बनाके विधिवत पूजा-अर्चना करे जाथे। सगरी के मेड़ पार म कांसी के डारा खोंचे जाथे। मान्यता हे कि माता सीता ह बाल्मिकी आश्रम म रहिके कुश ल अवतरिस। कांसी मन के बीच कांदा कूसा, पसहर चांउर अउ बन के भाजी मन ल खाके जीवन यापन करिस। तेकर सेति ये दिन कांसी फूल के महात्तम होथे।

ये दिन फरहारी-प्रसाद के रूप म पसहर चाँऊर के उपयोग करे जाथे। बिन नांगर चले भूईयां म संऊँहत उपजे धान ल पसहर कहिथे। पसहर चाँऊर ल ऋषि भोज माने गे हवयं। ऋषि भोज ल पचाना समान्य मनखे के बस ले बाहिर होथे। येला पचाए बर घींव अउ दही चाही। ओकर सेति ये दिन पसहर के भात ल भइँस के घींव, दही अउ सादा नमक के जगा सेंधा नमक संग ग्रहण करे जाथे। भादो भर गाय के दूध -दही वर्जित हे। ये महीना म भइँस के ही दूध -दही खाए के बिधान हवय। कमरछठ उपसहीन मन नांगर चले भूईंया म पाँव नई रखय। मउहा डार के दतवन, मउहा पाना के दोना पतरी, मउहा लकड़ी अउ मउहा फूल के ये दिन विशेष उपयोग करे जाथे। सगरी पूजा के बाद छै ठिन पतरी म गाय, बछरू, कुकुर, बिलई अउ चिरई चिरगुन मन बर परसाद निकाले के पीछू उपसहीन अपन प्रसाद लेथे।

कतको मन येला बलदाउ के जनमदिन के रूप म तको मनाथे। कहिथे ये दिन जउन ग्रहण करे जाथे ओकर असर साल भर रहिथे। उही कारण हरे कि ये दिन छै किसम के अनाज अउ मउहा फूल के प्रसाद बनाए जाथे। अइसे हमर शास्त्र म अबड़ अकन बिधान हवय जेला साल म एक पइत करे ले साल भर तक ओकर असर रहिथे। एक मान्यता के अनुसार चैत के पहिली दिन मनखे जउन करथे ओ साल ओकर ओइसने बीतथे। तेकर सेति कमिया किसान मन वो दिन सुतय नहीं। नइतो ओकर साल ओइसने सुतते बीतथे कहिथे। विक्रम संवत के नवा बछर लगे के दिन माने चैत के पहिली दिन सात ठिन नीम के कोंवर पत्ता ल सात ठिन काली मिरच माने मरीचदाना अउ चुटकी भर सेंधा नमक संग पीसके पीए ले साल भर बुखार नइ आवय। अइसेनेहे बिधान हवय कि शरद पूर्णिमा के रात चंद्रमा के अम्त बरसाए खीर ल अंवरा पेड़ तरी खाए ले दमा कट जथे। ये प्रकार ले हमार सबो तीज -तिहार, परब, नियम, मान्यता अउ परम्परा के पीछू कुछु न कुछु गूढ़ रहस्य, गहिर तर्क अउ घोर विज्ञान छुपे हे। जरूरत हे ओला खोजे अउ सहेजे के। तेकर सेति शास्त्र के अध्ययन अबड़ जरूरी हवयं। एक कवि सफदर हाजमी कहिथे कि किताब बहुत कुछ बोलथे। हमला उन्कर तीर बइठना चाही। उन्कर संग बोलना बतियाना चाही, उन ल सुनना-गुनना चाही। इही कारण हे कि जब कभू बाहिरी मन आक्रमण करथे त सबले पहिली हमर संस्कृति अउ साहित्य ल नास करे के उदीम करथे। येला हमन समझ नई पावन।

जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

छत्‍तीसगढ़ में इस त्‍यौहार को खम्‍हरछठ भी कहते हैं, हालांकि, इस दिन कार्तिकेय का भी जन्‍मदिन रहता है, कार्तिकेय को कुमार कहा जाता है इस कारण इसे कुमार (कुमारछठ-कमरछठ) के अपभंश के रूप में कमरछठ कहा जाता है ऐसा पं.छत्रधर शर्मा जी का मानना है। व्‍यवहार में कमरछठ पट्ट शब्‍द है और खम्‍हरछठ कुलीन शब्‍द। – संपादक

Exit mobile version