भागे मछरी जाँघ अस रोंठ। रिहिस के नइ रिहिस होही, कम से कम गोठ ल तो सोंट। तइहा के बात ल बइहा लेगे। उही तइहा बइहा कभू -कभार किंजरत -फिरत मन के सांकुर गली म हभर-हमा जथे त अइसे लगथे कि काबा भर पोटार के धर लेववं का ? चूम -पुचकार के मना लेववं अउ मया -पिरित के गाँठ बाँध रख लेववं सरिदिन बर घर म, जिनगी के जाँवर-जिंयर संगवारी कस, फेर समे के धार अउ रेती के पार ल मुठा म कोन बाँध सके हे ? थोरको ऊँच-नीच होए म थोरे के बहुते पुलपुल-पुलपुल करे लगथे, बुलबुल ले बोहा जथे बूजा ह।
नान-नान रहेन त बरसा के झरती-झरती म गाँव के कोतवाल हाँका पारय-‘काली बँधानी बाँधे बर जाना हे हो …….।’ बिहान भर घर पीछू एकक मनखे राँपा, गैंती, झँउहा, कुदारी धरके नरवा म जुरिया जवयं। बुलडोजर टाइप धीर-गंभीर, बाहुबली जवान मन गोदी-खनती खनय। जाँगरचोट्टा, कोढि़या अउ अलाल टाइप मन राँपा ले झँउहा म माटी जोरय अउ फोर्ड टेक्टर टाइप साँगर-मोंगर लुकपुकही-लुकपुकहा मन दऊँड़-दऊँड़ के माटी डोहारय-फेंकय। तन-मन ले बुढ़वा मन सियानी करय। वोमन ढेला रचय-पार बाँधय। धियान से देखय अउ रेंग-रेंग के जिहाँ कमी -बेसी लगय उहाँ माटी पटकावव। ‘सियान बिगर धियान नइ होवय’-येला सिध पार देवय। सियानी तको सिद्धो म नइ मिलय, सिध पारे बर परथे।
उही बँधानी म जेठ के लाहकत गरमी ल मझनिया भर करार कूद-कूद के नहावन-तऊरन-पहावन। बइला-भइँसा ऊपर चढ़-चढ़के पार नाहकन। जम्मो लइका- सियान, बुढ़वा -जवान के जरे-तीपे मँझनिया ह उही बँधानी के दाहरा म जुड़ावय -सितरावय। जेठ के जम्मो जोस ह ‘पचरी म बइठ के गोरी लगरे लगर नहाथस वो’ ददरिया गावत कइसे बुलक जावय, पते नइ चलय।
‘तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती’ कस किस्सा जेठ के बुलकती अउ असाड़ के अमरती कोतवाल फेर हाँका पारय -‘काली मतावर करे बर जाना हे हो…….।’
बिहान भर मँझनिया जुन्ना धोती, लुगरा, पेलना, चोरिया अउ झऊँहा धरके नरवा म गाँव भरके मनखे उमड़ जाय। लइका सियान जम्मो गाँव खलक उजर जाय। राजा-मंत्री टाइप हुसियार मन पढ़ीना, बाम अउ रोहू-कतला ल दबा डारय। कर्मठ अउ जीपरहा कार्यकर्ता मन टाइप मेहनतकस मनखे मन तरी-ऊपर ले चोरिया -झोलिया पेल-दंताके उफले-उफले कोतरी, डेमचुल अउ टेंगना मन ल झोल डारय।
जम्मो ‘बुटानी पार्टी’ माने हम चिल्हर पार्टी मन नान्हे -नान्हे कोतरी, सरांगी अउ चिंगरी के पीछू फुटानी मारत परे राहन, जऊन कभू हमर हाथ म आबे नइ करिन। आए झोली ले ‘पिच्च ले’ कूद देवय रोगहा -अजरहा मन। लकर -धकर जोसे -जोस म हमू मन कूदत ककरो झोलना म कूद परन। मछरी उन्कर गलती ले भागय, नाम हमार टिपा जावय। सीधवा के लुगाई, सब के भौजाई। जऊन भौजी-काकी मन हमन ल ‘गुड्डु, गुडडु’ काहत नइ थकय, तेनो मन गुस्से -गुस्सा म ‘हम्माम म सबो ढोर, पकड़ागे तेन चोर’ कस किस्सा हमार चड्डी अउ चोरिहा के हाल बेहाल कर देवय। हटा स्साले सावन के घटा- हार खाके हमन तउरे म मगन हो जावन। दू दिन ले गाँव मच्छी भात म माते रहय।
जेन पइत गरमी जादा बिफड़ जाय। नदिया-नरवा हारे राजा कस रानी विजेता राजा सुरूज के आगू घुटना टेंक देवय। पतिबरता पानी लाज अउ मरजाद के मान राखत सती नारी कस जऊँहर अँटाए लगय त कोनो पुन -प्रतापी मनखे झिरिया कोड़ देवय। जेकर पानी अबड़े ‘झक्क’ सुफेद गंगाजल कस निर्मल अउ पावन राहय। गाँव भर छकल-छकल निस्तारी करन।
जिहाँ नरवा नइ होवय उहाँ -‘आज डिपरा ल खन के डबरा पाट देबो न’ – गावत गाँव मिलके तरिया-डबरी कोड़य।
कूआँ के पार तो मऊज के मार होवय।
तइहा इही नदिया-नरवा, झिरिया-तरिया अउ कूआँ के पार तिरिया मन के पिरिया, सुख-दुख अउ चारी-चुगली के किरिया खाए ठिहा होवय। अब नदिया-नरवा मन के छाती धसक गेहे। झिरिया-तरिया मन तरूवा धर लेहे अउ कूँआ मन कोंदा, बऊला अउ अँधरा कस आँखी मूँदे अपन श्रवन बेटा के बाट जोहत हाथ-गोड़ अइँठे बइठे हे।
अब भगीरथ प्रयास ले भागीरथी घर -घर बोहावत हे। अब हमर गाँव के पनिहारिन मन जम्मो सुख-दुख, मया-पिरीत अउ चारी-चुगली के गोठ ल वाट्सएप ले गोठिया लेथे। पनघट ‘चल हट कोनो देख लिही’ काहत -लजावत कोन जनि कति लुकागे। अब ‘हमर गाँव के पनिहारिन मन कइसे हँसी मुसकावत हे रे’ नंदागे।
जल दिवस मनाए जाथे।
‘छुनुर छुनुर पइरी बाजय, खनर खनर चुरी’ अब मुक्का होगे हे, फेर उन्कर सुन्ना आँखी ले ये सवाल पाँखी लगाए जब-तब फड़फड़ाए लगथे -‘साहेब ! दिवस मनाए भर ले का होही ? का बारा महीना के फोकट बोहाए जल एके दिन म सकेला जही ?’
बूँद-बूँद ले घड़ा भरथे। पल पल ले छिन, छिन छिन ले घड़ी अउ अइसनेहे घड़ी ले घंटा, पाहर, दिन- रात होवत बछर -जुग बनथे-सिरजथे, तइसे जिनगी एके दिन के नइ होवय। पल -पल, छिन- छिन, घड़ी -घड़ी रोज उछाह मनाए ले जिनगी म खुसहाली आथे। जल ले कल हे। पानी हे त जिनगानी हे, येला काबर कोनो नइ समझन ?
सार्थकता तो तभे हे जब दिवस के जगा ओला जिनगी म आत्मसात कर लेवन। एकर सुरक्षा अउ बढ़वार के उदीम, पर गोला के कोनो एलियन आके नइ कर देवय। हमर भविस हमर हाथ म हे, त हमर उज्जर भविस के सुरक्षा, सुधार अउ सुव्यवस्था तको हमरे जुम्मेदारी हे।
कोनो बेरा बात के रिगबिग सिगबिगाए बर पोठ पहल के संगे-संग टनाटन टहल तको जरूरी होथे।
दिवस के मनाए ले कहूँ दिन फिर जतिस, त कबके विकास ह दुनिया के पीठ म हाथ फेर डारे रहितिस अउ कलमुँही दुर्दषा मुँह फेर के लुका जाए रहितिस।
जय जोहार!!
धर्मेन्द्र निर्मल